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क्या मोदी की नेहरू से तुलना की जा सकती है? 

क्या मोदी की नेहरू से तुलना की जा सकती है? 

देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की विचारधारा क्या थी और वह किन तौर-तरीकों से काम करते थे? क्या उनकी तुलना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से की जा सकती है?

"भारत की सेवा करने का अर्थ है, लाखों पीड़ितों की सेवा करना। इसका अर्थ है- गरीबी अज्ञान, बीमारी तथा अवसरों की असमानता का उन्मूलन करना। हमारी पीढ़ी के महानतम व्यक्ति की इच्छा हर आँख से आँसू पोंछने की रही है। संभव है कि ऐसा कर पाना हमारी सामर्थ्य से बाहर हो परंतु जब तक लोगों की आँखों में आँसू और जीवन में पीड़ा रहेगी तब तक हमारा दायित्व पूरा नहीं होगा।" - जवाहरलाल नेहरू

जवाहरलाल नेहरू ने अपनी किताब 'यूनिटी ऑफ़ इंडिया' में लिखा है कि पहले विश्वयुद्ध के बाद भारत में दो तरह की क्रांतियाँ चल रही थीं- राष्ट्रीय और सामाजिक क्रांति। राष्ट्रीय क्रांति का लक्ष्य स्वतंत्रता प्राप्त करके हासिल हो गया लेकिन सामाजिक क्रांति निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद राष्ट्रीय एकता, समावेशी विकास, अवसर की समानता और अन्याय का उन्मूलन करने के लिए भारत के संविधान में विशेष प्रावधान किए गए। संसदीय लोकतंत्र के माध्यम से गणतंत्र स्थापित किया गया। व्यक्ति को इकाई बनाकर उसके संपूर्ण विकास और उन्नति के लिए बड़ी-बड़ी संस्थाएँ और संयंत्र स्थापित किए गए। व्यक्ति के गरिमापूर्ण जीवन को संवैधानिक अधिकार बनाया गया। लोकतंत्र को उत्तरदायी बनाने के लिए मज़बूत न्यायपालिका और मीडिया की आवश्यकता पर बल दिया गया। चुनाव आयोग, आरबीआई, योजना आयोग जैसी अनेक संवैधानिक संस्थाओं के ज़रिए लोकतंत्र के मज़बूत पाए खड़े किए गए। 

हालाँकि मूल संविधान में समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष शब्द नहीं थे, लेकिन संविधान सभा में निर्विवाद रूप से इन भावनाओं को संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों में शामिल किया गया। ये तमाम प्रावधान सामाजिक क्रांति के साधन थे। इनका लक्ष्य था- गरीबी से मुक्त और  गरिमा युक्त मनुष्य का जीवन। इसकी आवश्यकता पर जोर देते हुए डॉ. आंबेडकर ने संविधान सभा के अपने अंतिम भाषण में कहा था कि सामाजिक लोकतंत्र के बिना राजनीतिक आज़ादी को सुरक्षित नहीं रखा जा सकता। संविधान सभा में दक्षिणपंथी, वामपंथी, फेबियन समाजवादी, गांधीवादी और खुद आंबेडकर; जो देश के सबसे निचले वर्गों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, जयपाल सिंह मुंडा आदिवासियों की नुमाइंदगी कर रहे थे; तमाम विपरीत विचारधाराओं वाले लोग मौजूद थे। इसके बावजूद विभिन्न विषयों पर परस्पर सहमति के साथ संविधान का निर्माण हुआ।

नेहरू ने लोकतंत्र की सिर्फ़ बात नहीं की बल्कि लोकतांत्रिक होने का बार-बार सबूत दिया। नेहरू ने जो नजीर पेश की, वह हमारे भविष्य की मार्गदर्शक बनी। मसलन, एक घटना का ज़िक्र बार-बार नेहरू के संदर्भ में किया जाता है। एक बुजुर्ग महिला ने उनकी कॉलर पकड़कर पूछा था कि तुम प्रधानमंत्री बन गए लेकिन मुझे आज़ादी से क्या मिला? नेहरू ने उसे बुजुर्ग मां को ससम्मान जवाब दिया कि  'आजादी से आपको यह मिला कि प्रधानमंत्री का कॉलर पकड़कर पूछ रहे हो कि मुझे क्या मिला।' जनता के प्रति जवाबदेही सरकार और प्रधानमंत्री की होगी। लेकिन आज के हालात क्या हैं?

भारत को 'मदर ऑफ डेमोक्रेसी' बताने वाले नरेंद्र मोदी किसानों, आदिवासियों, दलितों और पिछड़ों के सवालों पर कोई जवाब देते। आज देश का किसान फिर से दिल्ली कूच करने के लिए क्यों मजबूर है? पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और सुदूर दक्षिण से किसान दिल्ली पहुँचकर प्रधानमंत्री के वादे पर कानूनी मोहर लगवाना चाहते हैं। 

लेकिन दिल्ली की सरहदों की किलेबंदी कर दी गयी है। सीमेंट की दीवारें खड़ी कर दी गईं। मोटी मोटी कीलें लगा दी गईं। बंदूकों से लैस पुलिस को लगाकर किसानों को रोका ही नहीं जा रहा है बल्कि मारा और पीटा भी जा रहा है। आंसू गैस के गोले छोड़कर उन्हें अंधा बनाने की साजिश भी हो रही है।

हम आज ऐसे दौर में आ चुके हैं, जब लोकतंत्र को बधिया कर दिया गया है। संविधान सभा ने देश के लोगों के हाथ में सत्ता की ताक़त सौंपी थी। उन लोगों को धर्मान्ध और विवेकहीन बनाकर दुर्योधन की तरह सत्ता को बंधक बना लिया गया है। इसके लिए लोकतंत्र का गला घोटने से भी परहेज नहीं किया जा रहा है। चुनी हुई सरकारों को गिराया जा रहा है। विधायकों-सांसदों को खरीदा जा रहा है। विपक्ष को ईडी-सीबीआई के जरिए डराया-धमकाया ही नहीं जा रहा है बल्कि जेलों में ठूँसा जा रहा है। मनीष सिसोदिया, संजय सिंह और हेमन्त सोरेन को सलाखों के भीतर पहुँचा दिया गया है। अरविंद केजरीवाल, तेजस्वी यादव और अखिलेश यादव पर तलवार लटकी हुई है।

नरेंद्र मोदी 2014 में अच्छे दिन का वादा करके सरकार में आए थे। काला धन वापस लाने, भ्रष्टाचार मिटाने, प्रत्येक व्यक्ति के खाते में 15 लाख रुपए जमा करने, किसानों की आमदनी दोगुनी करने, महिलाओं को सुरक्षा देने और बेरोजगारों को प्रतिवर्ष 2 करोड़ रोजगार देने का वादा नरेंद्र मोदी ने किया था। लेकिन आज लोगों को मिल रहा है तो सिर्फ मुफ्त राशन। जहां देश में गरीबी कम होने का ढिंढोरा पीटा जा रहा है, वहीं 80 करोड़ लोगों को 5 किलो राशन दिया जा रहा है। लोगों के पास ना रोजगार है और ना उन्हें सम्मान मिल रहा है। सरकारी नौकरियां तो जैसे गायब हो गई हैं! देश की दौलत कुछ चुने हुए पूंजीपतियों के हवाले की जा रही है। अंबानी और अडानी की तिजोरियाँ भरी जा रही हैं। बदले में कारपोरेट मीडिया नरेंद्र मोदी की ब्रांडिंग कर रहा है। सच को छुपाया जा रहा है। असफलता को ढोंग से ढका जा रहा है। देश बदहाली के रसातल में जा रहा है और प्रधानमंत्री समुद्र तल में जाकर प्राणायाम कर रहे हैं। मजमा लगाने वाले जादूगर की तरह प्रधानमंत्री कभी हवा में हाथ हिलाकर तो कभी पानी में डुबकी लगाकर लोगों को करतब दिखा रहे हैं। मोदी जन की, नहीं बल्कि मन की बात कर रहे हैं। 

नौजवानों की तकलीफों का आलम यह है कि कोई पेड़ से लटककर तो कोई जहर खाकर जान दे रहा है। सरेआम महिलाओं की आबरू लूटी जा रही है। दलितों को कहीं लाठियों से पीटा जा रहा है तो कहीं गोली मारी जा रही है। आदिवासियों को कहीं उल्टा लटकाया जा रहा है तो कहीं मुंह पर पेशाब की जा रही है। अल्पसंख्यकों के घरों पर बुलडोजर ही नहीं चलाए जा रहे हैं, उनके अरमान भी रौंदे जा रहे हैं। उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक बनाया जा रहा है। देश के वंचित समाज को अधिकारों से हीन बनाकर उसे मूक और बधिर बनाया जा रहा है। लेकिन देश को विश्वगुरु बनाने का जुमला उछाला जा रहा है। 

आज जब राहुल गांधी भारत जोड़ो न्याय यात्रा लेकर निकल रहे हैं तो भाजपा की ट्रोल मशीनरी रात-दिन उनकी छवि खराब करने में लगी हुई है। ये वही राहुल गांधी हैं जिनके परनाना जवाहरलाल नेहरू ने इस देश में लोकतंत्र की बुनियाद रखी थी। अंग्रेजी साम्राज्यवाद से मुक्ति की खातिर 9 साल जेल काटी थी।

दस साल की सत्ता के बाद नरेंद्र मोदी हर समस्या के लिए नेहरू को जिम्मेदार ठहराते हैं। नेहरू की अपार लोकप्रियता, बौद्धिक क्षमता और  जनपक्षधरता से कुंठित आज के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नेहरू बनने का सपना देखते हैं। लेकिन यह देश जानता है कि सावरकर और गोलवरकर के पदचिन्हों पर चलने वाले नरेंद्र मोदी कभी नेहरू का शतांश भी नहीं बन सकते। क्योंकि नेहरू होने के लिए किसानों और मजदूरों से हमदर्दी चाहिए। आदिवासियों और दलितों के प्रति सम्मान चाहिए। संविधान और संस्थाओं के प्रति प्रतिबद्धता चाहिए। जनता के प्रति जवाबदेही और राष्ट्र के लिए त्याग चाहिए। नरेंद्र मोदी ने अपने दस साल के शासन में यह साबित कर दिया है कि उनमें ऐसी कोई खूबी नहीं है। उन्होंने सत्ता को सिर्फ अपने और अपने दोस्तों के लिए भरपूर इस्तेमाल किया है और लोगों को पकड़ा दिया है हिंदुत्व का झुनझुना!

(लेखक दलित चिंतक है) 

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