अमेरिका-पाक दबाव के बावजूद भारत की रूस में दिलचस्पी क्यों?
अंतरराष्ट्रीय रिश्तों में तेज़ी से बदलते समीकरणों और उलटफेर के बावजूद भारत और रूस के बीच सामरिक साझेदारी के रिश्तों ने निरंतर गहराई ली है और समय की कसौटी पर खरे उतरे हैं। शीतयुद्ध के बाद नब्बे के दशक में दोनों देशों के रिश्तों पर अमेरिका का ग्रहण लगा, लेकिन 21वीं सदी के शुरू में दोनों देशों ने तय किया कि आपसी रिश्तों को नई ऊँचाई तक पहुँचाने के लिए सालाना एक-दूसरे के यहाँ शिखर बैठकें करेंगे जो बीते 20 सालों के दौरान बेनागे चलती रही।
इस साल रूस के ब्लादिवोस्तक शहर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 20वीं शिखर बैठक के लिए तीन सितम्बर को पहुँचे तो रूसी राष्ट्रपति ब्लादीमिर पुतिन ने अपने परम्परागत दोस्त देश के शिखर नेता की ज़बरदस्त आवभगत की और यह दिखाया कि भारत-रूस दोस्ती पर किसी दूसरे ताक़तवर देश की आँच नहीं आ सकती।
और मज़बूत होंगे भारत-रूस सहयोग
इसी आलोक में भारत रूस की 20वीं शिखर बैठक का संयुक्त बयान 5 सितम्बर को जारी हुआ। यह तय हुआ कि दोनों देश पारम्परिक रक्षा क्षेत्र से लेकर अंतरिक्ष और ऊर्जा क्षेत्रों के अलावा आपसी आर्थिक आदान-प्रदान को आने वाले सालों में और गहराई देंगे। दोनों देशों के इन क्षेत्रों में सहयोग के जिन 15 समझौतों पर हस्ताक्षर हुए, वे इस बात के सूचक हैं कि आने वाले दशकों में रिश्ते एक-दूसरे के पूरक बनते जाएँगे। दोनों दोस्तों ने पिछली सदी के उत्तरार्द्ध में रिश्तों की ठोस बुनियाद रख कर सामरिक सहयोग की जो इमारत खड़ी की थी, उसमें नई मंजिलें जुड़ती जाएँगी।पाकिस्तान का पेच!
रूस ने हाल में पाकिस्तान के साथ रक्षा सम्बन्ध बनाए हैं और दोनों देशों ने साझा सैन्य अभ्यास भी किये हैं।
पिछले महीने रूस जिस तरह जम्मू-कश्मीर मसले पर भारत के साथ खड़ा दिखा, वह शीतयुद्ध के उन दिनों की याद दिलाता है जब कश्मीर मसले पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में 'वीटो' लगाकर भारत की इज्जत बचा लेता था।
इस बार भी रूस ने जम्मू-कश्मीर के अनुच्छेद-370 के मसले पर भारत के पक्ष में बयान दिया। उसने साबित किया कि संकट के समय दोनों देश एक दूसरे के काम आते हैं।
मसलन, 2015 में यूक्रेन के प्रांत क्राइमिया को रूस द्वारा अपने में विलय किये जाने को भारत ने समर्थन दे दिया था, हालाँकि क्राइमिया के रूस में विलय की अंतरराष्ट्रीय समुदाय ख़ासकर अमेरिका और पश्चिमी देशों ने घोर निंदा की थी।
अमेरिकी दबाव दरकिनार!
भारत-रूस दोस्ती पर हाल के महीनों में अमेरिका ने सेंध लगाने की कोशिश की, लेकिन भारत ने इसका कुशल कूटनीति से विरोध किया। उसने अमेरिका की इन कोशिशों को सफल नहीं होने दिया कि भारत रूस से रक्षा साजो-सामान नहीं खरीदे। रूस से एस-400 एन्टी मिसाइल प्रणाली नहीं खरीदने की अमेरिका की चेतावनियों को भारत ने अनसुना तो किया ही, रूस के साथ रक्षा सहयोग समझौते को दस साल के लिए 2030 तक और आगे बढ़ा दिया।अमेरिका ने अपनी संसद में कैटसा ( काउंटरिंग अमेरिकन एडवर्सरीज थ्रू सैंकशंस एक्ट) नाम का एक क़ानून भी पारित किया जिसमें प्रावधान है कि रूस से जो भी देश रक्षा सम्बन्ध रखेगा, उसे अमेरिकी प्रतिबंधों के कोप का शिकार होना पड़ेगा।
रूस से भारत के रक्षा रिश्तों को कमज़ोर कर अमेरिका चाहता है कि भारत के रक्षा बाज़ार पर अमेरिका अपना एकाधिकार बना ले और ख़ासकर रूस को भारत के रक्षा बाजार में होड़ करने से रोक दे।
भारत को अगले एक दशक के भीतर 150-200 अरब डॉलर के हथियार अपनी सेनाओं को मज़बूत बनाने के लिए ख़रीदने हैं, जिन पर दुनिया के अग्रणी हथियार निर्माताओं की निगाहें टिकी हैं। भले ही भारत ने अमेरिका से पिछले 12 सालों में क़रीब 20 अरब डॉलर मूल्य के सैनिक साजो-सामान ख़रीदे हैं, पुतिन-मोदी की 20वीं शिखर बैठक के दौरान रक्षा सहयोग को स्थायी बनाने के जो समझौते हुए हैं, वे रूस को भारत का और भरोसेमंद रक्षा साझेदार बनाएँगे।
रूस ने शीतयुद्ध के दौर में उस वक्त भारत की सेनाओं को ताक़तवर बनाने में मदद दी जब चीन से लेकर अमेरिका तक पाकिस्तान की सैन्य ताक़त मज़बूत करने में लगे थे। आज भी रूस भारत को वैसी शस्त्र प्रणाली और शस्त्र मंच मुहैया करा रहा है, जिनके लिए भारत का नया बना सामरिक साझेदार अमेरिका कभी तैयार नहीं होता।
रूस ने जहाँ भारत को परमाणु पनडुब्बी 'अरिहंत' बनाने में अत्यधिक संवेदनशील और असाधारण तकनीकी सहयोग दिया, वहीं उसने भारत को नब्बे के दशक और फिर पिछले दशक में एक एक परमाणु पनडुब्बी लीज़ पर दी।
अब एक और परमाणु पनडुब्बी भारतीय नौसेना को लीज करने पर बात चल रही है।
मिसाइल प्रणाली
लेकिन सबसे बढ़कर भारत की सैन्य ताक़त को मज़बूत करने में रूस ने जो मदद दी है वह भारत की मिसाइल ताक़त को नई गहराई देने में कही जा सकती है। रूस ने अस्सी के दशक में जिस तरह अंतरिक्ष कार्यक्रम में भारत को अपने पाँवों पर खडा होने में मदद दी, उसके बल पर भारत अपने मिसाइल कार्यक्रम को विश्व स्तर तक बनाने में सफल हो सका। सुपरसोनिक ब्रह्मोस मिसाइल इसकी एक मिसाल है।
आज भले ही भारत और अमेरिका के बीच सामरिक साझेदारी का रिश्ता काफ़ी गहरा हो चुका है और दोनों देश हिंद प्रशांत इलाक़े में अपने हितों को बचाने के लिये चीन के ख़िलाफ़ साझा रणनीति पर काम कर रहे हैं। लेकिन इसके लिए भारत रूस का साथ नहीं छोड़ सकता।
चीन और पाकिस्तान की सैन्य साँठगाँठ का जो सामरिक दबाव भारत महसूस कर रहा है, उसे निरस्त करने के लिए भारत को चीन के प्रतिद्वंद्वी देशों अमेरिका व जापान और इजराइल व फ्रांस जैसे देशों की ज़रूरत तो है ही, रूस का भी सहयोग कम अहम नहीं कहा जा सकता।
इसी नज़रिये से हम रूस के सुदूर पूर्व तटीय प्रशांत शहर ब्लादिवोस्तक में तीन और चार सितम्बर को हुई 20वीं शिखर बैठक को देख सकते हैं। आज दुनिया के बदले हुए सामरिक समीकरण में भारत ने जहाँ अमेरिका और जापान के साथ सामरिक रिश्ते गहरे कर अपनी सामरिक ताक़त बढ़ाने में कामयाबी हासिल की है वहीं रूस की अहमियत किसी भी नज़रिये से कम नहीं हुई कही जा सकती है।