मुसलिम रेजिमेंट का सच! धर्म के नाम पर सेना को बाँटने की कोशिश?
नफरत फैलाने वाली झूठी ख़बरों ने भारत की सेना को भी नहीं छोड़ा। सेना में 'मुसलिम रेजिमेंट' नाम का झूठ फैलाया गया। अभी भी फैलाया जा रहा है। इस झूठ से सेना को कितना नुक़सान हो सकता है, इसका इससे ही अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि पूर्व नौसेना प्रमुख सहित 120 पूर्व सैनिकों ने राष्ट्रपति को चिट्ठी लिखी है। उन्हें चिट्ठी में यहाँ तक लिखा कि धर्मनिरपेक्ष चरित्र की रक्षा की ज़रूरत है और फ़ेक न्यूज़ फैलाने वालों के ख़िलाफ़ 'तुरंत सख़्त कार्रवाई' की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि 'मुसलिम रेजिमेंट' का यह झूठ हमारे 'सशस्त्र बलों के मनोबल पर एक घातक हमला' है और ऐसी झूठी पोस्ट देश के लिए ख़तरा हैं।
पूर्व सैनिकों ने सोशल मीडिया पर शेयर की जा रही ऐसी झूठी पोस्ट के बारे में क्या-क्या लिखा है, यह जानने से पहले यह देख लें कि इस झूठ को फैलाने वाले लोग कौन हैं।
सोशल मीडिया पर शेयर करने वाले ये वे लोग हैं जो अधिकतर मुद्दों को अक्सर हिंदू-मुसलिम के नज़रिए से देखते हैं। 'मुसलिम रेजिमेंट' की इस झूठी सूचना को शेयर करने वाले अधिकतर वे लोग हैं जो दक्षिणपंथी विचारों वाले हैं। जो भी इससे जुड़ी पोस्टों को शेयर कर रहे हैं उनकी भाषा एक ट्रोल की लगती है। ट्विटर के ये वे ट्रोल हैं जिनका न तो असली नाम होता है और न ही असली चेहरा।
लेकिन इन बेनाम चेहरों ने ही सोशल मीडिया पर ऐसी स्थिति पैदा कर दी है जिससे सामाजिक तानेबाने को तो नुक़सान पहुँचने का ख़तरा है ही देश की सुरक्षा में लगे सेना के मनोबल पर भी असर पड़ने की आशंका है। ऐसी फर्जी पोस्ट का क्या असर हो सकता है, आप ख़ुद पढ़कर देखिए। राजेश गौड़ नाम के ट्विटर यूजर ने लिखा है, 'मुसलिम रेजिमेंट जो बनी थी उसने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ लड़ने से इंकार कर दिया था। इसी तरह की ठीक स्थिति अगर हिंदुओं के साथ होती तो क्या हिंदू ऐसा करता'
मुस्लिम रेजिमेंट जो बनी थी उसने पाकिस्तान के खिलाफ लड़ने इंकार कर दिया था
— Rajesh Gaur (@RajeshG85327874) October 10, 2020
इसी तरह की ठीक स्थित अगर हिंदुओं के साथ होती तो क्या हिंदू ऐसा करता
इस ट्वीट में जो दावे किए गए और जिस संदर्भ में हिंदू को लगाकर सवाल पूछा गया, वह बेहद ही आपत्तिजनक है। प्रदीप पांडे नाम के एक यूज़र ने भी मुसलिम रेजिमेंट का ज़िक्र कर भारतीय मुसलिमों की निष्ठा पर सवाल उठाए हैं।
मुसलमान देश भक्त हैं तभी1965मे मुस्लिम रेजीमेंट पाकिस्तान की सेना से .1948मे जम्मू कश्मीर की सेना पाकिस्तान के
— Pradeep Panday (@Pradeep49300277) October 11, 2020
कबीलाई लडाके मुजाहिद्दीन से मिल गई थी. इमरान पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के कथन कि भारत के20करोड़ मुसलमान हमारे साथ युद्ध करेंगे. एक भी भारती मुसलमान ने इसका विरोध नहीं किया https://t.co/GAcWmA1sGM
ऐसा ही एक रजनीश सिंह नाम के ट्विटर यूज़र ने कहा है कि भारत की मुसलिम रेजिमेंट ने पाकिस्तानी फौज से लड़ने से मना कर दिया है।
इतिहास गवाह है कि आजादी के बाद जब पाकिस्तानी फौज ने कश्मीर की तरफ से भारत पर आक्रमण किया था तो भारत की मुसलिम रेजीमेंट ने पाकिस्तानी फौज से लडने से मना कर दिया था,तब देशहित खत्म हो गया था
— rajnish singh (@rajnishdms) October 13, 2020
सोशल मीडिया पर ये दावे तो किए जा रहे हैं लेकिन इसके सोर्स का ज़िक्र नहीं है। इनके इन दावों को 'ऑल्ट न्यूज़', बीबीसी जैसी वेबसाइटों ने झूठा क़रार दिया है। इन रिपोर्टों में कहा गया है कि भारत की सेना में 'मुसलिम रेजिमेंट' नाम का कोई रेजिमेंट ही नहीं था तो फिर पाकिस्तानी फौज से लड़ने से इनकार करने का तो सवाल ही नहीं है। 'एबीपी न्यूज़' की एक रिपोर्ट में दी गई रेजिमेंट की सूची में भी मुसलिम रेजिमेंट नाम की कोई रेजिमेंट नहीं है। 'बीबीसी' की रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय सेना में आर्म्स और सर्विसेज़ कॉर्प्स के अलावा कई अलग-अलग रेजिमेंट्स हैं। भारतीय सेना की इन्फ़ेंट्री में सिख, गढ़वाल, कुमाऊं, जाट, महार, गोरखा, राजपूत समेत 31 रेजिमेंट हैं। रिपोर्ट के अनुसार, लेफ़्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) सैयद अता हसनैन 'मुसलिम रेजिमेंट' के दावों पर कहते हैं कि यह प्रोपेगैंडा है और भारतीय सेना में पिछले 200 साल से भी मुसलिम रेजिमेंट नहीं थी।
इन्हीं विवादों के बीच राष्ट्रपति को लिखी चिट्ठी में पूर्व सैन्य अधिकारियों ने सोशल मीडिया पर 'मुसलिम रेजिमेंट' से जुड़ी पोस्टों को सफेद झूठ क़रार दिया है।
उन्होंने कहा है कि भारत के पास कभी भी कोई मुसलिम रेजिमेंट नहीं है और ऐसे 'सफेद झूठे', जो मई 2013 में शुरू हुए थे, अभी भी सोशल मीडिया पर ऐसे समय में व्यापक रूप से फैल रहे हैं जब देश पाकिस्तान और चीन दोनों के साथ सैन्य तनाव का सामना कर रहा है। यह चिट्ठी पूर्व नौसेना प्रमुख एल रामदास, सेना के दो-तीन स्टार वाले 24 जनरल सहित 120 पूर्व सैनिकों ने लिखी है।
चिट्ठी में लिखा गया है, 'सार्वजनिक क्षेत्र में मुसलिम रेजिमेंट जैसी सोशल मीडिया पोस्ट हमारे सशस्त्र बलों के मनोबल पर एक घातक हमला है। यह जनता के मन में संदेह पैदा करता है कि अगर मुसलिम सैनिकों पर भरोसा नहीं किया जा सकता है तो अन्य मुसलमान भी अलग नहीं हैं। यह समुदायों के बीच अविश्वास और घृणा को बढ़ाता है।'
चिट्ठी में उन्होंने साफ़ तौर पर कहा है कि ऐसे झूठे संदेश देश की सुरक्षा के लिए ख़तरा हैं। चिट्ठी में उन्होंने आग्रह किया है कि सभी राज्य सरकारों को भी तत्काल निर्देश जारी किया जाए कि सोशल मीडिया में झूठे और 'देशद्रोहपूर्ण संदेशों' के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जानी चाहिए ताकि राष्ट्रीय सुरक्षा ख़तरे में न पड़े।
इस चिट्ठी में लेफ़्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) सैयद अता हसनैन के एक लेख का ज़िक्र है जिसे उन्होंने टाइम्स ऑफ़ इंडिया के लिए लिखा था। सोशल मीडिया पर मुसलिम रेजिमेंट को लेकर डाली जा रही ऐसी ही झूठी पोस्टों के बीच ही उन्होंने यह लेख लिखा है।
लेख में लेफ़्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) सैयद अता हसनैन ने लिखा है कि ग़लत सूचना फैलाने का अभियान संभवतः पाकिस्तान की इंटर सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस विंग के 'psy op' का हिस्सा था।
पूर्व सैनिकों ने चिट्ठी में लिखा है कि कैसे मुसलिमों ने सैनिक के रूप में देश के लिए कुर्बानी दी है। इसमें उन्होंने 1947 के भारत विभाजन के दौरान ब्रिगेडिर मुहम्मद उसमान का ज़िक्र किया है। उन्होंने लिखा है, 'तब मुहम्मद उसमान बलूच रेजिमेंट में थे और जब पाकिस्तान अलग होकर एक देश बना तो बलूच रेजिमेंट पाकिस्तान के हिस्से में चली गयी। लेकिन जिन्ना द्वारा आग्रह किए जाने के बावजूद ब्रिगेडिर मुहम्मद उसमान बलूच रेजिमेंट छोड़कर भारतीय सेना में शामिल हुए। उन्होंने 1948 में कश्मीर में पाकिस्तानी हमले के ख़िलाफ़ जंग लड़ी और उसमें वह शहीद हो गए। उस कार्रवाई में शहीद होने वाले वह सबसे वरिष्ठ सैन्य अधिकारी थे।'