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झारखंडः क्या कोल्हान में ‘परिवारवाद’ बीजेपी की राजनीतिक मजबूरी है?

झारखंडः क्या कोल्हान में ‘परिवारवाद’ बीजेपी की राजनीतिक मजबूरी है?

कांग्रेस, सपा, आरजेडी के परिवारवाद को पानी पी-पीकर कोसने वाली बीजेपी झारखंड में आकंठ परिवारवाद में डूब गई है। तमाम भाजपा नेताओं के बेटे-बहुओं को बीजेपी ने टिकट का तोहफा दिया है। बीजेपी में फैलते जा रहे परिवारवाद पर छोटे कार्यकर्ता तो उंगली उठा रहे हैं लेकिन दिल्ली में बैठे नेताओं ने चुप्पी साध रखी है। वे वायनाड से प्रियंका गांधी के चुनाव लड़ने को भी परिवारवाद मान रहे हैं।

81 सदस्यीय  झारखंड विधानसभा के लिए 43 सीटों पर पहले चरण में 13 नवंबर को वोट डाले जाएंगे। इनमें कोल्हान प्रमंडल की 14 सीटें भी शामिल हैं, जहां 2019 के चुनाव में बीजेपी का खाता नहीं खुला था। बीजेपी इस बार कोल्हान में अपनी खोयी जमीन वापसी के लिए हर दांव खेल रही है। यहां से पार्टी ने चार पूर्व मुख्यमंत्रियों की पत्नियां, पुत्र और बहू को मैदान में उतारा है। जाहिर तौर पर परिवारवाद की इस राजनीति को लेकर पार्टी को सवालों का सामना करना पड़ रहा है। साथ ही पार्टी में कलह भी फूट पड़ा है। पूछा जा सकता है कि बीजेपी की राजनीतिक मजबूरियां क्या थीं और इसका चुनाव पर असर क्या होगा।

बीजेपी ने पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा को पोटका, मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा को जगन्नाथपुर, चंपाई सोरेन के पुत्र बाबूलाल सोरेन को घाटशिला तथा रघुवर दास की बहू पूर्णिमा दास साहू को पूर्वी जमशेदपुर की सीट पर टिकट दिया है। पिछले 30 अगस्त को बीजेपी में शामिल हुए चंपाई सोरेन खुद सरायकेला से चुनाव लड़ रहे हैं। सरायकेला से पहले वे छह बार चुनाव जीते हैं।

इस बीच जेएमएम ने सरायकेला की प्रतिष्ठित सीट पर चंपाई सोरेन के खिलाफ गणेश महाली को मैदान में उतारा है। पिछले दो चुनावों में बीजेपी के टिकट से चुनाव लड़े गणेश महाली पार्टी में परिवारवाद की राजनीति से नाराज होकर जेएमएम का दामन थामा है। इस बार भी यहां आमने- सामने की लड़ाई दिख रही है।   

मीरा मुंडा, पूर्णिमा दास साहू और बाबूलाल सोरेन पहली दफा चुनाव लड़ रहे हैं। सरायकेला, पोटका, घाटशिला आदिवासियों के लिए रिजर्व और जमशेदपुर पूर्वी की सीट अनारिक्षत है। इसी जमशेदपुर पूर्वी सीट पर 2019 में निर्दलीय उम्मीदवार सरयू राय ने रघुवर दास को हराया था। तब रघुवर दास राज्य के मुख्यमंत्री थे। अभी वे ओडिशा के राज्यपाल हैं। सरयू राय इस बार जमशेदपुर पश्चिम सीट से बीजेपी गठबंधन में शामिल जदयू के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं।

मीरा मुंडा का पोटका में जेएमएम के विधायक संजीव सरदार, चंपाई सोरेन के पुत्र बाबूलाल सोरेन का घाटशिला में जेएमएम के विधायक और सरकार में मंत्री रामदास सोरेन तथा रघुवर दास की बहू पूर्णिमा दास का साहू मुकाबला पूर्व सांसद, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डॉ अजय कुमार से है। उधर गीता कोड़ा भी जगन्नाथपुर विधानसभा सीट से पूर्व में दो बार चुनाव जीती हैं। अभी उनका मुकाबला कांग्रेस के विधायक सोनाराम सिंकू से है।  अर्जुन मुंडा और मधु कोड़ा दोनों अपनी पत्नी के लिए पोटका और जगन्नाथपुर में चुनावी खेवहनहार बने हैं।

आदिवासी बहुल कोल्हान की 14 सीटों में आदिवासियों के लिए नौ और अनुसूचित जाति के लिए एक सीट रिजर्व हैं। चार सीटें अनारिक्षत (सामान्य वर्ग) हैं। 2019 के चुनाव में जेएमएम ने 11 सीटों पर जीत हासिल की थी। कांग्रेस को दो पर जीत मिली थी। झारखंड में आदिवासी बहुल कोल्हान की 14 और संथालपरगना की 18 यानी 32 सीटों पर जीत- हार का फैसला सत्ता तक पहुंचने के लिए बेहद अहम माना जाता है। ये दोनों  इलाके सत्तारूढ़ जेएमएम के गढ़ रहे हैं।

कोल्हान से ही बीजेपी में फूटा कलह

 इस बार गठबंधन में 68 सीटों पर चुनाव लड़ रही बीजेपी ने 19 अक्टूबर की शाम 66 उम्मीदवारों की  सूची जारी की थी। इस सूची के जारी होने के साथ ही पोटका से पार्टी की पूर्व विधायक मेनका सरदार ने इस्तीफा दे दिया। पोटका से तीन बार चुनाव जीतीं मेनका सरदार ने इस बार भी टिकट की दावेदारी की थी। हालांकि मेनका सरदार ने बाद में इस्तीफा वापस ले लिया। उनका कहना है कि बीजेपी के चुनाव प्रभारी और केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान, पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी, प्रदेश महामंत्री आदित्य प्रसाद ने बातें की है और भरोसा दिलाया है कि पार्टी में उन्हें मान- सम्मान दिया जाएगा। इस बीच अर्जुन मुंडा और पोटका से पार्टी की उम्मीदवार मीरा मुंडा ने भी मेनका सरदार से मिलकर बातें की है।

हालांकि मेनका सरदार के इस्तीफा वापस लिए जाने के बाद भी पार्टी में असंतोष का दौर खत्म नहीं हुआ है। 21 अक्टूबर को बीजेपी को बड़ा झटका लगा, जब घाटशिला से पूर्व विधायक लक्ष्मण टुडू के अलावा पार्टी के नेता गणेश महाली, बास्को बेसरा, बारी मुर्मू और हाल ही में बीजेपी से इस्तीफा देने वाले बहरागोड़ा के पूर्व विधायक कुणाल षाड़ंगी जेएमएम में शामिल हो गए। इसी दिन संथालपरगना में बीजेपी का बड़ा आदिवासी चेहरा और पूर्व मंत्री डॉ  लुइस मरांडी भी जेएमएम में शामिल हुईं।

इस बीच 24 अक्टूबर को जमशेदपुर में पार्टी के नेता राजकुमार सिंह ने पूर्वी जमशेदपुर सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ने के लिए नामांकन दाखिल कर दिया है। पूर्व आइपीएस अधिकारी और पार्टी के नेता राजीव रंजन सिंह ने भी बीजेपी से इस्तीफा दे दिया है। राजीव रंजन सिंह ने जमशेदपुर में मीडिया से बात करते हे कहा है, “टिकट बंटवारे में परिवारवाद को प्राथमिकता दिया जाना यह दर्शाता है कि पार्टी अपनी नीति, सिद्धांत, मूल्यों से अलग रास्ते पर चल रही है। भारी मन से वे पार्टी छोड़ रहे हैं।“

क्या थी राजनीतिक मजबूरियांः परिवारवाद को लेकर बीजेपी में फूटे इस कलह ने पार्टी के रणनीतिकारों को परेशान कर रखा है और कोल्हान समेत प्रदेश के दूसरे इलाकों में भी उपजे असंतोष को संभालने के लिए नेताओं, कार्यकर्ताओं के मान- मनव्वल का दौर शुरू है। प्रतिक्रियाओं का दौर भी जारी है।  बीजेपी में परिवारवाद की इस चुनावी राजनीति को लेकर सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस के नेत अब बीजेपी पर हमलावर हैं। तब बीजेपी के नेता बचाव करते दिख रहे हैं।  

इससे पहले 21 अक्टूबर को रांची में पत्रकारों के सवाल पर झारखंड में पार्टी के सह चुनाव प्रभारी हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा, “बीजेपी में कोई परिवारवाद नहीं है। अर्जुन मुंडा चुनाव नहीं लड़ रहे इसलिए उनकी पत्नी को टिकट दिया गया। रघुवर दास चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। अब उनकी बहू चुनाव लड़ रही हैं। रही बात, चंपाई सोरेन के बेटे को चुनाव लड़ाने पर, तो सोरेन के बीजेपी में आने के समय उनसे कुछ बातें हुई थी। उन बातों पर ही अमल हो रहा है।“

हिमंता बिस्वा सरमा ने यह भी कहा कि टिकट बंटवारे के बाद थोड़ा बहुत असंतोष होता है, लेकिन उसे संभाल लिया जाएगा। जो लोग नहीं मानेंगे, वे जाएंगे।

जाहिर तौर पर बीजेपी में शामिल होने के वक्त चंपाई सोरेन ने यह शर्त रखी होगी कि उनके बेटे को भी चुनाव लड़ाया जाए, जो जेएमएम में मुमकिन नहीं था। दरअसल चंपाई सोरेन के पुत्र जिस घाटशिला सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, वह जेएमएम के कद्दावर नेता रामदास सोरेन के पास है।

बीजेपी के अंदरखाने इसकी भी चर्चा शुरू है कि मधु कोड़ा और गीता कोड़ा सिंहभूम की राजनीति में इतने प्रभावी है हैं कि उन्हें टिकट देना ही था. दूसरी तरफ झारखंड की राजनीति में अर्जुन मुंडा की कमजोर पड़ती हैसियत के बाद परिस्थितियों को भांपते हुए उन्होंने अपनी पत्नी को चुनाव लड़ाने के लिए पार्टी में पिच कर दिया। हालांकि पार्टी चाहती थी कि अर्जुन मुंडा भी विधानसभा चुनाव लड़े, लेकिन परिस्थितियों को भांपते हुए वे खुद मैदान में नहीं उतरे। इसी बार लोकसभा चुनावों में खूंटी से उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा है।

उधर झारखंड की राजनीति में रघुवर दास की वापसी को लेकर हाल के दिनों में काफी अटकले लगती रही हैं। लेकिन अब उनकी बहू को टिकट दिए जाने के बाद इन अटकलों पर फिलहाल विराम लगा है। लेकिन एक बात साफ है कि जमशेदपुर पूर्वी सीट से टिकट देने में पार्टी उनकी इच्छा को पार्टी ठुकरा नहीं सकी। बीजेपी की इस परिवारवाद की राजनीति पर कोल्हान में आदिवासी संगठनों की भी सीधी नजर बनी है।

वरिष्ठ पत्रकार शंभुनाथ चौधरी कहते हैं, “बीजेपी का कोल्हान में पूर्व मुख्यमंत्रियों की पत्नियों, बेटे, बहू को मैदान में उतारना साफ जाहिर करता है पार्टी के पास इनके अलावा कोई विकल्प नहीं था। अर्जुन मुंडा, रघुवर दास, चंपाई सोरेन ने अपने भविष्य़ की राजनीति को भांपते हुए अपनी विरासत को सामने कर दिया है। दूसरा- सबसे महत्वपूर्ण है कि बीजेपी दूसरे दलों (विरोधियों) पर परिवारवाद, वंशवाद की राजनीति का आरोप हर एक मौके पर लगाती रही है, लेकिन वह भी इससे अलग नहीं है। आगे, जो असंतोष उभरा है, उसे पार्टी कैसे संभालती है, और परिवारवाद की इस चुनावी राजनीति से परिणाम कितना बदलता है यह देखा जाना है।“  

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