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अर्णब की गिरफ़्तारी: प्रेस की आज़ादी या अपराध का केस?

अर्णब की गिरफ़्तारी: प्रेस की आज़ादी या अपराध का केस?

अर्णब गोस्वामी की गिरफ़्तारी पर प्रेस की आज़ादी को लेकर हो-हल्ला क्यों है? क्या उनकी गिरफ़्तारी उनके चैनल रिपब्लिक टीवी पर किसी ख़बर को प्रकाशित करने को लेकर है? नहीं न? क्या यह पूरी तरह आपराधिक मामला है? 

अर्णब गोस्वामी की गिरफ़्तारी पर प्रेस की आज़ादी को लेकर हो-हल्ला क्यों है क्या उनकी गिरफ़्तारी उनके चैनल रिपब्लिक टीवी पर किसी ख़बर को प्रकाशित करने को लेकर है नहीं न या फिर क्योंकि यह एक पत्रकार से जुड़ा मामला है इसलिए यह अपने आप ही प्रेस की आज़ादी से जुड़ा मामला हो गया क्या यह पूरी तरह आपराधिक मामला है इन सवालों का जवाब इस पूरे मामले को समझने पर मिल सकता है। 

जिस मामले में अर्णब की गिरफ़्तारी की गई है वह मामला दो साल पुराना है। कोंकोर्ड डिज़ाइन के मैनेजिंग डायरेक्टर अन्वय नाइक अपनी माँ कुमुद नाइक के साथ मई 2018 में रायगढ़ ज़िले में अलीबाग के अपने बंगले में मृत पाए गए थे। मरने के पहले अन्वय ने ख़ुदकुशी नोट छोड़ा था। इसमें उन्होंने अपनी मौत के लिए 3 लोगों को ज़िम्मेदार बताया था जिनमें एक नाम अर्णब गोस्वामी का भी था। 

इस मामले में तब आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में 2018 में अर्णब गोस्वामी सहित तीन लोगों पर दर्ज किए गए थे। आरोप था कि अर्णब ने अपने दफ़्तर का काम करवाने के बाद अन्वय नाइक के 83 लाख नहीं दिये। पुलिस ने ख़ुदकुशी का मामला दर्ज कर जाँच शुरू की लेकिन उसने उस केस को पिछले साल यह कहते हुए बंद कर दिया था कि अर्णब गोस्वामी और दो अन्य के ख़िलाफ़ चार्जशीट पेश करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हैं। तब राज्य में बीजेपी की सरकार थी।

लेकिन जब सरकार बदली तो अन्वय की बेटी अदन्या ने इस मामले में केस को दोबारा खोलने के लिए प्रयास शुरू किया। इसी साल मई महीने में महाराष्ट्र सरकार ने इस केस को खोलने का आदेश दिया था। 

'द इंडियन एक्सप्रेस' की एक रिपोर्ट के अनुसार, अन्वय की बेटी अदन्या ने आरोप लगाया था कि पुलिस ने उस 83 लाख रुपये बकाये की जाँच पुलिस ने नहीं की जिसे गोस्वामी ने उनके पिता को भुगतान नहीं किया था और इसी कारण उन्होंने आत्महत्या कर ली थी। 

अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार, पुलिस को अंग्रेज़ी में एक सुसाइड नोट मिला था, जिसमें कथित रूप से कहा गया था कि अन्वय और उनकी माँ ने आख़िरी क़दम उठाने का फ़ैसला किया क्योंकि बकाये का भुगतान तीन कंपनियों के मालिकों द्वारा ख़त्म किया जा रहा था- रिपब्लिक टीवी, IcastX/Skimedia के फिरोज शेख, और स्मार्टवर्क्स के नितीश सारदा। उस नोट में कहा गया कि तीनों फर्मों पर कॉनकॉर्ड डिजाइन का क्रमश: 83 लाख रुपये, 4 करोड़ रुपये और 55 लाख रुपये बकाया है।

रिपोर्ट के अनुसार, रिपब्लिक टीवी ने पहले दावा किया था कि इसने सभी बकाए का भुगतान कोंकोर्ड डिज़ाइन को कर दिया है। 

तो सवाल है कि आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज हुआ था तो इस केस को बंद क्यों किया गया

मई महीने में प्रकाशित 'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार, रायगढ़ के पुलिस अधीक्षक अनिल पारस्कर ने कहा था, 'जब शव पाया गया था, हमने तीन लोगों के ख़िलाफ़ आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज किया था। हालाँकि, पिछले अप्रैल में हमने एक अदालत के समक्ष एक सारांश रिपोर्ट प्रस्तुत की थी जिसमें कहा गया था कि आरोपियों के ख़िलाफ़ आरोप पत्र दायर करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं थे।' 

भारी कर्ज में थे अन्वय!

अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार, एक अधिकारी ने कहा कि यह पता चला है कि जब अन्वय ने आत्महत्या की थी, तब पोस्टमार्टम रिपोर्ट में संकेत दिया गया था कि कुमुद का गला घोंटा गया था। उसके बाद, पुलिस ने हत्या का मामला भी दर्ज किया। पुलिस को शक है कि अन्वय ने अपनी माँ की हत्या कर दी और फिर आत्महत्या कर ली। जबकि कुमुद का शव ग्राउंड-फ़्लोर के सोफे पर पाया गया था, अन्वय का शव बंगले की पहली मंजिल पर लटका हुआ पाया गया था।

रिपोर्ट के अनुसार, एक अधिकारी ने कहा था कि जाँच के दौरान उन्होंने पाया कि अन्वय भारी कर्ज में थे और ठेकेदारों को पैसा चुकाने के लिए संघर्ष कर रहे थे।

इस बीच इस साल जब यह मामला चर्चा में फिर आ गया और जाँच की बात कही गई तब आरोप लगाए जाने लगे कि महाराष्ट्र सरकार बदले की कार्रवाई कर रही है क्योंकि कांग्रेस भी उद्धव ठाकरे सरकार में शामिल है। उसी दौरान अर्णब गोस्वामी ने अपने चैनल पर सोनिया गाँधी के ख़िलाफ़ कथित तौर पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। 

अब जब अर्णब की गिरफ़्तारी हुई है तो आरोप लग रहे हैं कि सुशांत सिंह राजपूत की संदिग्ध मौत को अर्णब ने मुद्दा बनाकर मुंबई पुलिस और ठाकरे सरकार को घेरना शुरू किया था इसलिए बदले की भावना से सरकार यह कार्रवाई कर रही है।

आरोप जो भी लगाए जाएँ, लेकिन यह सच है कि अन्वय नाइक ने आत्महत्या की थी। ख़ुदकशी के नोट भी मिले हैं और उसमें अर्णब गोस्वामी के नाम भी हैं। इसी को आधार बनाकर कहा जा रहा है कि यह आपराधिक मामले में कार्रवाई है। सवाल यही उठाए जा रहे हैं कि क्या किसी पत्रकार से जुड़े आपराधिक मामले में प्रेस की आज़ादी के नाम पर कार्रवाई नहीं होनी चाहिए!

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