झारखंड के मुख्यमंत्री और उनकी पूरी सरकार को राज्यपाल रमेश बैस कई दिनों से कुढ़न में डाले हुए हैं। अपने नाम से खनन की लीज लेने के मामले में चुनाव आयोग में हेमंत सोरेन के खिलाफ सुनवाई मुकम्मल होने के बाद इस बारे में सिफारिश की काॅपी राज्यपाल को भेजी जा चुकी है।
चार दिन पहले यह खबर भी लीक की गयी कि चुनाव आयोग ने सोरेन की विधानसभा सदस्यता रद्द करने का फैसला सुनाया है। चूंकि यह फैसला बंद लिफाफे में राजभवन को भेजा गया इसलिए तरह-तरह की अटकलें लगायी जा रही हैं।
उन अटकलों में यह बात भी शामिल है कि सोरेन के चुनाव लड़ने पर कुछ दिनों के लिए पाबंदी लग सकती है।
अगर यह दोनों अटकलें सच हुईं तो सोरेन के पास इस्तीफा देने के अलावा और कोई चारा नहीं रहेगा। अगर सिर्फ विधायकी जाती है तो वे इस्तीफा देकर दोबारा मुख्यमंत्री की शपथ लेकर और चुनाव जीत कर अपना पद बरकरार रख सकते हैं।
इन अटकलों के बीच झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस के विधायकों के बारे में यह खबर भी आयी कि वहां पिकनिक और डिनर पाॅलिटिक्स हो रही है क्योंकि मुख्यमंत्री अपनी टीम के साथ पिकनिक मनाने निकल गये थे और महागठबंधन के विधायकों के साथ डिनर भी कर रहे थे। कुछ सूत्रों का कहना है कि उन्हें वास्तव में छत्तीसगढ़ जाना था लेकिन प्रोग्राम लीक होने की वजह से सारे विधायक पास के लतरातू डैम से ही लौट आये।
ऑपरेशन लोटस
चूंकि झारखंड में ऑपरेशन लोटस की चर्चा भी लंबे समय से चल रही है तो यह पूरी स्थिति भारतीय जनता पार्टी के रणनीतिकारों को रास आ रही है। भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी भी कह रहे हैं कि बेहतर होता कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन चुनाव आयोग के फैसले का इंतजार करते। वे कह रहे हैं कि चुनाव आयोग ने मुख्यमंत्री को अपना पक्ष रखने का मौका दिया और कई बार सुनवाई टाली। उनके अनुसार सोरेन द्वारा यह देरी जानबूझकर की गयी थी और अब वही लोग यानी महागठबंधन के लोग जल्दी फैसला लेने का दबाव डाल रहे हैं।
चूंकि यह चर्चा मुख्यमंत्री सोरेन को विधायक पद से अयोग्य ठहराने को लेकर है तो इसके इर्द-गिर्द यह सवाल भी उठ रहा है कि ऐसे में महागठबंधन का मुखिया कौन होगा। महागठबंधन के नेताओं ने रविवार को प्रेस काॅन्फ्रेंस कर कहा कि अगर राज्यपाल की इच्छा अनुच्छेद-356 इस्तेमाल करके सरकार गिराने की है तो वह यह भी कर लें। उनके अनुसार तब महागठबंधन इसका 24 घंटे में जवाब देगा और संवैधानिक ताकत के साथ खड़ा होगा।
यूपीए के नेताओं ने इस मामले में भाजपा के नेताओं की भूमिका पर भी सवाल उठाये।
परिवहन मंत्री चंपई सोरेन का तर्क है कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 9-ए के तहत अब तक किसी विधायक को अयोग्य नहीं ठहराया गया है लेकिन भाजपा नेता मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को अयोग्य ठहराये जाने की बात को हवा दे रहे हैं।
उन्होंने पूछा कि क्या कारण है कि चुनाव आयोग के पत्र पर राज्यपाल ने अबतक अपना फैसला नहीं दिया और न ही इस बारे में कोई बात बतायी है। उन्होंने वह बात भी कही जिसे ऑपरेशन लोटस का नाम दिया जा रहा है।
सोरेन ने सवाल उठाया कि क्या इस तरह समय काटकर विधायकों की खरीद-फरोख्त की तैयारी की जा रही है।
स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने गोड्डा से भाजपा के सांसद निशिकांत दुबे पर सवाल उठाते हुए पूछा कि जब किसी को कोई आधिकारिक जानकारी नहीं दी गयी है तो वे कैसे संवैधानिक संस्थाओं के निर्णय बता रहे हैं। क्या वे भविष्यवक्ता हैं?
बन्ना ने पूछा कि अगर चुनाव आयोग का कोई निर्णय आया है तो राज्यपाल इसे सार्वजनिक क्यों नहीं करते। इन सबके बीच भाजपा के नेता इस बात को भी प्रचारित कर रहे हैं कि कांग्रेस के कई विधायक उनके संपर्क में हैं।
दूसरी तरफ कांग्रेस अपने विधायकों को समेटकर रखने के संघर्ष में जुटी है क्योंकि पहले ही उसे अपने तीन विधायकों को इस कारण निलंबित करना पड़ा कि वे बंगाल पुलिस द्वारा नोटों की गड्डियों के साथ पकड़े गये थे।
आरोप है कि ये तीनों विधायक असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के संपर्क में थे और कांग्रेस के विधायकों की हाॅर्स ट्रेडिंग में शामिल थे।
पिता और भाई पर भी मामले
भाजपा झारखंड में दो तरफा रणनीति पर चल रही है। वह कानूनी रूप से मुख्यंत्री हेमंत सोरेन समेत झारखंड के अन्य नेताओं को उलझाये रखना चाहती है और राजनैतिक रूप से कांग्रेस के विधायकों पर डोरे डाल रही है। सोरेन के पिता पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन पहले से ही अवैध संपत्ति अर्जित करने के मामले में लोकपाल के केस का सामना कर रहे हैं। हेमंत के छोटे भाई बसंत सोरेन की विधायकी पर कानूनी लड़ाई चल रही है।
संख्या बल के लिहाज से देखा जाए तो झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के सामने संकट नहीं है। इसीलिए भाजपा के नेताओं को राज्यपाल के फैसले में सस्पेंस से झामुमो को हो रही कुढ़न रास आ रही है।
भाजपा के पास 26 विधायक हैं और बहुमत के लिए 42 विधायकों की जरूरत है। उसके साथ दो निर्दलीय, एक एनसीपी और दो आजसू के सदस्यों को जोड़ लिया जाए तो भी यह संख्या 31 ही होती है। ऐसे में कांग्रेस के 18 विधायकों में एक बड़ी टूट के साथ भाजपा अपनी सरकार बनाने की फिराक में हो सकती है।
फिलहाल झारखंड मुक्ति मोर्चा के 30 विधायकों में ऐसी किसी टूट की संभावना नहीं दिख रही है।
कुल मिलाकर राज्यपाल के चुप्पी साधने से हेमंत सरकार की कुढ़न बढ़ रही है और भाजपा को पूरा समय मिल रहा है कि वह अपने कथित ऑपरेशन लोटस पर काम कर वहां की सरकार को गिरा दे।
रांची में ऐसी चर्चा है कि राज्यपाल बढ़ते दबाव के कारण आज या कल में चुनाव आयोग की सिफारिश पर अपने निर्णय की घोषणा कर सकते हैं।