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लोकतंत्र में व्यवधान, हंगामा नहीं हो सकता': जगदीप धनखड़

लोकतंत्र में व्यवधान, हंगामा नहीं हो सकता': जगदीप धनखड़

मणिपुर वीडियो और हिंसा के बाद चर्चा की मांग के लिए संसद में आ रहे लगातार व्यवधान के बीच उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने चेताया है। जानिए उन्होंने क्या कहा।

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने रविवार को कहा कि लोकतंत्र के मंदिरों में व्यवधान और हंगामे को राजनीतिक रणनीति के रूप में हथियार नहीं बनाया जा सकता है। उनकी यह टिप्पणी मणिपुर में जातीय हिंसा को लेकर संसद के मानसून सत्र में गतिरोध बने रहने के बाद आई।

कुछ दिन पहले ही मणिपुर में दो महिलाओं के वीडियो सामने आने के बाद देश भर में रोष है। मणिपुर में 3 मई को हिंसा शुरू होने के अगले दिन यानी 4 मई को दो महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाया गया व सामूहिक दुष्कर्म किया गया। 18 मई को एफ़आईआर हुई। फिर भी 62 दिन तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। अब कार्रवाई तब हो रही है जब उस घटना का वीडियो वायरल हुआ है और इसने पूरे देश को झकझोर दिया है। इस घटना के बाद ही विपक्ष संसद में सारा कामकाज ठप कर इस मुद्दे पर चर्चा की मांग कर रहा है। ऐसा नहीं होने पर कार्यवाही बाधित हो रही है।

बहरहाल, जामिया मिलिया इस्लामिया के दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा, 'लोकतंत्र जनता की भलाई के लिए संवाद, चर्चा, विचार-विमर्श और बहस के बारे में है। निश्चित रूप से लोकतंत्र व्यवधान और हंगामे के बारे में नहीं हो सकता है।' उन्होंने संसद में व्यवधान के ख़िलाफ़ बात की और कहा, 'संसद को हर पल चलने नहीं देने का कोई बहाना नहीं हो सकता।' इसके साथ ही उन्होंने कहा कि समाज के विकास के लिए शिक्षा महत्वपूर्ण है।

धनखड़ ने युवाओं से खुद को सशक्त बनाने के लिए कहा। कार्यक्रम में जगदीप धनखड़ ने कहा, 'निश्चित रूप से लोकतंत्र अशांति और व्यवधान नहीं हो सकता है। मुझे आपको यह बताते हुए दुख और पीड़ा हो रही है कि लोकतंत्र के मंदिरों को कलंकित करने के लिए व्यवधान और हंगामे को रणनीतिक साधन के रूप में हथियार बनाया गया है, जो बड़े पैमाने पर लोगों के लिए न्याय सुरक्षित करने के लिए कार्यात्मक होना चाहिए।'

धनखड़ ने कहा, 'संसद को हर पल चलने नहीं देने का कोई बहाना नहीं हो सकता है। देश के लोग इसकी बहुत बड़ी कीमत चुका रहे हैं... जब किसी विशेष दिन संसद में व्यवधान होता है, तो प्रश्नकाल नहीं हो सकता। प्रश्नकाल शासन में जवाबदेही और पारदर्शिता उत्पन्न करने का एक तंत्र है।'

उपराष्ट्रपति ने कहा, 'असहमति को विरोध में बदलना जनतंत्र के लिये अभिशाप से कम नहीं है। एक छत के नीचे विरोध और असहमति स्वाभाविक है। पर विरोध का प्रतिशोध में बदलना प्रजातंत्र के लिय हितकारी नहीं है। इसका एक ही निदान है- संवाद और विचार - विमर्श।'

उन्होंने छात्रों से कहा, 'युवाओं को खुद को सशक्त बनाना चाहिए - राजनीतिक नशे से नहीं, बल्कि स्वस्थ वातावरण और समाज के पोषण के अंतिम उद्देश्य के साथ क्षमता निर्माण और व्यक्तित्व विकास के माध्यम से।'

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