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जम्मू-कश्मीर : गिलानी, महबूबा के परिजन भी पेगासस जासूसी के निशाने पर

जम्मू-कश्मीर : गिलानी, महबूबा के परिजन भी पेगासस जासूसी के निशाने पर

जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी नेता, राज्य की मुख्यधारा के राजनीतिक दलों से जुड़े लोग, पत्रकार, मानवाधिकार कार्यकर्ता और दूसरे लोग भी पेगासस सॉफ़्टवेअर के निशाने पर थे। 

जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी नेता, राज्य की मुख्यधारा के राजनीतिक दलों से जुड़े लोग, पत्रकार, मानवाधिकार कार्यकर्ता और दूसरे लोग भी पेगासस सॉफ़्टवेअर के निशाने पर थे। 

एनएसओ के डेटाबेस में जिन लोगों के फ़ोन नंबर हैं, उनमें सबसे प्रभावशाली अलगाववादी नेता सैयद अली गिलानी, उनके परिवार के लोग, हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के मीरवाइज़ उमर फ़ारूक़, बीजेपी के नज़दीक समझे जाने वाले अल्ताफ बुख़ारी के भाई तारिक, पीडीपी की नेता महबूबा मुफ़्ती के परिजन, मुख्यधारा की राजनीति के दूसरे ब़ड़े नेता बिलाल लोन, मानवाधिकार कार्यकर्ता वक़ार भट्टी, कई पत्रकार समेत 25 लोग शामिल हैं।

इन सबके फ़ोनों की फोरेंसिक जाँच नहीं हो पाई, इसलिए यह दावा नहीं किया जा सकता है कि इनके फ़ोन वाकई संक्रमित हुए, पर यह तो साफ है कि ये जासूसी के निशाने पर थे। 

'द वायर' ने पेगासस प्रोजेक्ट के हवाले से यह ख़बर दी है। 

क्या है पेगासस प्रोजेक्ट?

फ्रांस की ग़ैरसरकारी संस्था 'फ़ोरबिडेन स्टोरीज़' और 'एमनेस्टी इंटरनेशनल' ने लीक हुए दस्तावेज़ का पता लगाया और 'द वायर' और 15 दूसरी समाचार संस्थाओं के साथ साझा किया।

इसका नाम रखा गया पेगासस प्रोजेक्ट। 'द गार्जियन', 'वाशिंगटन पोस्ट', 'ला मोंद' ने 10 देशों के 1,571 टेलीफ़ोन नंबरों के मालिकों का पता लगाया और उनकी छानबीन की। उसमें से कुछ की फ़ोरेंसिक जाँच करने से यह निष्कर्ष निकला कि उनके साथ पेगासस स्पाइवेअर का इस्तेमाल किया गया था।

इसके तहत 40 पत्रकारों समेत भारत के 300 से ज़्यादा लोगों की जासूसी की गई। 

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गिलानी

सैयद अली शाह गिलानी के परिवार के कम से कम चार लोग, उनका दामाद पत्रकार इफ़्तिख़ार गिलानी, बेटा सैयद नसीम गिलानी और दूसरे लोग 2017 से 2019 तक पेगासस के निशाने पर थे। 

सैयद शाह गिलानी के पास फ़ोन नहीं रहता है। नसीम गिलानी ने 'द वायर' से कहा कि उनके पिता के राजनीतिक विचारों की वजह से उन्हें निशाना बनाया गया। 

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हुर्रियत कॉन्फ्रेंस

हुर्रियत कान्फ़्रेंस के नेता मीरवाइज उमर फ़ारूक़ में पेगासस की दिलचस्पी 2017 से 2019 तक रही। यह राज्य के 17 अलगाववादी संगठनों का शीर्ष संगठन है। 

अलगाववादी नेता बिलाल लोन और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एस. ए. आर. गिलानी के फ़ोन में पेगासस सॉफ़्टवेअर लगाया गया था और फोरेंसिक जाँच से यह बात साबित होती है।

एमनेस्टी इंटरनेशनल के सिक्योरिटी लैब ने लोन के फ़ोन की जाँच की थी। हालांकि उस समय तक फोन बदला जा चुका था, उसके संक्रमित होने की पुष्टि हुई थी। 

बिलाल लोन ने अपने भाई सज्ज़ाद लोन से अलग होकर एक पार्टी बनाई थी-पीपल्स इंडीपेंडेंट पार्टी। हालांकि वे अब बहुत सक्रिय नहीं हैं और अपना ज़्यादातर समय ग़ैर-राजनीतिक गतिविधियों में लगाते हैं, पेगासस के निशान पर वे भी थे। 

उन्होंने 'द वायर' से कहा कि उन्होंने फ़ोन टैप होने की अफवाहें सुनी थीं, पर कभी यह यकीन नहीं किया था कि वाकई उनकी जासूसी की जाएगी। 

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मेहबूबा मुफ़्ती, पूर्व मुख्यमंत्री, जम्मू-कश्मीर

जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती के कम से कम दो परिजनों के नाम एनएसओ के डेटाबेस में हैं। दिलचस्प बात यह है कि उस समय यानी 2018 में राज्य में पीडीपी-बीजेपी की साझा सरकार थी और मुफ़्ती मुख्यमंत्री थीं।उसके कुछ दिन बाद ही बीजेपी ने समर्थन वापस ले लिया और महबूबा मुफ़्ती की सरकार गिर पड़ी। 

अल्ताफ़ बुखारी

जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी के नेता अल्ताफ़ बुखारी के भाई तारिक बुख़ारी का नाम भी इस सूची में 2017 से 2019 तक था। 

राष्ट्रीय जाँच एजेन्सी यानी एनआईए ने 2019 में टेरर फंडिंग के एक मामले में तारिक बुखारी से पूछताछ की थी। 

मानवाधिकार कार्यकर्ता

मानवाधिकार कार्यकर्ता वक़ार भट्टी भी जासूसी के निशाने पर थे। उन्होंने 'द वायर' से कहा, "सरकार ऐसे लोगों को पसंद नहीं करती है जो कश्मीर में किसी तरह के कार्यकर्ता होते हैं।" 

पत्रकार

पेगासस सॉफ़्टवेअर के निशाने पर रहने वाले कश्मीरी पत्रकारों की सूची लंबी है। 'इंडियन एक्सप्रेस' के मुजम्मिल जमील, 'हिन्दुस्तान टाइम्स' के औरंगजेब नक्शबंदी, 'डीएनए' के इफ़्तिख़ार गिलानी, 'पीटीआई' के समीर कौल निशाने पर थे। 

नई दिल्ली में रहने वाले जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक विश्लेषक शबीर हुसैन का नाम भी एनएसओ की सूची में है। 

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