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विदेश मंत्री के ग़ुस्से से भारत का ही नुक़सान!

विदेश मंत्री के ग़ुस्से से भारत का ही नुक़सान!

किसान आंदोलन पर कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रडो की प्रतिक्रिया के बाद भारत के विदेश मंत्री जयशंकर द्वारा कनाडा द्वारा आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय संवाद का भी बहिष्कार कर दिया गया है। 

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रडो, ब्रिटेन के 36 सांसदों और संयुक्तराष्ट्र के महासचिव अंतोनियो गुतरोस ने भी भारत में चल रहे किसान-आंदोलन से सहानुभूति व्यक्त की है। उन्होंने यही कहा है कि उन्हें शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने देना चाहिए और उनकी कठिनाइयों को सरकार द्वारा दूर किया जाना चाहिए। इस पर हमारे कुछ सरकारी और बीजेपी-प्रवक्ता भड़क उठे हैं। वे इन लोगों से कह रहे हैं कि आप लोग हमारे अंदरुनी मामलों में टांग क्यों अड़ा रहे हैं 

उनका यह सवाल रस्मी तौर पर एक दम ठीक है। वह इसलिए भी ठीक है कि भारत सरकार के मंत्रिगण किसान नेताओं के साथ बहुत नम्रता और संयम से बात कर रहे हैं और बातचीत से ही इस समस्या का समाधान निकालना चाहते हैं। असली सवाल यह है कि इसके बावजूद ये विदेशी लोग भारत सरकार को ऐसा उपदेश क्यों दे रहे हैं शायद इसका कारण यह रहा हो कि पिछले हफ्ते जब यह आंदोलन शुरू हुआ तो हरियाणा और दिल्ली की केंद्र सरकार ने किसानों के साथ कई ज्यादतियाँ की थीं लेकिन विदेशी लोगों को फिर भी क्या अधिकार है, हमारे आंतरिक मामलों में टांग अड़ाने का 

इसका एक बड़ा कारण यह भी हो सकता है कि कनाडा और ब्रिटेन में हमारे किसानों के रिश्तेदार बड़े-बड़े पदों पर विराजमान हैं। उन्होंने अपने रिश्तेदारों को अपनी करुण-कथा बढ़ा-चढ़ाकर सुनाई होगी। उन रिश्तेदारों ने उन देशों के शीर्ष नेताओं को प्रेरित किया होगा कि वे उनके रिश्तेदारों के पक्ष में बोलें। तो उन्होंने बोल दिया। 

उनके ऐसे बोले पर हमारी सरकार और बीजेपी प्रवक्ता का इतना चिढ़ जाना मुझे ज़रूरी नहीं लगता। हालाँकि उनका यह तमाचा ट्रूडो पर सही बैठा है कि विश्व-व्यापार संगठन में जो ट्रूडो सरकार किसानों को समर्थन मूल्य देने का डटकर विरोध कर रही है, वह किस मुँह से भारत सरकार पर उपदेश झाड़ रही है

 - Satya Hindi

भारत के विदेश मंत्री जयशंकर द्वारा कनाडा द्वारा आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय संवाद का भी बहिष्कार कर दिया गया है। उन्होंने ऐसा ही अमेरिकी सांसद प्रमिला जयपाल के एक बयान पर आपत्ति दिखाने के लिए किया था। उन्हें अपने ग़ुस्से पर काबू करना चाहिए, वरना ये छोटी-छोटी लेकिन उग्र प्रतिक्रियाएँ हमारी विदेश नीति के लिए हानिकर सिद्ध हो सकती हैं। आधुनिक दुनिया बहुत छोटी हो गई है। विभिन्न देशों के राष्ट्रहितों ने अंतरराष्ट्रीय स्वरूप ले लिया है। इसीलिए देशों के आंतरिक मामलों में विदेशी हस्तक्षेप अपने आप हो जाता है।

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