जामिया में छात्रों का प्रदर्शन, 14 से ज़्यादा हिरासत में क्यों?

08:19 pm Feb 13, 2025 | सत्य ब्यूरो

जामिया मिल्लिया इस्लामिया में फिर से बवाल मचा है। असहमति की आवाज़ दबाने का आरोप लगाकर प्रदर्शन करने वाले कई छात्रों को हिरासत में ले लिया गया है। दिल्ली पुलिस ने जामिया मिलिया इस्लामिया में विरोध प्रदर्शन और तोड़फोड़ का आरोप लगाते हुए 14 से ज़्यादा छात्रों को हिरासत में लिया है। हालाँकि, छात्र संगठनों का कहना है कि 20 से ज़्यादा छात्रों को पुलिस ने गुरुवार सुबह हिरासत में लिया और तब से उनका कुछ अता-पता नहीं चला है।

आईसा ने एक बयान जारी कर कहा है, 'जामिया मिल्लिया इस्लामिया के 20 से ज़्यादा छात्रों को सुबह-सुबह हिरासत में लिया गया। उनका पता अभी तक नहीं चला है। आईसा तत्काल रिहाई और पारदर्शिता की मांग करता है। अवैध हिरासत के खिलाफ़ खड़े हों!'

यह घटना विश्वविद्यालय प्रशासन और छात्र समूहों के बीच जारी तनाव को दिखाती है। विश्वविद्यालय अनुशासन बनाए रखने के लिए अपनी कार्रवाई को ज़रूरी बता रहा है। छात्रों का तर्क है कि विरोध और असहमति के उनके अधिकार को व्यवस्थित रूप से कम किया जा रहा है। 

ताज़ा विवाद 25 फरवरी को होने वाली एक महत्वपूर्ण अनुशासन समिति की बैठक से पहले हुआ। समिति नागरिकता संशोधन अधिनियम यानी सीएए के ख़िलाफ़ पिछले साल के विरोध प्रदर्शन के आयोजन के आरोपी दो पीएचडी छात्रों के मामले की समीक्षा करेगी। बता दें कि जामिया का नाम 2019 के सीएए विरोधी-प्रदर्शनों से जुड़ा रहा है। 

15 दिसंबर, 2019 को दिल्ली पुलिस ने कथित तौर पर विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में प्रवेश किया था और 'बाहरी लोगों' की तलाश करते हुए छात्रों पर लाठीचार्ज किया था। उस घटना ने नागरिकता संशोधन अधिनियम यानी सीएए और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी के ख़िलाफ़ देशव्यापी विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया था।

जामिया में ताज़ा विवाद इस सप्ताह की शुरुआत में परिसर में हुए एक बड़े विरोध-प्रदर्शन के बाद हुआ है। छात्रों की सक्रियता पर प्रशासन की कार्रवाई के ख़िलाफ़ बड़ी संख्या में छात्रों ने प्रदर्शन किया था।

विरोध-प्रदर्शन का नेतृत्व ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन यानी एआईएसए और ऑल इंडिया रिवॉल्यूशनरी स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइज़ेशन एआईआरएसओ सहित वामपंथी छात्र समूहों ने किया था। उन्होंने विश्वविद्यालय पर छात्र असंतोष को दबाने का आरोप लगाया था।

गुरुवार की सुबह प्रॉक्टोरियल टीम ने पुलिस के सहयोग से छात्रों को विरोध स्थल से बाहर निकाल दिया ताकि परिसर में सामान्य स्थिति बहाल हो सके। विश्वविद्यालय के अधिकारियों द्वारा पहचाने गए 14 लोगों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया गया। अशांति को देखते हुए विश्वविद्यालय के सभी द्वारों पर सुरक्षा बढ़ा दी गई, अर्धसैनिक बलों के जवानों और दंगा-रोधी वाहनों को बाहर तैनात किया गया। विश्वविद्यालय की सुरक्षा ने परिसर में प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया और सिर्फ़ वैध पहचान पत्र दिखाने वाले छात्रों को ही प्रवेश की अनुमति दी गई। 

सुप्रीम कोर्ट के जाने माने वकील और एक्टिविस्ट प्रशांत भूषण का कहना है, 'जामिया में शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन पर यह क्रूर कार्रवाई मौलिक अधिकारों का गंभीर उल्लंघन है और इस बढ़ती धारणा को दिखाती है कि हम एक फासीवादी सरकार के अधीन रह रहे हैं।' 

एसएफ़आई ने कहा है, 'सुबह करीब 5 बजे जामिया मिल्लिया इस्लामिया के कई छात्रों को दिल्ली पुलिस ने प्रदर्शन स्थल से हिरासत में ले लिया। सुबह 7 बजे से ही चिंतित छात्र और छात्र नेता कालकाजी पुलिस स्टेशन के बाहर जमा हो गए और घटना के बारे में जानकारी की मांग करने लगे।'

इस मामले में विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि 10 फरवरी की शाम से छात्रों का एक छोटा समूह अवैध रूप से शैक्षणिक ब्लॉक में इकट्ठा हुआ था। इस कारण बाधाएँ आईं और विश्वविद्यालय की संपत्ति को नुक़सान पहुँचा। टीओआई की रिपोर्ट के अनुसार विश्वविद्यालय के एक अधिकारी के अनुसार, छात्रों ने दो दिनों में विश्वविद्यालय की संपत्ति को नुक़सान पहुँचाया। इसमें केंद्रीय कैंटीन को नुकसान पहुँचाना और सुरक्षा सलाहकार का गेट तोड़ना शामिल है। प्रशासन ने आरोप लगाया है कि दीवारों को नुकसान पहुँचा, शैक्षणिक गतिविधियों में बाधा आई और कुछ छात्रों द्वारा प्रतिबंधित सामान रखा गया। हालाँकि, छात्रों का दावा है कि वे शांतिपूर्वक विरोध-प्रदर्शन कर रहे थे और उन्हें हिरासत में ले लिया गया है।

(इस रिपोर्ट का संपादन अमित कुमार सिंह ने किया है)