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टेरर फ़ंडिंग की जाँच में ख़ुलासा, पाकिस्तान से आती थी रकम

टेरर फ़ंडिंग की जाँच में ख़ुलासा, पाकिस्तान से आती थी रकम

एनआईए के सूत्रों के मुताबिक़, घाटी में आतंकी और अलगाववादी गतिविधियों के लिए पाकिस्तान और दुबई मूल के कारोबारियों से पैसा आता था।

टेरर फ़ंडिंग (आतंकवादी गतिविधियों के लिए धन जुटाना) में गिरफ़्तार आसिया अंद्राबी के बेटे की मलेशिया में चल रही पढ़ाई के लिए पैसे दुबई से जाते थे। इसी मामले में दो साल से जेल में बंद हवाला ऑपरेटर जहूर अहमद बटाली आसिया के बेटे की पढ़ाई के लिए पैसे मंगाया करता था। यही नहीं बटाली दूसरे अलगाववादी नेताओं के परिजनों की पढ़ाई के लिए भी पैसे का बंदोबस्त किया करता था। यह ख़ुलासा टेरर फ़ंडिंग मामले की तफ़्तीश कर रही एनआईए की जाँच में हुआ है।

ग़ौरतलब है कि टेरर फ़ंडिंग में गिरफ़्तार चार प्रमुख लोगों यासीन मलिक, शब्बीर शाह, आसिया अंद्राबी और पत्थरबाजों के पोस्टर बॉय मसरत आलम को आमने-सामने बिठाकर पूछताछ की गई थी जिसमें कई सनसनीखेज जानकारियाँ मिली हैं।

एनआईए के सूत्रों के मुताबिक़, इसी मामले में गिरफ़्तार अल्ताफ़ फंटूस के जहूर अहमद बटाली को भेजे गए कई ऐसे ई-मेल मिले हैं जिसमें अलगाववादी सैयद अली शाह गिलानी के बेटे और नाती से लेकर आसिया के बेटे तक की पढ़ाई के लिए पैसे मंगाने की बातें कही गईं हैं। कार्डियस यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर रहे अलगाववादी नेताओं के परिजनों की पढ़ाई के लिए पैसे का इंतजाम करने का काम बटाली के जिम्मे था।   

कई अहम जानकारियाँ मिलीं 

टेरर फ़ंडिंग की जाँच में एनआईए को लगातार सनसनीखेज़ जानकारियाँ मिल रही हैं। इसी तरह की एक सनसनीखेज़ जानकारी यह है कि गिलानी के बेटे नईम को पढ़ाई के लिए जब लंदन में दाख़िला नहीं मिला तो वह पाकिस्तान चला गया। जहाँ उसकी पढ़ाई के ख़र्चे का आईएसआई के संरक्षण में कश्मीर कमेटी ने बंदोबस्त किया। एनआईए को पता चला है कि वहाँ आईएसआई का ब्रिगेडियर नील उससे अक्सर मिलने आया करता था।

जाँच में यह बात भी सामने आई है कि घाटी में कहर बरपाने के आरोपी लगभग सारे मठाधीशों के परिजन जम्मू-कश्मीर सरकार के ही मुलाजिम हैं। गिलानी का बेटा जम्मू-कश्मीर में सरकारी नौकरी करता है। इनके नाती के लिए तो विशेष तौर पर एक वैकेंसी निकाली गई और उस पर सिर्फ़  साक्षात्कार से ही भर्ती भी हो गई। 

टेरर फ़ंडिंग में गिरफ़्तार शब्बीर शाह और आसिया अंद्राबी के परिजन भी घाटी में सरकारी नौकरी करते हैं। लेकिन फिर भी ये सारे लोग भारत के ख़िलाफ़ लड़ाई के लिए टेरर फ़ंडिंग करने वालों के हाथों की कठपुतली बने हुए हैं।

पाक और दुबई कनेक्शन

एनआईए सूत्रों के मुताबिक़, घाटी में आतंकी औऱ अलगाववादी गतिविधियों के लिए पाकिस्तान और दुबई मूल के कारोबारियों से पैसा आता था। भारत में आए इस पैसे को बाँटने के लिए आईएसआई एजेंट, दिल्ली में मौजूद पाक उच्चायोग आदि का इस्तेमाल किया जाता था। उच्चायोग में किसी कार्यक्रम के बहाने अलगाववादियों को बुलाया जाता था और वहीं पर पैसे दिए जाते थे।
आसिया अंद्राबी, शब्बीर शाह, यासीन और मसरत ने पूछताछ में कई ख़ुलासे किए हैं। मसरत आलम ने स्वीकार किया है कि पाक एजेंट घाटी में पैसे भेजते थे जो सैय्यद शाह गिलानी के माध्यम से पत्थरबाज़ों तक पहुँचाया जाता था। आसिया अंद्राबी ने भी विदेशी फ़ंड मिलने की बात स्वीकार की है और एनआईए ने उसके सामने बेटे की पढ़ाई पर आ रहे ख़र्च के सबूत भी रखे।

अंद्राबी ने स्वीकार किया है कि विदेश से मिलने वाली रकम का इस्तेमाल घाटी में महिलाओं को आंदोलन के लिए भड़काने में किया जाता था। शब्बीर शाह के होटल और अन्य जगहों पर किए गए निवेश के सबूतों ने उसे भी काफ़ी कुछ स्वीकार करने पर मजबूर कर दिया।

यासीन मलिक ने माना है कि उसने 2016 में घाटी में चले हिंसक प्रदर्शन के लिए हुर्रियत नेताओं को एक मंच पर एकत्रित करने की कोशिश की थी ताकि संयुक्त आंदोलन किया जा सके। इसके लिए फ़ंड देने वालों को घाटी में कारोबार बंदी की गारंटी दी गई थी। ग़ौरतलब है कि इस आंदोलन के लिए प्रोटेस्ट कैलेंडर निकाला गया था और लगभग चार महीने तक घाटी में आर्थिक गतिविधियाँ बंद थीं। आंदोलन के दौरान जान-माल का काफ़ी नुक़सान भी हुआ था।

दो साल से चल रही है जाँच

टेरर फ़ंडिंग मामले में एनआईए ने 30 मई 2017 को मुक़दमा दर्ज किया था। इस मुक़दमे में हाफ़िज़ सईद, हिज़बुल मुजाहिदीन सहित कई अलगाववादी नेताओं को आरोपी बनाया गया। आरोप था कि घाटी में आतंकी और अलगाववादी गतिविधियों के लिए बड़ी साज़िश के तहत पैसा जुटाया जाता है।
जाँच के दौरान एनआईए ने 13 लोगों के ख़िलाफ़ अपनी पहली चार्जशीट दाख़िल की थी। इसी मामले में दूसरी चार्जशीट साढ़े छह हज़ार पन्नों की थी। जिनके मुताबिक़ गिरफ़्तार ज़हूर अहमद शाह बटाली टेरर फ़ंडिंग में मुख्य हवाला ऑपरेटर की भूमिका में था। वह इस काम के लिए पाक और दुबई से पैसे का इंतजाम किया करता था और फिर शेल कंपनियों के माध्यम से घाटी में आतंकी गतिविधियों के लिए भेजा जाता था।

जाँच के दौरान एनआईए ने जम्मू-कश्मीर, दिल्ली और हरियाणा में लगभग 80-82 स्थानों पर छापेमारी की। इस दौरान डेढ़ हजार काग़जात और 800 इलेक्ट्रानिक उपकरणों का विश्लेषण किया गया।

साल 2007 में भी अलगाववादियों तक पैसा पहुँचाने का रैकेट पकड़ा गया था। तब 49.9 लाख रुपये के साथ 13-14 नवंबर 2007 को लाजपत नगर दिल्ली निवासी जमाली ख़ान, श्रीनगर निवासी जीएम भट्ट और दिल्ली के अशोक विहार निवासी रविन्दर कुमार जैन को गिरफ़्तार किया गया था। इस मामले में जम्मू के उधमपुर थाने में मुक़दमा संख्या 252/2007 भी दर्ज है।
जाँच में ख़ुलासा हुआ था कि जमाली और भट्ट 1996-97 से साथ थे और 2007 तक उनके बीच पैसों का लेनदेन जारी रहा। इन दोनों को पाकिस्तानी हवाला एजेंट नाज़िर कुरैशी, अयूब ठोकर, रविन्द्र कुमार जैन, बाबू जेठानी से हवाला के पैसे मिलते थे। जमाली ने पूछताछ में बताया था कि 1996 से 2007 तक उसे करोड़ों रुपये की खेप मिली थी और उसने यह खेप जीएम भट्ट को श्रीनगर में सौंपी थी। एजेंसियों को ऐसी 13 लेन-देन की पूरी जानकारी मिली थी। लेकिन उस समय इस पर ज़्यादा काम नहीं हुआ।

इन गतिविधियों में हुआ टेरर फ़ंड का उपयोग

  1.  आतंकवाद में 
  2. अलगाववादी गतिविधियों में
  3. सबवर्जन यानि ब्रेन वॉश में
  4. नेतृत्व पर ख़र्च में
  5. हथियार ख़रीदने में
  6. ऑपरेशन में

कुछ सच ये भी

एक ग्रेनेड फिंकवाने में 500 रुपये का ख़र्च आता है। छोटी-छोटी घटनाओं के लिए किराए के लोगों का इस्तेमाल किया जाता है। इन्हें किसी अफ़सर या सुरक्षा बलों के छोटे से शिविर के रूप में टारगेट दिया जाता है। हिज़बुल छोटी-मोटी घटनाओं को अंजाम देता है। जैश और लश्कर जैसे आतंकवादी संगठन को बड़ी घटनाओं की ज़िम्मेदारी दी जाती है।

फ़ंडिंग का दूसरा उपयोग अलगाववादी घटनाओं में किया जाता है। इसमें मुख्य खर्च प्रचार और प्रसार में होता है। लोगों को इकट्ठा करने से लेकर इसमें बहुत सारे प्रोपेगंडा के ख़र्च शामिल हैं।

ख़र्च का सबसे बड़ा हिस्सा सबवर्जन यानि ब्रेन वॉश पर खर्च होता है। इस श्रेणी में मदरसा, मुठभेड़ में मारे गए आतंकियों के परिवारों को आर्थिक मदद देने आदि की बात आती है। दरअसल, अलगाववादी नेता यहीं घालमेल करते हैं। एनकाउंटर में मारे गए लोगों के लिए पाकिस्तान जैसी जगहों से हर महीने पाँच हजार रुपये आते हैं लेकिन उनके परिवार वालों को मिलते सिर्फ़ 1 हजार रुपये हैं। बाक़ी के 4 हज़ार अलगाववादियों की जेब में चले जाते हैं जिनकी बदौलत इन्होंने कश्मीर से लेकर दिल्ली तक बड़ी-बड़ी कोठियाँ बना लीं। इनमें से 11 लोगों की कई संपतियों को एजेंसियों ने पिछले दिनों अटैच किया था। इसी के तहत पत्थरबाज़ी की घटनाओं को भी अंजाम दिया जाता है। गिलानी और यासीन मलिक जैसे लोग इसमें शामिल हैं। इसके लिए मेहराजुद्दीन जैसे अन्य ठेकेदारों को को मात्र 10-20 हजार रुपये दिए जाते हैं। इस काम में मसजिद की अजान, नमाज और पत्थरबाज़ का पूरा पैकेज भी होता है।

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