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केसीआर को मिला जगन का साथ, पर 'फ़ेडरल फ़्रंट' अब भी दूर

केसीआर को मिला जगन का साथ, पर 'फ़ेडरल फ़्रंट' अब भी दूर

बिना बीजेपी और बिना कांग्रेस के एक राजनीतिक मोर्चा बनाने की कोशिश में जुटे केसीआर को जगन मोहन रेड्डी के रूप में नया साथी मिल गया है। तो क्या अब फ़ेडरल फ़्रंट का रास्ता आसान हो गया है?

ग़ैर बीजेपी ग़ैर कांग्रेस राजनीतिक मोर्चा बनाने की कोशिश में जुटे तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) को जगन मोहन रेड्डी के रूप में नया साथी मिल गया है। केसीआर के बेटे और तेलंगाना राष्ट्र समिति के कार्यकारी अध्यक्ष के. तारक रामा राव (केटीआर) ने जगन से उनके घर पर मुलाक़ात की। उनके बीच संभावित ग़ैर बीजेपी ग़ैर कांग्रेस 'फेडरल  फ़्रंट' के बारे में चर्चा की गई। हालाँकि इस मुलाक़ात के बाद पत्रकारों से बातचीत के दौरान जगन ने फ़ेडरल फ़्रंट का हिस्सा बनने के साफ़ संकेत दे दिए हैं। ग़ौर करने वाली बात यह है कि केसीआर ने पहले ही यह घोषणा कर दी थी कि वह आंध्र में जाएँगे और चंद्रबाबू नायडू के ख़िलाफ़ प्रचार करेंगे। अब केटीआर और जगन की मुलाक़ात से यह साफ़ हो गया है कि केसीआर आंध्र में जगन की ही मदद करेंगे। 

वैसे, केसीआर की तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) का अस्तित्व सिर्फ़ तेलंगाना में ही है, लेकिन जिस तरह से चंद्रबाबू नायडू ने कांग्रेस, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) और तेलंगाना जन समिति के साथ मिलकर केसीआर के ख़िलाफ़ महागठबंधन खड़ा किया था उसने केसीआर को पूरी तरह से चंद्रबाबू विरोधी बना दिया। केसीआर संकेत दे चुके हैं कि आंध्र प्रदेश के विधानसभा चुनाव में वह चंद्रबाबू की हार के लिए काम करेंगे। केसीआर के साथी असदउद्दीन ओवैसी भी चंद्रबाबू के ख़िलाफ़ चुनाव प्रचार करने का एलान कर चुके हैं। आंध्र में मुख्यमंत्री चंद्रबाबू को जगन चुनौती दे रहे हैं। जगन की सीधी टक्कर चंद्रबाबू से है। इसी वजह से जो चंद्रबाबू का विरोधी है वह उसके साथ खड़े नज़र आएँगे। केसीआर के मामले में जगन ने ऐसे ही किया है। 

इसमें दो राय नहीं कि दक्षिण के दो बड़े राज्यों - आंध्र और तेलंगाना की दो बड़ी पार्टियों- टीआरएस और वाईएसआर कांग्रेस के साथ आ जाने से फ़ेडरल फ़्रंट की संभावनाओं को बल मिला है।

फ़ेडरल फ़्रंट के सामने परेशानी

लेकिन, फ़ेडरल फ़्रंट के अस्तित्व में आने को लेकर अब भी कई चुनौतियाँ हैं, कई सवाल हैं। फ़ेडरल फ़्रंट के लिए केसीआर देवेगौड़ा, ममता बनर्जी, नवीन पटनायक और स्टालिन से मिल चुके हैं। स्टालिन कांग्रेस के साथ हैं, सो उनके फ़ेडरल फ़्रंट में आने की फ़िलहाल कोई संभावना नहीं है। देवेगौड़ा के बेटे कुमारस्वामी की सरकार में कांग्रेस शामिल है, ऐसी स्थिति में उनके फ़ेडरल फ़्रंट में जुड़ने की संभावना भी नहीं बनती है। नवीन पटनायक ने साफ़ किया है कि वह बीजेपी और कांग्रेस से समान दूरी बनाए रखेंगे, लेकिन उन्होंने अभी फ़ेडरल फ़्रंट के बारे में कोई फ़ैसला नहीं लिया है। ग़ौर करने वाली बात यह है कि केसीआर से पहले ममता बनर्जी ग़ैर-कांग्रेस, ग़ैर-बीजेपी वाले फ़्रंट का प्रस्ताव दे चुकी हैं। लेकिन पिछ्ले कुछ महीनों से वह इसको आगे नहीं बढ़ा पाई हैं। अगर ममता फ़ेडरल फ़्रंट में आती हैं तो उनके केंद्र की राजनीति में अनुभव को ध्यान में रखते हुए केसीआर को फ़्रंट का नेतृत्व उन्हें देना पड़ सकता है।

अखिलेश-माया किस तरफ़

अगर बात दूसरी बड़ी क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियों की करें तो केसीआर को समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी से भी उम्मीद है। लेकिन अखिलेश यादव और मायावती ने अभी तक फ़ेडरल फ़्रंट के प्रस्ताव पर अपना रुख़ साफ़ नहीं किया है।

 - Satya Hindi

तमिलनाडु की एआईएडीएमके की रणनीति भी अभी किसी को पता नहीं चल पाई है। सूत्रों का कहना है कि अगर स्टालिन की डीएमके और कांग्रेस में क़रार हो जाता है तो वह बीजेपी के साथ जा सकती है। रही बात देश की दूसरी क्षेत्रीय पार्टियों की, तो वे या तो बीजेपी के साथ हैं या कांग्रेस के साथ।

  • जो तीन पार्टियाँ कांग्रेस और बीजेपी से समान दूरी बनाए रखते हुए फ़ेडरल फ़्रंट में शामिल हो सकती हैं वे अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी, महबूबा मुफ़्ती की जम्मू कश्मीर पीडीपी और असम गण परिषद हैं।

लेकिन यह बात साफ़ है कि केसीआर को जगन का साथ तो मिल गया है, लेकिन फ़ेडरल फ़्रंट को अस्तित्व में लाना आसान नहीं है, चुनौतियाँ कई हैं। लेकिन जगन के फ़ेडरल फ़्रंट की ओर रुख़ करने से यह बात फिर साबित हो गई है कि वह न तो बीजेपी के साथ जाएँगे और न ही कांग्रेस के साथ। चुनाव के बाद कुछ भी हो सकता है।

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