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वसीम जाफर विवाद- मैनेजर ने मौलवी को बुलाने की मंजूरी दी थी: इक़बाल

वसीम जाफर विवाद- मैनेजर ने मौलवी को बुलाने की मंजूरी दी थी: इक़बाल

उत्तराखंड क्रिकेट संघ में वसीम जाफर के के मामले में मौलवी के बुलाने के मामले में एक नया दावा किया गया है। उत्तराखंड क्रिकेट टीम के सदस्य इक़बाल अब्दुल्ला ने दावा किया है कि ड्रेसिंग रूम में मौलवी को बुलाने की टीम के मैनेजर ने अनुमति दी थी।

उत्तराखंड क्रिकेट संघ में वसीम जाफर विवाद और ग्राउंड पर मौलवी के बुलाने के मामले में एक नया दावा किया गया है। उत्तराखंड क्रिकेट टीम के सदस्य इक़बाल अब्दुल्ला ने दावा किया है कि ड्रेसिंग रूम में मौलवी को बुलाने की टीम के मैनेजर ने अनुमति दी थी। उनका यह दावा काफ़ी अहम इसलिए है कि वसीम जाफर पर उत्तराखंड क्रिकेट को 'सांप्रदायिकरण' करने का आरोप लगा है। इसके पीछे जो आरोप लगाए गए उनमें से एक बड़ा आरोप ग्राउंड में मौलवी को बुलाने और ग्राउंड में नमाज़ करने का भी है। 

उत्तराखंड क्रिकेट में सांप्रदायिकता का विवाद तब खड़ा हो गया था जब वसीम जाफर ने कोच पद से इस्तीफ़ा दे दिया था और उन्होंने आरोप लगाया कि क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ़ उत्तराखंड के अधिकारी अयोग्य खिलाड़ियों के लिए दबाव डाल रहे थे। इसके बाद उत्तराखंड क्रिकेट संघ के सचिव महिम वर्मा ने कहा कि उन्हें टीम से फ़ीडबैक मिला था कि जाफर ने ड्रेसिंग रूम के माहौल को 'सांप्रदायिक' कर दिया था और मुसलिम खिलाड़ियों का पक्ष लिया था।

रिपोर्ट के अनुसार वर्मा ने कहा था कि उत्तराखंड के खिलाड़ियों ने उन्हें बताया था कि टीम के प्रशिक्षण सत्र के दौरान जाफर ने मैदान में एक मौलवी को आमंत्रित किया था और यहाँ तक ​​कि टीम के मंत्र को भी बदल दिया जिसमें हनुमान का जयकारा लगता है।

इसके बाद सफ़ाई में प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर वसीम जाफर ने कहा था, 'उन्होंने कहा मैंने एक मौलवी को बुलाया और ग्राउंड पर नमाज़ अदा की। सबसे पहली चीज, मैंने मौलवी को फ़ोन नहीं किया; यह इक़बाल अब्दुल्ला थे जिन्होंने उन्हें बुलाया था। शुक्रवार को हमें नमाज़ अदा करने के लिए एक मौलवी की ज़रूरत थी। इक़बाल ने मुझसे पूछा और मैंने हाँ कही। अभ्यास समाप्त हो गया और हमने ड्रेसिंग रूम के अंदर नमाज़ की पेशकश की। यह केवल दो या तीन बार हुआ, वह भी बायो बबल सत्र के शुरू होने से पहले।'

बता दें कि इक़बाल अब्दुल्ला उन तीन खिलाड़ियों में से एक हैं जिन्हें जाफर ने अपनी नियुक्ति के बाद उत्तराखंड के लिए खेलने के लिए तीन पेशेवर खिलाड़ियों- जय बिस्सा, इक़बाल अब्दुल्ला और समद फालाह को राज्य के बाहर से चुनाव की सिफ़ारिश की थी। मुंबई के पूर्व खिलाड़ी अब्दुल्ला को सैयद मुश्ताक घरेलू टी-20 टूर्नामेंट के लिए कप्तान बनाया गया था।

वसीम जाफर ने इस मामले में सफ़ाई दी है कि उन्होंने जय बिस्सा को कैप्टन बनाने की अनुशंसा की थी न कि इक़बाल को, लेकिन अधिकारियों ने इक़बाल को कैप्टन चुना।

यही इक़बाल अब्दुल्ला ने अब मौलवी के मामले में सफ़ाई दी है। 'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार इक़बाल ने कहा, "हम एक मौलवी के बिना शुक्रवार की नमाज़ अदा नहीं कर सकते। हमने नमाज़ तब अदा की जब हमारा अभ्यास दोपहर लगभग 3:40 बजे ख़त्म हो गया। सबसे पहले मैंने वसीम भाई से पूछा कि क्या मैं मौलवी को नमाज़ के लिए बुला सकता हूँ। उन्होंने मुझे टीम मैनेजर से अनुमति लेने के लिए कहा। मैंने प्रबंधक नवनीत मिश्रा से बात की और उन्होंने कहा, 'कोई बात नहीं इक़बाल, प्रार्थना-धर्म सबसे ज़रूरी है'।"

उन्होंने कहा, 'प्रबंधक ने मुझे अनुमति दी और इसीलिए मैंने मौलवी से प्रार्थना का नेतृत्व करने के लिए कहा।'

इक़बाल अब्दुल्ला ने कहा कि मौलवी को दो बार बुलाया गया था। उन्होंने कहा, 'अगर बायो-बबल चल रहा होता तो क्या टीम मैनेजर ने मुझे मौलवी को बुलाने की अनुमति दी होती? यदि प्रबंधक ने नहीं अनुमति दी होती तो मैंने मौलवी को नहीं बुलाया होता।'

उन्होंने कहा कि उन्हें दुख है कि वसीम जाफर के कद के खिलाड़ी को इस तरह के आरोपों का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि वसीम भाई ने हमेशा टीम को सबसे ज़्यादा तवज्जो दी।

इक़बाल ने कहा,

"शिविर के दौरान हम 'बार-बार हाँ, बोलो यार हाँ, आपनी जीत हो, उनकी हार हाँ...' गाया करते थे। कभी 'जो बोले सो निहाल' तो कभी 'जय श्री राम'। फिर एक खिलाड़ी ने कहा कि हमें 'गो ग्रीन’ बोलना चाहिए, फिर 'गो उत्तराखंड’, फिर ‘चलो उत्तराखंड’ और फिर 'चलो ऋषिकेश’ आया। तीन महीने के शिविर के दौरान हमारे पास कुछ 50 नारे थे। वसीम भाई ने कहा कि हमें टीम के लिए 'गो उत्तराखंड’ या 'लेट्स प्ले, उत्तराखंड’ जैसे नारे लगाने चाहिए। जैसा कि 'लेट्स प्ले, उत्तराखंड’ थोड़ा लंबा है, सभी ने 'गो उत्तराखंड’ अपनाने का फ़ैसला किया।"

बता दें कि भारतीय टीम के ओपनर रहे जाफर ने इस्तीफ़ा देने के बाद कहा था कि क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ़ उत्तराखंड के अधिकारी अयोग्य खिलाड़ियों के लिए दबाव डाल रहे थे। इसके बाद जाफर पर ड्रेसिंग रूम के सांप्रदायिकरण करने और मुसलिम खिलाड़ियों को तरजीह देने का आरोप मढ़ दिया। उत्तराखंड क्रिकेट संघ के सचिव महिम वर्मा ने कहा, 'बाद में मुझे बताया गया कि देहरादून में हमारे बायो-बबल प्रशिक्षण सत्रों के दौरान एक मौलवी ने आकर ग्राउंड में दो बार नमाज़ अदा की। जब एक बायो-बबल प्रशिक्षण चल रहा है तो एक मौलवी कैसे प्रवेश कर सकता है। मैंने अपने खिलाड़ियों से कहा कि उन्हें पहले मुझे सूचित करना चाहिए था, मैंने कार्रवाई की होती।'

सचिव वर्मा ने यह भी आरोप लगाया है कि जाफर काफ़ी ज़्यादा हस्तक्षेप कर रहे थे और वह चयन समिति की भी नहीं सुन रहे थे।

उन्होंने आरोप लगाया कि एक बैठक के दौरान उन्होंने मुझसे कहा, ‘आप क्रिकेट के बारे में नहीं जानते’। वर्मा ने कहा कि न केवल मेरे लिए बल्कि चयन समिति के लिए भी उनका व्यवहार एक मुद्दा बन गया।

 - Satya Hindi

महिम वर्मा के आरोपों के बाद उसी दिन देर शाम को वसीम जाफर ने एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस की थी। इसमें उन्होंने कहा था, 'इससे नीचे कोई नहीं गिर सकता है। मुझ पर सांप्रदायिक होने और इसे सांप्रदायिक रंग देने के आरोप दुखद हैं।' उन्होंने कहा कि "यदि मैं कम्युनल होता तो मैं कहता कि 'अल्ला हू अकबर' बोलो। मैंने सत्र को सुबह कर दिया होता जिससे कि मैं दोपहर में नमाज़ अदा कर सकूँ।" 

हनुमान के जयकारे के आरोपों पर जाफर ने कहा था, "मुझ पर खिलाड़ियों को 'जय हनुमान जय' के जयकारे करने की अनुमति नहीं देने के आरोप हैं। सबसे पहली बात, किसी भी खिलाड़ी ने कोई जयकारा नहीं लगाया। हमारे पास कुछ खिलाड़ी हैं जो सिख समुदाय से हैं, और वे कहते थे 'रानी माता सच दरबार की जय’। इसलिए, मैंने एक बार सुझाव दिया था कि हमारे पास 'गो उत्तराखंड' या 'कम ऑन उत्तराखंड' जैसा कुछ होना चाहिए। जैसे, जब मैं विदर्भ के साथ हुआ करता था तो टीम ने नारा दिया था, 'कम ऑन विदर्भ'। और यह मैं नहीं था जिसने नारा चुना, यह खिलाड़ियों पर छोड़ दिया गया था।"

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