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चीन ने भूटान में भी गाँव बसाया! सरकार मानती क्यों नहीं?

चीन ने भूटान में भी गाँव बसाया! सरकार मानती क्यों नहीं?

भूटान की सीमा के अंदर चीन के एक गाँव बसाने की ख़बर को भूटान सरकार ने खारिज कर दिया। लेकिन अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षक दावा कर रहे हैं कि चीन ने गाँव बसाया है। सच है तो भूटान सरकार इसे स्वीकार क्यों नहीं कर रही है? 

भूटान की सीमा के अंदर चीन के एक गाँव बसाने की ख़बर ने जिस अंदाज़ में चौंकाया उसी अंदाज़ में भूटान सरकार ने उस रिपोर्ट को खारिज कर मामले को शांत करने की कोशिश की। लेकिन वैसा होता दीख नहीं रहा है। अब उससे भी बड़ी चौंकाने वाली ख़बर आई है। भूटान के मैप, सैटेलाइट इमेजरी और इन मामलों के जानकारों की रिपोर्टों से दावा किया जा रहा है कि भूटान की ज़मीन पर चीन ने गाँव बसा दिया है। तो सवाल उठता है कि यदि यह सच है तो आख़िर भूटान सरकार इसे स्वीकार क्यों नहीं कर रही है 

क्या भूटान सरकार ने बिल्कुल उसी तरह से उस दावे को खारिज कर दिया जिस तरह से भारत सरकार ने लद्दाख क्षेत्र में चीनी घुसपैठ की बात को खारिज कर दिया था। जब रिपोर्टें आ रही थीं कि भारतीय सीमा में चीनी सैनिक घुस आए हैं तो प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था, 'न वहाँ कोई हमारी सीमा में घुस आया है और न ही कोई घुसा हुआ है, न ही हमारी कोई पोस्ट किसी दूसरे के कब्जे में है।' उसके बाद से भी यही दावे किए जाते रहे कि चीन भारत की सीमा में नहीं घुसा है और इसके बावजूद आज भी दोनों देशों के बीच बैठकों का दौर जारी है। क्या ऐसा चीन की धाक की वजह से है कि चीन पड़ोसियों की ज़मीन पर कब्ज़ा करने में लगा है और पड़ोसी देश खुले तौर पर इसे स्वीकार नहीं कर रहे हैं

ये सवाल भूटान में इस ताज़ा विवाद के बाद उठ रहे हैं जिसमें दावा किया जा रहा है कि चीन ने भूटान की सीमा के क़रीब ढाई किलोमीटर अंदर एक गाँव बसा लिया है। यह ख़बर तब आई जब चीन के सरकारी मीडिया सीजीटीएन के एक वरिष्ठ प्रोड्यूसर शेन शिवेई ने गुरुवार को एक गांव की कई तसवीरें पोस्ट कीं। उन तसवीरों में नदी किनारे बसे गाँव, सड़कें और पेड़-पौधे दीख रहे हैं। उसके साथ उन्होंने ट्वीट में लिखा, 'अब, हमारे पास स्थायी रूप से नवस्थापित पंगड़ा गाँव के निवासी हैं। यह घाटी के किनारे बसा है, यादोंग देश से 35 किमी दक्षिण में है। जगह बताने वाले मैप को देखिए।'

भूटान के क्षेत्र में जब चीन द्वारा पंगड़ा गाँव के निर्माण को लेकर हंगामा शुरू हुआ तो शेन शिवेई ने उस ट्वीट को डिलीट कर दिया।

ऑस्ट्रेलिया के सामरिक नीति संस्थान में काम करने वाले सैटेलाइट इमेजरी विशेषज्ञ नथन रसर ने शेन शिवेई के उस ट्वीट के बाद इस मामले की पड़ताल की। उन्होंने उन तसवीरों, सैटेलाइट इमेजरी और दूसरे तथ्यों के आधार पर दावा किया कि भूटान की ज़मीन पर चीन ने गाँव बसाया है। 

नथन रसर ने ट्वीट किया, 'CGTN के एक रिपोर्टर ने भूटान के 2.5 किमी अंदर में निर्मित एक गाँव की ख़बर पोस्ट की, जिसका निर्माण चीन द्वारा किया गया था और अब भूटानी क्षेत्र पर कब्जा है। फिर शेन शिवेई ने उसे स्वीकार करने के बाद  डिलीट कर दिया। यहाँ एक कैशे स्क्रीनशॉट है।'

इस मामले में 'एनडीटीवी' की एक रिपोर्ट को लेकर अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षक ने भी मैप से इसकी पुष्टि करने की कोशिश की है। Detresfa नाम के ट्विटर हैंडल से पांगड़ा गाँव की लोकेशन वाला मैप ट्वीट किया गया है। उस जगह की उपग्रह इमेजरी अब उस पूर्ण हो चुके गाँव की तसवीरों से मेल खाती है जिन्हें चीन में सोशल मीडिया पर साझा किया गया है।

बता दें कि यह उस डोकलाम क्षेत्र के आसपास है जहाँ भारत और चीन के बीच पहले झड़प हो चुकी है। पांगड़ा गाँव से 9 किलोमीटर दूर ही वह जगह है। डोकलाम विवाद 2017 में 16 जून से 28 अगस्त तक क़रीब ढाई महीने तक रहा था। बातचीत के बाद यह विवाद सुलझा था और कहा गया था कि चीनी सैनिक पीछे हट गए।

हालाँकि, 5 मार्च 2018 को एक सवाल के जवाब में संसद में रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी माना था कि भारतीय और चीनी सैनिकों ने डोकलाम में गतिरोध स्थल से दूर फिर से अपनी तैनाती की है और चीन ने वहाँ सेना के जवानों के लिए हेलीपैड और संतरी चौकियों का निर्माण किया है।

इस तरह एक तरह से सरकार ने ही 2018 में माना था कि डोकलाम विवाद के बाद चीनी सैनिक सीमा क्षेत्र के पास निर्माण कार्य करते रहे थे।

हाल के दिनों में रिपोर्टें तो ऐसी आई हैं कि लद्दाख क्षेत्र में अपनी सेना पीछे हटाने को तैयार चीन हिमाचल प्रदेश क्षेत्र में अपने पैर पसारने की जुगत में है। कहा जाता है कि चीन अपनी विस्तारवादी नीति के तहत यह सब कर रहा है। 

चीन की इस विस्तारवादी नीति का ही नतीजा है कि वह वियतनाम, भारत, नेपाल, भूटान में ज़मीनों पर तो कब्ज़ा जमाना ही चाहता है, उसने अब दूसरे देशों के साथ दोस्ती का हाथ बढ़ाकर दूसरे रूप में अधिकार जमा रहा है। श्रीलंका की हम्बनटोटा बंदरगाह इसकी मिसाल है। बाँग्लादेश और मालदीव जैसे देशों तक भी वह पहुँच बढ़ा रहा है। चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव को भी इसी दिशा में बढ़ाये गये एक क़दम के तौर पर देखा जा रहा है। 

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