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तनाव के बीच करतारपुर पर मिले भारत-पाक, अगली बैठक अप्रैल में 

तनाव के बीच करतारपुर पर मिले भारत-पाक, अगली बैठक अप्रैल में 

करतारपुर गलियारे को लेकर अटारी में भारत-पाकिस्तान की बैठक संपन्न हो गई है। सवाल यह उठ रहा है कि मोदी सरकार को बातचीत की इतनी जल्दबाज़ी क्यों है। 

करतारपुर गलियारे को लेकर अटारी में भारत-पाकिस्तान की बैठक संपन्न हो गई है। दोनों देशों की ओर से जारी संयुक्त बयान में कहा गया है कि गलियारे को लेकर तकनीकी विशेषज्ञों की बातचीत हुई है। बयान में कहा गया है कि यह बातचीत सौहार्द्रपूर्ण माहौल में हुई है। दोनों देशों के बीच अगले दौर की बातचीत 2 अप्रैल 2019 को वाघा में होगी। 

बैठक के बाद गृह मंत्रालय के संयुक्त सचिव एस. सी. एल दास ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा कि दोनों देशों की बैठक में भारत ने कहा कि पहले चरण में कस से कम 5000 श्रद्धालुओं के आने की व्यवस्था होनी चाहिए। इसमें भारत के साथ ही विदेशों में रह रहे भारतीय मूल के लोग भी शामिल होंगे। इसके अलावा गुरुपरब, बैशाखी पर हज़ारों की संख्या में लोग करतारपुर साहिब गुरुद्वारे के दर्शन के लिए आएँगे। 

भारत ने बैठक में कहा कि करतारपुर गलियारा पूरी तरह वीजा फ़्री होना चाहिए और इसमें बहुत ज़्यादा प्रक्रिया या कागजी काम नहीं होना चाहिए। 

बता दें कि पुलवामा आतंकवादी हमले और बालाकोट हवाई हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्ते सुधरे नहीं है, लेकिन दोनों देशों के बीच करतारपुर गलियारे पर बातचीत हुई है। दोनों देशों के प्रतिनिधियों ने आज अटारी सीमा पर भारतीय क्षेत्र में बातचीत की। भारतीय प्रतिनिधिमंडल की अगुवाई गृह मंत्रालय में संयुक्त सचिव एस. सी. एल दास ने की। प्रतिनिधिमंडल में विदेश मंत्रालय, पंजाब सरकार, राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण और लैंड पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया के प्रतिनिधि भी शामिल रहे।

बताया जा रहा है कि गलियारे में आधुनिक बुनियादी सुविधाएँ तैयार करने और गलियारा बनाने के मुद्दे पर दोनों देशों के बीच तैयार सहमति पत्र पर भी बातचीत हुई है। करतारपुर गलियारे से जुड़े कई और मुद्दों पर भी दोनों देशों ने बात की है और गलियारे को जल्द से जल्द खोलने के लिए काम शुरू करने पर सहमत हैं। 

यह बातचीत ऐसे समय में हुई है, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आम सभाओं में पाकिस्तान का नाम लेकर कहा है कि अंदर घुस कर आतंकवादियों को चुन-चुन कर मारेंगे। उन्होंने यह भी कहा है कि तड़के 3.30 पर हुए हवाई हमले के बाद पाकिस्तान की नींद गायब हो गई।

हालाँकि पाकिस्तान ने इस हमले में किसी के मारे जाने के दावों का खंडन किया है और अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसियों ने भी कहा है कि किसी के मारे जाने का कोई सबूत उन्हें नहीं मिला। पर सत्तारूढ़ दल भारतीय जनता  पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ने 250 आतंकवादियों के मारे जाने का दावा किया। जिस किसी ने इस संख्या पर सवाल पूछे मोदी, अमित शाह और कई केंद्रीय मंत्रियों ने उसकी राष्ट्रभक्ति पर सवाल उठाया और पाकिस्तान का एजेंट तक कह दिया। राष्ट्रवाद का ऐसा वातवरण तैयार कर दिया गया कि कोई सरकार से सवाल नहीं पूछ सकता है। चुनाव के ठीक पहले इस मुद्दे पर बीजेपी की आक्रामकता से सन्न विपक्षी पार्टियाँ रक्षात्मक रवैया अपनाने को मजबूर हैं। 

मोदी सरकार अब उसी पाकिस्तान से बात कर रही है, जिसकी ज़मीन पर मौजूद आतंकवादी संगठन जैश-ए-मुहम्मद ने पुलवामा हमले की ज़िम्मेदारी ली, विदेश मंत्री शाह महमूूद क़ुरैशी ने माना कि जैश का सरगना अज़हर मसूद पाकिस्तान में ही है।

यह भी अजीब विंडबना ही है कि इस बातचीत के कुछ घंटे पहले ही चीन के अड़चन डालने की वजह से संयुक्त राष्ट्र सुुरक्षा परिषद ने अज़हर मसूद को वैश्विक आतंकवादी घोषित नहीं किया। भारत ने इसके लिए एड़ी-चोटी एक कर दिया था और इसे नई दिल्ली की कूटनयिक हार के रूप में देखा जा सकता है।

पाकिस्तान को फ़ायदा

 नरेंद्र मोदी ने इसके पहले एक नहीं, कई बार कहा है कि जब तक पाकिस्तान आतंकवाद नहीं रोकता, उससे किसी तरह की कोई बातचीत नहीं हो सकती। पर आतंकवादी हमले के एक महीने बाद ही दोनों देशों में बातचीत हो रही है। हालाँकि कुछ दिन पहले केंद्र सरकार ने कहा था कि यह बातचीत सिर्फ़ करतारपुर पर होगी, यह दोनों देशों के बीच समग्र बातचीत की शुरुआत नहीं है। पर यह सवाल तो उठता है कि बातचीत तो आख़िर बातचीत ही है, मुद्दा कोई हो। इसके बाद इस्लामाबाद विश्व समुदाय से यह कह सकता है कि भारत ने पाकिस्तान से करतारपुर पर तो बात की ही है, पर दूसरे विषयों पर बातचीत से कन्नी काट रहा है क्योंकि वह दक्षिण एशिया में शांति नहीं चाहता है। इसका जवाब देना भारत के लिए मुश्किल होगा। 

पर्यवेक्षक इस बात पर हैरान हैं कि पाकिस्तान से बातचीत में इतनी जल्दबाज़ी क्यों की जा रही है। देश में पाकिस्तान को दुश्मन बताना, उसे सबक सिखाने की चेतावनी देना, अंदर घुस कर उसे मारने की धमकी देना, इस पर सवाल पूछने वालों को देशद्रोही क़रार देना और सीमा पर उसी से बात करना, कौन सी राजनीति या कूटनीति है, इस पर सवाल उठना लाज़िमी है।

खालिस्तान का मुद्दा

भारत की दूसरी चिंताएँ भी हैं। यह आशंका जताई गई है कि पाकिस्तान खालिस्तानी तत्वों को इस बहाने बढ़ावा देगा और उन्हें भारत में गतिविधियाँ बढ़ाने में मदद करेगा। करतारपुर साहिब जाने वाले तीर्थयात्रियों को प्रभावित करने और उनमें खालिस्तान के प्रति आकर्षण बढ़ाने के आरोप भी पाकिस्तान पर लगते रहे हैं। करतारपुर गलियारे के शिलान्यास समारोह में पंजाब सरकर के मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू को एक पाकिस्तानी सिख युवक से मिलवा दिया गया था, जिसके बारे में कहा जाता है कि वह खालिस्तान आंदोलन से जुड़ा हुआ है और पाकिस्तान उसे शह देता रहा है। इस पर सिद्धू की खूब खिंचाई हुई और बीजेपी की साइबर सेना ने उन्हें आतंकवाद का समर्थक तक कह दिया था। मुमकिन है कि भारतीय प्रतिनिधमंडल पाकिस्तान से बातचीत में इस मुद्दे पर अपनी आशंकाएँ जताए। 

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