नेहरू पर फिर से बवाल मचा है। एक चर्चा में सावरकर के माफीनामे का ज़िक्र आया तो नेहरू को लेकर भी ऐसा ही दावा कर दिया गया। कहा गया कि नेहरू ने भी तो गिरफ्तारी से छूटने के लिए माफीनामा लिखा था। इसका जोरदार खंडन किया गया। फिर बात सबूत की आ गई। तो सवाल है कि क्या ऐसा कुछ सबूत है?
इस सवाल का जवाब जानने से पहले यह जान लें कि आख़िर नेहरू का यह मुद्दा उठा कहाँ से। दरअसल, यह विवाद उठा 'साहित्य आजतक' के कार्यक्रम में। कार्यक्रम में लेखक और इतिहास के जानकार अशोक कुमार पांडेय और प्रोफेसर संगीत कुमार रागी जैसी शख्सियतें शामिल थीं। गांधी, नेहरू और सावरकार को लेकर अपनी टिप्पणी में अशोक कुमार पांडेय ने सावरकर के छह माफीनामे का ज़िक्र किया। इस पर उनसे कहा गया कि 'माफीनामा तो नेहरू का भी था तो उसका ज़िक्र क्यों नहीं होता है?' इस पर अशोक कुमार पांडेय ने कहा कि नेहरू का कोई भी माफीनामा नहीं था और उन्होंने कभी भी ऐसी कोई माफी नहीं मांगी थी।
दरअसल, अशोक कुमार पांडेय के सामने दलील दी गई कि 'नाभा रियासत में गैर क़ानूनी ढंग से प्रवेश करने पर औपनिवेशिक शासन ने जवाहरलाल नेहरू को 2 साल की सजा सुनाई थी। तब नेहरू ने भी कभी भी नाभा रियासत में प्रवेश न करने का माफीनामा देकर दो हफ्ते में ही अपनी सजा माफ करवा ली और रिहा भी हो गए।' इस दलील को अशोक कुमार ने खारिज कर दिया और दावा किया कि ऐसा कोई माफीनामा नहीं लिखा गया था।
उन्होंने दावा किया कि नाभा घटना का ज़िक्र और कहीं नहीं मिलता है और इसका ज़िक्र सिर्फ़ नेहरू की आत्मकथा में है। वह कहते हैं कि मोतीलाल नेहरू ने माफीनामा लिखने का सुझाव दिया जिसपर नेहरू इतने नाराज़ हुए कि उन्होंने पत्र लिखा कि इस तरह के किसी माफीनामे ज़रूरत नहीं है। वह यह भी दावा करते हैं कि ऐसा कोई माफीनामा है ही नहीं।
सोशल मीडिया पर नेहरू के इस मामले ने तूल पकड़ लिया। नेहरू की आत्मकथा में 'एन इंटरल्यूड एट नाभा' शीर्षक से एक चैप्टर में इस घटना का विस्तार से ज़िक्र है। वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष ने उसके कुछ अंश को ट्वीट किया है, 'नेहरू से प्रशासन ने कहा- माफ़ी माँगो। नेहरू ने कहा- उलटे प्रशासन माफ़ी माँगे। नेहरू को सजा हुई।'
अपनी आत्मकथा में उस घटना का ज़िक्र करते हुए नेहरू लिखते हैं, '...इस बीच प्रशासन की ओर से सुप्रींटेंडेंट ने हमसे संपर्क किया और हमसे कहा गया कि यदि हम माफी मांग लेते हैं और लिखित में वचन देते हैं कि हम नाभा से चले जाएँगे तो हमारे ख़िलाफ़ कार्रवाई हटा ली जाएगी। हमने जवाब दिया कि माफी मांगने जैसी कोई बात नहीं है। जहाँ तक हमारा मामला है तो प्रशासन को हमसे माफी मांगनी चाहिए। हम कोई लिखित में वचन देने को तैयार नहीं हैं।'
अपने पिता के नाभा आने को लेकर नेहरू ने एक जगह लिखा है, '...उनको (मोतीलाल नेहरू) नाभा में मेरे पास पहुँचने में दिक्कतें खड़ी की गईं, लेकिन आख़िर में उनको जेल में मेरा साक्षात्कार लेने की इजाजत मिली। क्योंकि मैं अपना डिफेंड नहीं कर रहा था, इसलिए वह मेरे लिए कोई मदद नहीं कर पाए। मैंने उनसे वापस इलाहाबाद जाने के लिए कहा और चिंता नहीं करने को कहा। वह लौट गए...।'
उन्होंने किताब में आगे लिखा है, 'हमें सजा हुई। हमें यह पता नहीं है कि फैसले में क्या लिखा गया, लेकिन लंबे-चौड़े फैसले का कड़वा सच यह है कि इसका गहरा असर हुआ।'