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डॉक्टरों के लिए सिर्फ जेनरिक दवाइयां लिखना अभी नहीं होगा अनिवार्य

डॉक्टरों के लिए सिर्फ जेनरिक दवाइयां लिखना अभी नहीं होगा अनिवार्य

नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) ने गुरुवार को डॉक्टरों के लिए जेनेरिक दवाइयां लिखने की अनिवार्यता के अपने निर्देश को फिलहाल टाल दिया है।

नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) ने गुरुवार को डॉक्टरों के लिए जेनेरिक दवाइयां लिखने की अनिवार्यता के अपने निर्देश को फिलहाल टाल दिया है। एनएमसी के नए निर्देश आने के बाद अब डॉक्टर जेनेरिक दवाइयों के साथ ही दूसरी ब्रांडेड दवाएं भी मरीजों के पुर्जे पर लिख सकेंगे। 

पिछले दिनों एएमसी ने नए नियम जारी किए थे। जिसके मुताबिक सभी डॉक्टरों को जेनेरिक दवाइयां लिखना अनिवार्य कर दिया था। ऐसा नहीं करने पर या ब्रांडेड दवाईयां लिखने पर लाइसेंस रद्द करने की बात कही गई थी। 

एनएमसी के इस कदम का आईएमए ने कड़ा विरोध जताया था। आईएमए ने कहा था कि इससे मरीजों को गुणवत्तापूर्ण दवाएं मिलने में मुश्किल होगी। आईएमए का तर्क था कि भारत में एक प्रतिशत से भी कम दवाओं की गुणवत्ता का टेस्ट होता है। ऐसे में इसे अनिवार्य बनाने से मरीजों को जो जेनरिक दवाएं मिलेंगी उसकी गुणवत्ता पर सवाल उठते रहेंगे। जब तक कि सरकार जेनरिक दवाइयां की गुणवत्ता जांच की कोई ठोस और कारगर व्यवस्था नहीं बना देती है तब तक इसे अनिवार्य नहीं किया जाना चाहिए। 

सस्ते इलाज का सपना हुआ दूर 

एनएमसी द्वारा अपने ही निर्देश को बदलने के कारण मरीजों को सस्ती दवाएं मिलने का रास्ता फिलहाल मुश्किल दिख रहा है। माना जा रहा था कि डॉक्टरों पर जेनरिक दवाइयां ही लिखने की शर्त लगाने से मरीजों को सस्ती दवाएं उपलब्ध होने लगती। ऐसा इसलिए कि ब्रांडेड दवाओं के मुकाबले काफी कम कीमत पर जेनरिक दवाएं मिलती है। 

आईएमए ने एनएमसी के फैसले को बताया था ग़लत 

14 अगस्त को देश भर के डॉक्टरों के सबसे बड़े एसोसिएशन ने एक प्रेस रिलिज जारी कर कहा है कि जेनेरिक दवाओं के लिए सबसे बड़ी बाधा इसकी गुणवत्ता के बारे में अनिश्चितता है। देश में गुणवत्ता नियंत्रण बहुत कमजोर है, व्यावहारिक रूप से दवाओं की गुणवत्ता की कोई गारंटी नहीं है और गुणवत्ता सुनिश्चित किए बिना जेनेरिक दवाएं लिखना रोगी के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होगा। 

0.1 % से भी कम दवाओं की होती है गुणवत्ता जांच

आईएमए के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ शरद कुमार अग्रवाल और इसके महासचिव डॉ अनिलकुमार जे नायक की ओर से 14 अगस्त को जारी एक संयुक्त बयान में कहा गया था कि भारत में निर्मित 0.1 प्रतिशत से भी कम दवाओं की गुणवत्ता की जांच की जाती है। ऐसे में जेनरिक दवाओं को लिखने की अनिवार्यता को तब तक के लिए टाल दिया जाना चाहिए जब तक सरकार बाजार में मौजूद सभी दवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित नहीं कर लेती। आईएमए ने कहा था कि रोगी की देखभाल और सुरक्षा पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता है।

बिना पटरियों के रेलगाड़ियाँ चलायी जा रही है

एएमसी के फैसले के विरोध में तब आईएमए ने अपने ब्यान में कहा था कि एनएमसी द्वारा जेनेरिक दवाओं का वर्तमान प्रचार इस तरह से हो रहा है जैसे कि बिना पटरियों के रेलगाड़ियां चलायी जा रही हैं। यह स्वाभाविक रूप से मरीजों के हित में नहीं होगा। हमें गुणवत्तापूर्ण इलाज की परवाह किए बिना केवल लागत में कटौती से बचना चाहिए। आईएमए ने सवाल उठाया था कि यदि डॉक्टरों को ब्रांडेड दवाएं लिखने की अनुमति नहीं है, तो ऐसी दवाओं को बनाने के लिए लाइसेंस क्यों दिया जाना चाहिए ? यदि सरकार जेनेरिक दवाओं को लागू करने के प्रति गंभीर है, तो उसे जेनेरिक दवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करते हुए केवल जेनेरिक दवाओं को ही लाइसेंस देना चाहिए, किसी ब्रांडेड दवाओं को नहीं।

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