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भारत ने क्वैड बैठक में अपरोक्ष रूप से उठाया चीनी घुसपैठ का मुद्दा, बीजिंग को चेतावनी

भारत ने क्वैड बैठक में अपरोक्ष रूप से उठाया चीनी घुसपैठ का मुद्दा, बीजिंग को चेतावनी

चीन के साथ तनाव और वास्तविक नियंत्रण रेखा के आर- पार हज़ारों सैनिकों की तैनाती के बीच भारत ने टोक्यो में हुई क्वैड बैठक में नाम लिए बग़ैर चीनी घुसपैठ का मुद्दा उठा कर बीजिंग को कड़ा संकेत दे दिया है। 

चीन के साथ तनाव और वास्तविक नियंत्रण रेखा के आर- पार हज़ारों सैनिकों की तैनाती के बीच भारत ने टोक्यो में हुई क्वैड बैठक में नाम लिए बग़ैर चीनी घुसपैठ का मुद्दा उठा कर बीजिंग को कड़ा संकेत दे दिया है। यह महत्वपूर्ण इसलिए है कि क्वैड के सदस्य देशों में सबके साथ चीन के रिश्ते तल्ख हैं। इसके अलावा 'एशिया का नैटो' कहे जाने वाले इस सुरक्षा समूह में भारत का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। दूसरे, यह बैठक ऐसे समय हो रही है जब समूह की नौसेनाओं का साझा अभ्यास 'मालाबार' अगले ही महीने होने को है। यह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में होगा और चीन इससे बेहद परेशान होता है।

क्वैड यानी क्वाड्रिलैटरल स्ट्रैटेजिक डॉयलॉग के सदस्य देश भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया हैं। यह सामरिक संगठन है, जिसे यूरोप और अमेरिका में अभी से ही 'एशिया का नैटो' कहा जाने लगा। चीन का मानना है कि उसे रोकने और उस पर अंकुश रखने के लिए ही इस संगठन की नींव डाली गई है।

भारत ने रखा अपना पक्ष

मंगलवार को टोक्यो में हुई क्वैड बैठक में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर के अलावा अमेरिका के माइक पॉम्पिओ, जापान के तोशिमित्सू मेतगी और ऑस्ट्रेलिया की मरीस पाइन भी थीं।

जयशंकर ने कहा कि 'भारत क्षेत्रीय एकता, संप्रभुता और विवादों के शांतिपूर्ण समाधान के पक्ष में है।' उन्होंने इसके साथ ही अंतरराष्ट्रीय नियमों के आधार पर समस्या के निपटारे की बात कही।

इसके साथ ही उन्होंने नियम-क़ानून, पादर्शिता, फ्रीडम ऑफ़ नैविगेशन और क्षेत्रीय संप्रभुता पर भी ज़ोर दिया। जयशंकर ने कहा, 'हमारा उद्येश्य सदस्य देशों की सुरक्षा और आर्थिक हितों की रक्षा करना है।'

अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पिओ ने खुल कर चीन का नाम लिया और उसे चेतावनी दी। उन्होंने क्षेत्र में 'चीन की ग़लत गतिविधियों' पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि 'क्वैड हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए काम करेगा।'

संकेतों में चीन को चेतावनी

इसका अर्थ बहुत ही साफ है, अमेरिका भारत के साथ चीन के तनाव से चिंतित है। इसी तरह भारत ने जब 'फ्रीडम ऑफ नैविगेशन' की बात कही तो उसने अमेरिका की मांग और हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन के दबदबे का विरोध ही किया।

क्यों है अहम

यह बैठक इसलिए भी अहम है कि कुछ दिन पहले ही भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच शिखर स्तर की बातचीत हुई। इसमें प्रधानमंत्री मोदी ने ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बात की। दोनों नेताओं ने दोनों देशों के बीच संबंधों को और मज़बूत करने पर ज़ोर दिया था। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि यह सभी समय है जब भारत और ऑस्ट्रेलिया संबंधों को और मज़बूत करें।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बातचीत के दौरान कहा था, 'हमारी दोस्ती को मज़बूत करने के लिए अनंत अवसर हैं। इसके साथ ही क्षमता को वास्तविकता में बदलने के लिए चुनौतियाँ भी आएँगी। हमारा संबंध क्षेत्र की स्थिरता के लिए एक फ़ैक्टर भी है। भारत ऑस्ट्रेलिया के साथ अपने संबंधों को मज़बूत करने के लिए प्रतिबद्ध है, यह न केवल हमारे दो देशों के लिए बल्कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र और पूरी दुनिया के लिए भी महत्वपूर्ण है।'

बता दें कि चीन और ऑस्ट्रेलिया के बीच बेहद तनावपूर्ण रिश्ते हैं। इसी तरह अमेरिका से भी चीन के खराब रिश्ते हैं और एक तरह का शीतयुद्ध चल रहा है। ऐसे में यह बैठक अहम हो जाती है।

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