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370: अब सरकार ने ही माना- दुकानें बंद, सार्वजनिक परिवहन नहीं

370: अब सरकार ने ही माना- दुकानें बंद, सार्वजनिक परिवहन नहीं

लीजिए, अब सरकार ही चीख-चीख कर कह रही है कि जम्मू-कश्मीर में सबकुछ ठीक नहीं है। जम्मू-कश्मीर सरकार ने तो इसके लिए विज्ञापन तक निकाला है। 

लीजिए, अब सरकार ही चीख-चीख कर कह रही है कि जम्मू-कश्मीर में सबकुछ ठीक नहीं है। जम्मू-कश्मीर सरकार ने तो इसके लिए विज्ञापन तक निकाला है। हालाँकि, इस विज्ञापन का प्रधानमंत्री मोदी के 'हाउडी मोदी' वाले उस भाषण से कोई लेना देना नहीं है जिसमें उन्होंने कहा था- 'भारत में सब अच्छा है!' 

तो सवाल उठता है कि सरकार ही इस सवाल का जवाब क्यों देती रही है कि ‘सबकुछ ठीक है’, लेकिन अब उसी सरकार ने विज्ञापन जारी कर कहा है कि 'ठीक नहीं' है? जम्मू कश्मीर सरकार के विज्ञापन का पहली लाइन है, ‘दुकानें बंद’, ‘कोई सार्वजनिक परिवहन नहीं’। पाँच अगस्त को अनुच्छेद 370 में बदलाव किए जाने के बाद यह पहली बार है कि सरकार ने ऐसी बात मानी हो। इससे पहले तो सरकार ये दावे करती रही है कि राज्य में शांति है और लोग सरकार के फ़ैसले का समर्थन कर रहे हैं। पाबंदी लगाए जाने के बाद हुए विरोध-प्रदर्शनों और पत्थरबाज़ी की घटनाओं की ख़बरों को भी सरकार यह कहकर ख़ारिज़ करती रही है कि दो महीन में एक गोली तक नहीं चली है। लेकिन सरकार अपने ही इन दावों को जम्मू-कश्मीर के कई अख़बारों में जारी अपने विज्ञापन में ‘झूठा’ साबित करती हुई दिखती है। 

यह विज्ञापन जम्मू-कश्मीर सरकार ने वहाँ के स्थानीय अख़बारों में शुक्रवार को जारी किया है। हालाँकि इस विज्ञापन को दूसरे मक़सद से जारी किया गया है, लेकिन इसके साथ-साथ कश्मीर में ख़राब हालात की कुछ बातों को स्वीकार किया गया है। विज्ञापन में यह साफ़-साफ़ कहा गया है कि ‘दुकानें बंद होने और सार्वजनिक परिवहन के बिल्कुल नहीं चलने से किसको फ़ायदा होगा?’ इसके बाद की अगली लाइन है कि ‘क्या हम आतंकवादियों के सामने हार मानने जा रहे हैं?’ बता दें कि सरकार की तरफ़ से बार-बार इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि अनुच्छेद 370 में बदलाव के बाद आतंकवाद और अलगाववाद ख़त्म होगा और राज्य का विकास होगा।

विज्ञापन में भी आतंकवादियों के साथ ही अलगाववादियों पर निशाना साधा गया है। इसमें कहा गया है, ‘अलगाववादी अपने बच्चों को विदेशों में पढ़ने, काम करने और पैसे कमाने के लिए भेजते हैं, जबकि वे आम लोगों को अपने बच्चों को हिंसा, पत्थरबाज़ी और हड़ताल करने के लिए भेजने के लिए उकसाते रहते हैं। वे आतंकियों की धमकी, दबाव और ग़लत सूचना से लोगों को बहकाते हैं। अब आतंकवादी भी वही धमकी और दबाव का इस्तेमाल करने लगे हैं। क्या हम यह सहेंगे?’

 - Satya Hindi

विज्ञापन में कहा गया है कि 70 सालों से जम्मू-कश्मीर को भरमाया गया है और लोग एक ख़ास प्रोपेगेंडा के शिकार हुए हैं। इसमें यह भी कहा गया है कि इसी कारण लोग आतंकवाद, हिंसा, तबाही और ग़रीबी में जकड़े हुए हैं। इन्हीं बातों का ज़िक्र करते हुए इसमें सवाल किया गया है कि क्या कुछ पोस्टरों और धमकियों के कारण व्यापार-धंधा, बच्चों की शिक्षा, रोजी-रोटी बर्बाद होने देंगे? लेकिन सरकार के इन तर्कों से सवाल उठता है कि क्या लोग कुछ पोस्टरों और आतंकियों की धमकी के कारण बाहर नहीं निकल रहे हैं? यदि ऐसा है तो चप्पे-चप्पे पर सुरक्षा बल तैनात करने का क्या मतलब?

दरअसल, यह सवाल उससे बड़ा है। आतंकी धमकी को छोड़िए, बड़े- से बड़े आतंकी हमले में भी लोगों ने दुकानें बंद नहीं कीं जब तक कर्फ़्यू लगाकर उनसे बंद करने को नहीं कहा गया। क्या कोई अपनी रोजी-रोटी कमाना यूँ ही छोड़ देगा? यदि सरकार को लगता है कि अनुच्छेद 370 में फेरबदल का राज्य में बिगड़े हालात से कुछ भी लेना देना नहीं है तो दो महीने बाद भी पाबंदी क्यों जारी है? 

हालाँकि, पाँच अगस्त को अनुच्छेद 370 में बदलाव किए जाने के बाद कुछ जगहों पर पाबंदी में छूट दी गई है, लेकिन स्थिति बेहतर नहीं है। एक रिपोर्ट के मुताबिक़ 400 से ज़्यादा नेताओं को गिरफ़्तार किया गया है। भारी संख्या में सशस्त्र बल तैनात किए गए हैं। पूरे क्षेत्र में संचार माध्यम बंद कर दिए गए और आवाजाही पर पाबंदी लगा दी गई। हालाँकि हाल के दिनों में कुछ जगहों पर लैंडलाइन सेवाओं की बहाली हुई है, लेकिन इंटरनेट सेवाएँ अभी भी बंद हैं। सोमवार को मोबाइल शुरू किए जाने की घोषणा की गई है। लेकिन अभी भी वहाँ सामान्य स्थिति बहाल नहीं हुई है।

लोगों को आपत्ति इसी बात को लेकर है कि केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के प्रावधानों में फेरबदल कर दिया और इससे राज्य को प्राप्त विशेष दर्जा समाप्त हो गया। राज्य को दो हिस्सों में बाँटकर जम्मू-कश्मीर और लद्दाख क्षेत्र को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया है। ऐसी रिपोर्टें आती रही हैं कि राज्य के लोगों को लगता है कि यह उनकी ज़िंदगी में एक तरह से दखल देना है। बाहरी लोगों के लिए जम्मू-कश्मीर में ज़मीन लेने की छूट मिलने से भी वे सशंकित हैं। 

स्वतंत्र स्तर पर ऐसी भी रिपोर्टें आती रही हैं कि सरकार को यदि इस तरह का फ़ैसला लेना ही था तो पहले वहाँ के आम लोगों और राजनेताओं को विश्वास में लेते। सद्भावपूर्ण माहौल में यदि अनुच्छेद 370 में बदलाव किया जाता तो न तो पाबंदी लगाने की ज़रूरत पड़ती और न ही राज्य में ऐसी स्थिति बनती जैसी की फ़िलहाल बनी है।

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