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तीन तलाक़ पर बीजेपी से क्यों रूठा है जदयू?

तीन तलाक़ पर बीजेपी से क्यों रूठा है जदयू?

तीन तलाक़ बिल पर सत्तारूढ़ दल का विरोध ख़ुद उसके अपने सहयोगी कर रहे हैं। लेकिन वह इसे लागू करने पर आमादा है, क्योंकि वह इसके बहाने ध्रुवीकरण चाहती है। 

तीन तलाक़ मुद्दे पर भारतीय जनता पार्टी की मुसीबत बढ़ती जा रही है। बीजेपी के सहयोगी जनता दल यूनाइटेड ने भी राज्यसभा में इस बिल को समर्थन देने से इनकार कर दिया है। बीजेपी और एनडीए के पास राज्यसभा में इस बिल को पास कराने के लायक समर्थन पहले भी नहीं था। जदयू के ताज़ा बयान से यह भी साफ़ हो गया है कि बीजेपी के साथ उसका संबंध पूरी तरह सहज नहीं है। जदयू के बिहार प्रमुख और राज्यसभा के सांसद वशिष्ठ नारायण सिंह ने एक समाचार एजेंसी से कहा कि राज्यसभा में इस बिल पर मतदान की नौबत आई तो उनकी पार्टी सरकार का समर्थन नहीं करेगी। कांग्रेस सहित पूरा विपक्ष बिल को सेलेक्ट कमिटी में भेजने की माँग पहले से ही कर रहा है। तलाक़ बिल पर रोक लगाने के लिए मुस्लिम महिला विवाह सुरक्षा बिल को राज्यसभा में जनवरी के पहले सप्ताह में पेश किया गया। इसके पहले लोक सभा ने दिसंबर को इसे पास कर दिया था।लोक सभा में बीजेपी बहुमत में है, इसलिए विपक्ष बिल को रोकने में सक्षम नहींहुआ। 

राज्यसभा में कैसे होगा पास

 राज्य सभा में बीजेपी अल्पमत में है और एनडीए के सहयोगी दलों के साथ छोड़ने के बाद इस बिल को पास कराना असंभव लग रहा है। राज्यसभा में कुल 245 सदस्य हैं, इनमें से एक सीट अभी ख़ाली है। बिल पास कराने के लिए बीजेपी को 123 सदस्यों का समर्थन चाहिए। सदन में बीजेपी के 65 सदस्य हैं। इसके अलावा आठ नामांकित सदस्यों का समर्थन भी सरकार को मिल जाएगा।बीजेपी के साथ जदयू और शिवसेना को मिलाकर एनडीए के सदस्यों की संख्या 89 बनती है।वशिष्ठ  नारायण सिंह के बयान के हिसाब से अब जदयू के छह सदस्य भी बिल पास कराने में सरकार की मदद नहींकरेंगे।  ज़ाहिर है कि महज़ 83 सदस्यों की मदद से सरकार बिल पास नहीं करा सकती।

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साथियों ने साथ छोड़ा

इस मुद्दे पर राज्यसभा में बीजेपी की ताक़त लगातार घटती गई है। तमिलनाडु का एआईएडीएमके भी संकेत दे चुका है कि वह तीन तलाक़ पर बिल पास कराने में सरकार की मदद नहीं करेगा। राज्यसभा में एआईएडीएमके के 13 सदस्य हैं।तेलगु देशम और तेलंगाना राष्ट्र पार्टी के 6-6 सदस्य  पहले ही बीजेपी  से नाता तोड़ चुके हैं। जिन पार्टियों ने लोकसभा में भी इस बिल का विरोध किया उनके राज्यसभा सदस्यों की कुल संख्या 121बैठती है। बाक़ीके 125 सदस्यों को एक साथ जोड़ना बीजेपी के लिए असंभव है।

एआईएडीएमके और बीजू जनता दल जैसी पार्टियां भी राज्यों में अपने मुसलिम समर्थकों को नाराज़ नहीं करना चाहती है। बिहार में जनता दल युनाइटेड को पिछले विधानसभा चुनावों में मुसलमानों का समर्थन भी मिला था, लेकिन तब वह कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल के साथ था।

नीतीश कुमार को मुसलमानों के समर्थन की उम्मीद अब भी है। वशिष्ठ नारायण सिंह का बयान का बयान ज़ाहिर करता है कि नीतीश कुमार भी मुसलमानों से नाराज़गी मोल नहीं लेना चाहते हैं।

विरोध क्यों

इस बिल का विरोध मुख्य तौर पर तलाक़ देने वाले पुरुष को तीन साल तक जेल और जुर्माना की व्यवस्था के कारण है। हालाँकि एआईएमआईएम के असदउद्दीन ओवैसी पूरे बिल को ही मुसलमानों के ख़िलाफ़ मानते हैं। ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड भी इसे धार्मिक स्वतंत्रता में दख़ल मानता है। लेकिन क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद का कहना है कि तीन तलाक़ या तलाक़-ए-बिद्दत शरीयत के ख़िलाफ़ है। उनका तर्क है कि पाकिस्तान और बांग्लादेश सहित कई मुसलिम देशों में तीन तलाक़ को ग़ैरक़ानूनी घोषित किया जा चुका है। इस्लामिक धार्मिक क़ानून शरीयत में तलाक़ की जो व्यवस्था है, उसके मुताबिक़ कोई पुरुष अपनी पत्नी को 1 एक महीने के अंतराल पर 3 बार तलाक़ बोलकर तलाक़ दे सकता है। इसे तलाक़-ए-सुन्नत कहते हैं। 

लेकिन तीन तलाक़ भी प्रचलन में है इसके मुताबिक़ कोई पुरुष एक ही बार में तीन बार तलाक़ कहकर को अपनी पत्नी से अलग हो सकता है। कई मुसलिम संगठन भी 3 तलाक़ का विरोध करते रहे हैं। कुछ मुस्लिम संगठन ही इसे सुप्रीम कोर्ट ले गए। पिछले साल अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत से फ़ैसला दिया कि तीन तलाक़ इस्लाम और भारतीय संविधान के ख़िलाफ़ है।

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चुनावी मुद्दा

सुप्रीम कोर्ट ने ही सरकार को निर्देश दिया कि क़ानून बनाकर इस पर रोक लगाई जाए। सितंबर में सरकार ने अध्यादेश के ज़रिए तीन तलाक़ को प्रतिबंधित कर दिया। और विपक्ष के विरोध के कारण सरकार ने लोकसभा में बिल पेश करने से पहले काफ़ी बदलाव किया। इसके बावजूद ज़्यादातर मुस्लिम संगठन इसके ख़िलाफ़ है। विपक्ष तीन साल की सजा और जुर्माने के प्रावधान को ख़त्म करने की माँग कर रहा है। इस बिल में यह प्रावधान भी है कि एक बार गिरफ़्तारी के बाद पत्नी की सहमति के बिना पति को ज़मानत भी नहीं मिल सकती। बच्चे पर माँ का अधिकार होगा और उसके लिए पिता को गुज़ारा भत्ता देना होगा।

यह क़ानून मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों का दायरा बढ़ता है, लेकिन पुरुषों पर कई तरह के अंकुश भी लगाता है। बीजेपी इसके ज़रिए मुस्लिम महिलाओं का चैंपियन बनना चाहती है। संघ परिवार अपने मुस्लिम विरोधी एजेंडा को भी आगे बढ़ाना चाहता है।

कांग्रेस सहित पूरे विपक्ष की माँग है कि बिल को फ़िलहाल सेलेक्ट कमेटी में भेज दी जाए। सेलेक्ट कमेटी में विपक्षी दलों और बिल का विरोध करने वाले सहयोगियों की संख्या अच्छी ख़ासी है। इसलिए वे बिल में व्यापक सुधार का सुझाव दे सकते हैं। एक बात तो तय है कि लोक सभा चुनावों से पहले इस बिल को पास कराना नामुमकिन लगता है, लेकिन अब इसे लोक सभा चुनावों का मुद्दा बनने से रोका नहीं जा सकता। बीजेपी इसके ज़रिए हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश करेगी और बिल का विरोध करने वाली पार्टियां मुसलमानों से समर्थन का उम्मीद करेंगी।

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