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नौजवान देश के खाली हाथों के लिए कुछ नहीं था बजट में

नौजवान देश के खाली हाथों के लिए कुछ नहीं था बजट में

देश में बेरोज़गारी बढ़ रही है, लेकिन रोज़गार के नए मौक़े उपलब्ध कराने की ओर सरकार का ध्यान ही नहीं मोदी सरकार के अंतरिम बजट में भी बेरोज़गारों के लिए कुछ नहीं था।

‘बेरोज़गारी के सवाल पर मोदी सरकार के अंतरिम वित्त मंत्री ने कहा है कि कुछ लोगों ने ऐसा माहौल बना दिया है जबकि रोज़गार के परंपरागत तरीक़े बदल चुके हैं।’ आरोप लगना शुरू हो गए थे कि बजट में बेरोज़गारों के लिए कुछ नहीं था, तब पीयूष गोयल ने एएनआई को दिए एक इंटरव्यू में उपरोक्त सफ़ाई दी।

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बीते 45 बरस में सबसे अधिक बेकारी पैदा करने वाले वर्ष के बारे में आम चुनाव से ठीक पहले के अंतरिम बजट का मौन देश के भविष्य को बहुत भारी पड़ सकता है।

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वाह, अपनी तारीफ़ पर ही थपथपाई मेज

पहली बार लोगों ने देखा कि आमने-सामने हुई तारीफ़ पर कोई शीर्ष राजनेता ऐसी भी प्रतिक्रिया कर सकता है। बजट समाप्त करते समय आख़िरी पंक्तियाँ अंतरिम वित्त मंत्री ने सदन में मौजूद प्रधानमंत्री के व्यक्तित्व को समर्पित कीं। उनकी इतनी ठकुरसुहाती क्षम्य थी पर लोकसभा टीवी के कैमरों ने दर्ज़ किया कि ख़ुद अपनी तारीफ़ से पुलकित प्रधानमंत्री दूसरों से ज्यादा गति और ताक़त से इस पर अपनी मेज़ थपथपाते रहे।

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उद्योगों के लिए खोखला रहा बजट 

अंतरिम बजट जिसे एक अंतरिम वित्त मंत्री ने पहली बार संपूर्ण बजट की तरह पेश किया, इसमें ऐसा कोई कारक मौजूद नहीं मिला जो भयंकर बेरोज़गारी को अंश भर भी छूता। छोटे और मझोले उद्योग जो करोड़ों लोगों को जीने का दिलासा दिए रहते थे, जो नोटबंदी और जीएसटी के घमंड भरे इस्तेमाल से साफ़ हो गए, उनके पुनर्जीवन के लिए इस अंतरिम बजट में कुछ न था। 

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सरकार ख़ुद अपने स्वप्निल नारे ‘मेक इन इंडिया’ की असलियत से वाक़िफ़ है, इसलिए अंतरिम वित्त मंत्री ने इसका नाम तक न लिया। दरअसल, गर सचमुच में इंडिया में मैन्युफ़ैक्चरिंग सेक्टर में वृद्धि हुई होती तो बेरोज़गारों को रोज़गार मिला होता, पर वह तो गर्त में जा चुकी है। ट्रेडिंग इकनॉमिक्स. कॉम के अनुसार नवंबर 2018 में औद्योगिक उत्पादन विकास दर 0.5 फ़ीसद रह गई जबकि कम से कम 4.1 फीसद वृद्धि दर अनुमानित थी।

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एफ़डीआई पर मुँह छिपा रही सरकार

बीते 6 महीने से सरकार एफ़डीआई के आँकड़े छिपा रही है। भारत विगत कई वर्षों से एफ़डीआई आने का दुनिया का सबसे बड़ा केंद्र है। रेलवे और इन्फ़्रास्ट्रक्चर के क्षेत्रों में हमने सौ प्रतिशत तक विदेशी निवेश की छूट देकर यह मुक़ाम हासिल किया है। 

केआरसी एफ़डीआई कांफ़िडेंस इंडेक्स के अनुसार 2015 के बाद पहली बार भारत इस मामले में टॉप टेन से बाहर हो गया है और आठवें स्थान से ग्यारहवें स्थान तक जा गिरा है। इसे छिपाने के लिए अंतरिम वित्त मंत्री ने बीते तीन साल का सकल एफ़डीआई जोड़कर संसद में वाहवाही लूटने की कोशिश की और एफ़डीआई की विकास दर को गोल कर गए।

सेंटर फ़ॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनामी (CMIE) ने पिछले महीने ही बताया था कि नए प्रोजेक्ट लगने की दर बीते 14 साल में सबसे नीचे चली गई है। वायब्रेंट गुजरात में इस साल इंग्लैंड और अमरीका ने पंडाल तक नहीं लगाए।

पकौड़ा और पीएम का विजन

कुंभ में नहाती और गोवंश पर बयान झाड़ने को विकास बताती सरकार ने इस बिगड़ते हालात को संभालने के लिए कुछ भी गंभीर काम नहीं किया। या यूँ समझें कि वह इस काम को अंजाम देने के क़ाबिल ही नहीं है। बेरोज़गार ख़ुद क्या करते ज़ब उनके पीएम का विजन पकौड़े के ठेले के नीचे तक जा पहुँचा हो

लगभग सारे स्वायत्त संस्थानों को बकरी बनाकर सत्ता के शीर्ष पर विराजित यह मंडली भले ही ठहाके लगा रही हो, संसद की समितियों तक को बेरोज़गारी की बाबत सूचना से महरूम रखकर, स्वायत्त रिपोर्टों को नष्ट कर, गायब कर या ठंडे बस्ते में डालकर सरकार भले ही ख़ुद को सफल मान रही हो लेकिन यह देश के लोकतंत्र, आज़ादी और मानवीय गरिमा की दर्दनाक असफलता है।

जिस देश में दुनिया की सबसे बड़ी नौजवान आबादी निवास करती हो पर उसके हाथ और उसका समय नितांत खाली हो, उसे बरबाद होने/करने के लिए किसी शत्रु की क्या ज़रूरत है बीते बरस में बेकारी की दर 7.4 फ़ीसद रही पर अंतरिम वित्त मंत्री 3.4 फ़ीसद के फ़िस्कल पर गर्वित थे।

हो सकता है कि इनकम टैक्स के स्लैब को लोकलुभावन ढंग से पेश कर और ज़िंदा रहने की असफल कोशिश में रोज़ाना ज़िंदगी हारते किसानों के खातों में चुनाव से पहले दो हज़ार रुपये की एक किश्त डालकर मोदी और शाह जी एक बार फिर चुनावी बाज़ी जीत लें या बार्डर तक जा पहुँचें, जहाँ से वे बिकाऊ दलों/नेताओं को ख़रीद कर पुन: सत्तासीन हो जाएँ और इसे अपनी सफलता कहें लेकिन वे देश के भविष्य (नौजवानों) को असफल करने के आज़ादी के बाद के सबसे बड़े गुनहगार हैं और समय इसे दर्ज़ करेगा!

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