एक थप्पड़ में ही तोते की तरह बोलने लगा था मसूद अज़हर
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने आतंकवादी संगठन जैश-ए-मुहम्मद के सरगना मसूद अज़हर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित कर दिया है। आइए जानते हैं कि मसूद अज़हर कौन है और कैसे वह आतंकवादी बना।
जिस उम्र में अधिकतर युवा यह तय नहीं कर पाते कि वे भविष्य में क्या बनेंगे, उस उम्र में मसूद अज़हर आतंकवादी बनने का फ़ैसला कर चुका था।10 जुलाई 1968 को पाकिस्तानी पंजाब के बहावलपुर में जन्मे अज़हर के पिता अल्लाह बख़्श शब्बीर एक सरकारी स्कूल में टीचर थे। अज़हर के पाँच भाई और छह बहनें थीं। जैश के मुखिया के पिता देवबंदी विचारधारा को मानते थे और धार्मिक रूप से कट्टर थे।
हरक़त के संपर्क में आया
अज़हर का परिवार एक डेयरी और पोल्ट्री फ़ार्म चलाता था। 8 वीं कक्षा के बाद अज़हर को पाकिस्तान के कराची में जामिया उलूम उल इस्लामिया में पढ़ने के लिए भेज दिया गया। पढ़ाई के दौरान अज़हर आतंकवादी संगठन हरक़त उल मुजाहिदीन के आतंकवादी नेताओं के संपर्क में आया।
नहीं पूरी कर सका ट्रेनिंग
अज़हर को जिहाद की ट्रेनिंग लेने के लिए अफग़ानिस्तान में एक कैंप में भेजा गया। अज़हर का क़द सिर्फ़ 5 फ़ीट 3 इंच था और उसके साथी उसे मोटू कहकर पुकारते थे, इस कारण अज़हर को ख़ासी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। हैरानी की बात यह है कि दुनिया जिसके नाम पर ख़ौफ़ खाती है और जो दूसरों को खूंखार आतंकवादी बनाता है वह ख़ुद 40 दिन की जिहादी की ट्रेनिंग पूरी नहीं कर पाया और उसे कैंप छोड़ना पड़ा। इस घटना के बाद अज़हर जिहादी बनने का अपना सपना छोड़ चुका था और एक धार्मिक टीचर बन गया।
निकाली मैगजीन, बना मौलाना
इस्लाम की अच्छी जानकारी के कारण अज़हर को एक मैगजीन - ‘सदा-ए-मुजाहिदीन’ निकालने का काम मिल गया। इस मैगजीन में आतंकवादी संगठनों के लेख छपते थे। अज़हर के भाषण देने के अंदाज से कट्टरपंथी काफ़ी प्रभावित थे और धीरे-धीरे वह मौलाना मसूद अज़हर के नाम से जाना जाने लगा।
दिल्ली आया, अशोका होटल में रुका
बाबरी मसजिद ढहने की घटना ने अज़हर को अंदर तक हिला दिया था और वह मन-ही-मन बदले की कार्रवाई के लिए ख़ुद को तैयार करने लगा था। 1994 में अज़हर पुर्तगाल के पासपोर्ट पर ढाका पहुँचा और वहाँ से दिल्ली आया। दिल्ली में अज़हर अशोक होटल में ठहरा।
अज़हर अयोध्या में ढह चुकी बाबरी मसजिद के सामने पहुँचा। जानकारी के मुताबिक़, अज़हर ने संकल्प लिया कि जब तक बाबरी मसजिद फिर से नहीं बन जाती तब तक वह चैन से नहीं बैठेगा।
फ़रवरी 1994 में अज़हर को अनंतनाग में पकड़ा गया। पकड़े जाते समय सुरक्षा एजेंसियों को उसके बारे में पूरी जानकारी नहीं थी। गिरफ़्तारी के दौरान सुरक्षा अधिकारियों को अज़हर से पूछताछ के लिए ज़्यादा मुश्किल नहीं होती थी।
यह बताना दिलचस्प होगा कि जिसके नाम पर बड़ों-बड़ों की रुह काँप जाती है और जिसने न जाने कितने ख़ूंखार आतंकवादी बनाए, वह (अज़हर) ख़ुद एक बहुत ही कमजोर और कायर किस्म का आदमी है।
गिरफ़्तारी के दौरान थप्पड़ पड़ते ही अज़हर तोते की तरह बोलने लगता था। अज़हर बार-बार सुरक्षा अधिकारियों से कहता था कि आप लोग मुझे जानते नहीं हैं कि मैं कितना बड़ा आदमी हूँ और जल्द ही आईएसआई और पाकिस्तान उसे छुड़ाने की कोशिश करेंगे। और ऐसा हुआ भी।
वाजपेयी सरकार ने छोड़े तीन आतंकवादी
1994 में अज़हर को छुड़ाने के लिए कुछ विदेशी सैलानियों का अपहरण किया गया लेकिन आतंकवादियों का यह ऑपरेशन कामयाब नहीं रहा। 5 साल बाद 1999 में भारतीय विमान आईसी- 814 का अपहरण कर उसे कंधार ले जाया गया। यात्रियों की सलामती के ऐवज में तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह ख़ुद तीन चरमपंथियों - मौलाना मसूद अजहर, अहमद ज़रगर और शेख अहमद उमर सईद को लेकर अपने साथ कंधार गए थे।
शेख अहमद उमर सईद वही आतंकवादी था जिसने बाद में वॉल स्ट्रीट जनरल के रिपोर्टर डेनियल पर्ल का सिर कलम किया था और इस घटना से पूरी दुनिया में सनसनी फैल गई थी।
भारतीय क़ैद से छूटने के बाद अज़हर ने जैश-ए-मुहम्मद का गठन किया और जैश ने भारतीय संसद, गुजरात के गाँधी नगर में अक्षरधाम मंदिर और पठानकोट एयरफ़ोर्स स्टेशन पर हमले को अंजाम दिया। पुलवामा हमले के बाद मसूद अज़हर और इसके संगठन जैश-ए-मुहम्मद का नाम फिर से चर्चा में आया था।