मोदी सरकार के दावे फुस्स, औद्योगिक उत्पादन दर न्यूनतम स्तर 0.1% पर
भारत की अर्थव्यवस्था के लिए एक बुरी ख़बर है। इसका औद्योगिक उत्पादन मंदी के दौर में आ गया है। इसका मतलब यह है कि औद्योगिक उत्पादन दर शून्य से नीचे चला गया। मार्च महीने में औद्योगिक उत्पादन इनडेक्स गिर कर 0.1 प्रतिशत पर पहुँच गया, जो पिछले 20 महीने का न्यूनतम है।
सेंट्रल स्टैटिस्टिकल ऑफ़िस ने शुक्रवार को जारी रिपोर्ट में इसकी पुष्टि कर दी है।
इसकी मुख्य वजह खपत और निवेश दोनों में ही कमी बताई जा रही है। यह चिंता की बात इसलिए है कि खपत कम होने का सीधा अर्थ है कि पूरी अर्थव्यवस्था की रफ़्तार धीमी हो चुकी है। वह इसलिए कि खपत कम होने का मतलब लोगों की आमदनी में कमी होना है, उनके पास अतिरिक्त पैसे का न होना है। इसके साथ ही खपत कम होने से उत्पादन कम होता है, इससे रोज़गार कम होता है। किसी एक उत्पाद से जुड़ी तमाम चीजों का उत्पादन भी कम होता है।
भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ़्तार कम होना कोई नई ख़बर नहीं है। बीते दो साल से इसमें लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है।
नरेंद्र मोदी सरकार इसके बात विकास के लंबे चौड़े दावे कर रही है और अपनी बात को सही साबित करने के लिए आँकड़े छिपा रही हैं। हद तो तब हो गई जब वित्त मंत्रालय ने आँकड़ों से छेड़छाड़ तक की।
सोसाइटी ऑफ़ ऑटो मैन्युफ़ैक्चरर्स ने बीते महीने जारी अपनी रिपोर्ट में कहा था कि कार की बिक्री शहरी इलाक़ों में वित्तीय वर्ष 2018-19 के दौरान सिर्फ़ 2.70 प्रतिशत की दर से बढ़ी। यह पिछले 5 साल का न्यूनतम स्तर है। भारतीय अर्थव्यवस्था दिसंबर महीने में 6.60 प्रतिशत की दर से बढ़ी, जो बीते 5 साल का न्यूनतम है।