99 टेस्ट के बाद क्या तेंदुलकर- द्रविड़ से आगे हैं कोहली ?
अगर सोशल मीडिया में फॉलोअर्स को आधार माना जाये तो क्रिकेट इतिहास में विराट कोहली से ज़्यादा मशहूर खिलाड़ी कोई और नहीं। ये ठीक है कि सुनील गावस्कर और राहुल द्रविड़ जैसे दिग्गज सोशल मीडिया पर नहीं है लेकिन सचिन तेंदुलकर और महेंद्र सिंह धोनी जैसे महान खिलाड़ियों की मौजूदगी के बावजूद कोहली की सर्वोच्चता को कोई चुनौती देने वाला आस-पास नहीं दिखता है। हकीकत तो ये है कि क्रिकेट ही नहीं अगर पूरी दुनिया के एथलीटों की बात की जाए तो कोहली का शुमार सोशल मीडिया में टॉप 10 में हैं। लेकिन, क्रिकेट में महानता का आकलन सोशल मीडिया में आपके फॉलोअर्स से तय नहीं होता है और ये अच्छी बात है। वरना नई पीढ़ी के सामने सर विवियन रिचर्ड्स और सर डॉन ब्रैडमैन की महानता साबित करने के लिए भी शायद पापड़ बेलने पड़ते।
हर कोई अब तेंदुलकर नहीं कोहली बनना चाहता है
बहरहाल, ऐसा कहने का बिलकुल मतलब नहीं है कि विराट कोहली की महानता को लेकर किसी तरह का संदेह होना चाहिए। मोहाली में 100वां टेस्ट खेलने वाला कोहली भारतीय क्रिकेट के सबसे करिश्माई खिलाड़ियों में से एक हैं। सच पूछा जाए तो 21वीं सदी में अगर एक बेहद आधुनिक क्रिकेटर के बारें में एक चेहरे की कल्पना करें जो सुपर फिट हो, जूननी हो, कामयाबी के लिए पागलपन की हद तक गुज़रने वाला हो, हर फॉर्मेट में खुद को सहज महसूस करने वाला हो और बॉलीवुड के सितारे के साथ असल ज़िंदगी में जोड़ी बनाने वाला हो तो आपके सामने सिर्फ और सिर्फ एक ही विराट तस्वीर उभरेगी।
इंग्लैंड के पूर्व कप्तान माइकल एथर्टन ने कुछ साल पहले ही सही ही लिखा था कि पहले भारत में हर कोई तेंदुलकर बनना चाहता है लेकिन अब वैसा नहीं है. क्योंकि अब हर कोई कोहली बनना चाहता है।
99 टेस्ट के बाद कोहली तेंदुलकर- द्रविड़ के पास भी नहीं!
सिर्फ अगर बल्लेबाज़ी के पैमाने पर कोहली का आकलन करें तो वो 99 टेस्ट के बाद तेंदुलकर तो क्या द्रविड़ के समकक्ष भी खड़े नहीं दिखते हैं। हकीकत तो ये है कि द्रविड़ तो औसत के मामले में तेंदुलकर जैसे दिग्गज को भी पीछे रखे हुए थे। 100वां टेस्ट खेलने से पहले द्रविड़ का औसत टेस्ट क्रिकेट में 58.16 का था तो तेंदुलकर का 58 से सिर्फ थोड़ा कम (57.99)। गावस्कर भी इस मामले में कोहली से आगे चल रहे थे जिनका औसत 100वें टेस्ट से पहले 52.46 का रहा था। कोहली के सामने गंभीर संकट ये है कि अगर मोहाली टेस्ट में उन्होंने दोनों पारियों में मिलाकर भी 38 से कम रन बनाये तो उनका करियर औसत से 50 से भी नीचे चला जायेगा।
अगर 51 से 75 टेस्ट का दौर कोहली के लिए उनके करियर का सबसे बेहतरीन दौर (67.10 का औसत) रहा तो 76 से लेकर 99 का दौर उनके करियर का सबसे संघर्ष वाला रहा है जहां उनका औसत महज 38.26 का रहा है।
जो तेंदुलकर के लिए कहा, वो आज कोहली पर लागू
लेकिन, कोहली जैसे महान बल्लेबाज़ का आकलन करते समय सिर्फ सूखे आंकड़ों का सहारा नहीं लिया जा सकता है। मुझे 2006 में मुंबई टेस्ट के दौरान राहुल द्रविड़ के प्रेस कांफ्रेस की एक बात याद आ रही है। द्रविड़ का वो 100वां टेस्ट था और उनसे जब इसकी अहमियत के बारे में पूछा गया तो उन्होंने अपने चिर-परिचित अंदाज़ में टाल दिया और कहा कि ये बाकी दूसरे टेस्ट की ही तरह एक और मैच है। उसी मैच में द्रविड़ से तेंदुलकर के घटते हुए पराक्रम के बारें में पूछा गया जो उस मैच के दौरान भारत के लिए सबसे ज़्यादा टेस्ट मैच खेलने वाले खिलाड़ी बनने वाले थे। द्रविड़ ने जो बातें उस वक्त तेंदुलकर के बारे में कही थीं, उसका सार ये था कि - तेंदुलकर अब भी एक बड़े हीरो है। ये ठीक है कि नई प्रतिभाओं के आने से उनके बारे में लोगों की जिज्ञासा बढ़ी है लेकिन तेंदुलकर अब भी लोगों के लिए उतने चहेते और दुलारे हैं।
करीब डेढ़ दशक बाद द्रविड़ की वो बात आज के कोहली पर भी सटीक बैठती है जो सही मायनों में तेंदुलकर की बल्लेबाज़ी की विरासत को आगे लेकर गयें हैं। आज भले ही भारत के पास शुभमन गिल और ऋषभ पंत जैसी प्रतिभा का भंडार दिखता है लेकिन कोहली तो विराट थे और आज भी विराट हैं।
“कोहली की बल्लेबाज़ी में शुद्धता के वही सिद्धातं आपको देखने को मिलते हैं जिसकी झलक गावस्कर और तेंदुलकर की शैली में देखने को मिला करती थी। लेकिन, कोहली की आभा का मूल कारण फिटनेस को लेकर उनकी असाधारण प्रतिबद्धता है,” एथर्टन की ये बात जो उन्होंने दिसंबर 2016 में अपने लेख में लिखी थी, शायद कोहली की शख्सियत को बयान करने के लिए सबसे बेहतरीन है।
विराट का कद छोटा करने की कोशिश
हाल के महीनों में कोहली का विराट कद बीसीसीआई ने छोटा करने की कोशिश की है। जिस अंदाज़ में उन्हें साउथ अफ्रीका दौरे के बाद अचानक कप्तानी छोड़नी पड़ी शायद इसकी ज़रुरत नहीं थी। अगर बोर्ड प्रेसिडेंट सौरव गांगुली चाहते तो कोहली का 100वां टेस्ट उनके घरेलू मैदान दिल्ली में होता ना कि वहां से करीब 250 किलोमीटर दूर मोहाली में, जहां के दर्शकों को टेस्ट मैच में उत्साह दिखाने के लिए नहीं जाना जाता है।
अगर बीसीसीआई चाहती तो श्रीलंका के खिलाफ़ सीरीज़ का दूसरा टेस्ट, जो बैंगलूरु में होने वाला है, वो उनके 100वें टेस्ट का गवाह बन सकता था क्योंकि दिल्ली के बाद भारत में कोहली का कोई दूसरा घरेलू स्टेडियम है तो वो चिन्नास्वामी स्टेडियम ही है।
हकीकत तो ये है कि बोर्ड ने मोहाली में दर्शकों के जाने पर ही रोक लगा रखी थी लेकिन सोशल मीडिया में लोगों ने जब शोर मचाना शुरु कर दिया कि अगर धर्मशाला के मैचों में दर्शक आ सकते हैं, बेंगलुरु में आयेंगे तो मोहाली में कोहली को खाली स्टेडियम में क्यों उनका 100वां टेस्ट खेलने दिया जाए। देर से ही सही, लेकिन बीसीसीआई ने अपनी इस ग़लती को सुधारा और दर्शकों को इस ऐतिहासिक लम्हें का गवाह होने का मौका मिल रहा है। अगर कोहली ने अपने 28 महीने और 27 पारियों से चल रहे शतक के सूखे को मोहाली में तोड़ने में कामयाबी हासिल की तो ये उनके 100वें टेस्ट का शानदार जश्न हो सकता है।