जम्मू-कश्मीर : पंडितों के पलायन के पीछे आईएसआई?
क्या जम्मू-कश्मीर से बाहरी लोगों और स्थानीय पंडितों का पलायन पाकिस्तानी खुफ़िया एजेन्सी आईएसआई की चाल है? क्या वह इसके ज़रिए घाटी में डर का माहौल बना कर अल्पसंख्यक हिन्दुओं को घर-बार छोड़ कर भागने को मजबूर करने की रणनीति अपना रहा है?
भारतीय खुफ़िया एजेन्सियों और सुरक्षा बलों का तो यही मानना है। एक उच्च पदस्थ अधिकारी के हवाले से 'टाइम्स ऑफ़ इंडिया' ने कहा है, "जम्मू-कश्मीर में क़ानून व्यवस्था अच्छी रहने से आईएसआई परेशान हो गया और उसने घाटी में गड़बड़ी शुरू कर दी।"
श्रीनगर के दवा विक्रेता माखन लाल बिंदरू की हत्या पर भारतीय खुफ़िया एजेन्सी के एक अधिकारी ने कहा,
“
इस वारदात से पाकिस्तान को लगा कि इसके जरिए जम्मू-कश्मीर में सांप्रदायिक दंगे कराए जा सकते हैं।
पिछले दो हफ्ते में घाटी में 11 आम नागरिकों की हत्या कर दी गई, जिनमें कुछ बिहार और उत्तर प्रदेश जैसी जगहों से आए हुए ग़रीब लोग हैं।
आईएसआई रणनीति!
पर्यवेक्षकों का कहना है कि आईएसआई की रणनीति यह है कि घाटी में आम नागरिकों और ख़ास कर हिन्दुओं को निशाने पर लेने से यह संकेत जाएगा कि राज्य की स्थिति सामान्य नहीं है।
इन हत्याओं से कश्मीर के अल्पसंख्यक हिन्दू घाटी छोड़ कर भाग जाएंगे तो 1990 के दशक जैसी स्थिति बनाने में आईएसआई को कामयाबी मिलेगी।
आईएसआई यह भी संकेत देना चाहता है कि अनुच्छेद 370 ख़त्म किए जाने के बावजूद बाहर के लोग कश्मीर में नहीं रह सकते, वह ऐसी स्थिति बना देगा कि लोग राज्य में बसने की बात सोचें भी नहीं।
जिस समय कश्मीर घाटी में इस तरह का आतंकवादी तांडव चल रहा है, आतंकवादियों ने कई जगहों पर सुरक्षा बलों को उलझा रखा है। अलग-अलग जगहों पर हुई मुठभेड़ों में आठ भारतीय सैनिक मारे गए हैं।
मुठभेड़
पर्यवेक्षकों का कहना है कि इसके पीछे भी पाकिस्तान का हाथ है। ये आतंकवादी पाकिस्तान से आए हुए हैं और पाकिस्तानी सेना ने उन्हें भारत में घुसने में मदद की है।
पाकिस्तान इस तरह भारत पर दोतरफा हमला बोल रहा है। एक तरफ वह निहत्थे आम नागरिकों पर हमला बोल रहा है और दूसरी तरफ सुरक्षा बलों को फँसाए हुए है।
चुनौती
पर्यवेक्षकों का कहना है कि भारतीय प्रशासन के समय फिलहाल चुनौती यह है कि वह कश्मीर से लोगों का पलायन किसी तरह रोके और उनमें यह विश्वास जगाए कि सुरक्षा एजेन्सियाँ उनकी सुरक्षा में तत्पर है। लेकिन यह भी सच है कि यह कहना आसान है, करना बेहद मुश्किल है।पर्यवेक्षकों का कहना है कि राजनीतिक नेतृत्व ऐसे में अहम भूमिका निभाते हैं।
अनुच्छेद 370 ख़त्म किए जाने के बाद जिस तरह स्थानीय राजनीतिक नेतृत्व को जेलों में डाल कर अप्रासंगिक करने की कोशिश की गई, वे इस हालत में नहीं है कि लोगों के बीच जाकर उनका नेतृत्व कर सकें।
विश्लेषकों का मानना है कि भारतीय राज्य ने जिस तरह स्थानीय नेतृत्व को बदनाम किया, उससे उनकी खुद की विश्वसनीयता संदेह में है, वे कैसे लोगों को आश्वस्त करेंगे।
ये ऐसी चुनौतियाँ हैं, जिनका सामना भारत को करना ही होगा। इसमें होने वाली हर चूक का फ़ायदा आईएसआई उठाएगा।