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स्विस बैंकों में भारतीयों के जमा 50% बढ़े, 14 साल का रिकॉर्ड

स्विस बैंकों में भारतीयों के जमा 50% बढ़े, 14 साल का रिकॉर्ड

काला धन को लेकर कभी सुर्खियों में रहे स्विस बैंकों में अब भारतीयों का जमा 50 फ़ीसदी बढ़ गया है। यह कैसे हुआ जब कोरोना महामारी और लॉकडाउन से लोगों की आय कम होने की बात कही जा रही थी?

स्विस बैंकों यानी स्विट्ज़रलैंड के बैंकों में भारतीयों द्वारा जमा की जाने वाली राशि में जबरदस्त उछाल आया है। एक साल में क़रीब 50 फ़ीसदी जमा बढ़ गया है। यह 14 साल में रिकॉर्ड है। यह बढ़ोतरी तब हुई है जब पिछले दो साल से कोरोना महामारी और लॉकडाउन की वजह से पूरी अर्थव्यवस्था के बुरी तरह से प्रभावित होने की रिपोर्टें हैं। ऐसी रिपोर्टें आती रही हैं कि इस दौरान भारतीयों की आय कम हो गई है। हालाँकि, इसके साथ यह भी रिपोर्ट आती रही है कि अमीरों की संपत्ति बढ़ी है।

स्विस बैंकों में भारतीयों के जमा पैसे की रिपोर्ट स्विट्ज़रलैंड के केंद्रीय बैंक के वार्षिक आँकड़ों से निकल कर आई है। पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार आँकड़ों में कहा गया है कि स्विस बैंकों की भारत स्थित शाखाओं और अन्य वित्तीय संस्थानों के माध्यम से स्विस बैंकों में भारतीय व्यक्तियों और फर्मों द्वारा जमा किया गया फंड, 2021 में तेज उछाल के कारण 3.83 बिलियन स्विस फ़्रैंक यानी क़रीब 30,500 करोड़ रुपये से अधिक हो गया है। स्विस बैंकों में भारतीयों का कुल फंड 2020 के अंत में 2.55 बिलियन स्विस फ़्रैंक यानी क़रीब 20,700 करोड़ रुपये था। 2020 में भी उससे पिछले साल की तुलना में बढ़ोतरी हुई थी। 

तो क्या इसका काला धन से कुछ लेना देना है क्योंकि 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले स्विस बैंकों के बारे में जैसी सुर्खियाँ बनी थीं उससे कुछ ऐसा ही संदेश गया था? तो इसका जवाब है कि इस बारे में कुछ नहीं कहा गया है कि ये काला धन है या नहीं। यदि इसमें काला धन है तो कितना है यह भी साफ़ नहीं है। 

आँकड़े जारी करने वाले स्विट्ज़रलैंड के केंद्रीय बैंक ने भी यही कहा है। ये बैंकों द्वारा एसएनबी को बताए गए आधिकारिक आँकड़े हैं और स्विट्ज़रलैंड में भारतीयों द्वारा रखे गए बहुचर्चित कथित काले धन की मात्रा का संकेत नहीं देते हैं। इन आँकड़ों में वह पैसा भी शामिल नहीं है जो भारतीयों, एनआरआई या अन्य लोगों के पास स्विस बैंकों में तीसरे देश की संस्थाओं के नाम पर हो सकता है।

स्विस बैंकों में खाताधारकों द्वारा रखे जाने वाले रुपये को लेकर गोपनीयता क़ानून इतना सख़्त है कि उसके बारे में स्विस सरकार भी जानकारी नहीं हासिल कर सकती है। इसी वजह से स्विस बैंकों में जमा रुपये को लेकर अक्सर संदेह की नज़र से देखा जाता रहा है।

कुछ वर्ष पहले जब भारत में स्विस बैंकों में जमा भारतीयों के पैसे को लेकर हंगामा मचा था तब यही कहा जाता था कि स्विस बैंकों में पड़ा भारतीयों का काला धन वापस लाया जाना चाहिए।

तब चुनाव में भी यह मुद्दा उठा था और कहा गया था कि यदि विदेशों में पड़े कालेधन को वापस लाया जाए तो हर भारतीयों को लाखों रुपये दिए जा सकते हैं। 

ऐसे ही हंगामों के बाद स्विट्ज़रलैंड सरकार पर कई देशों ने दबाव बनाया कि बैंकों में जमा संबंधित देशों के नागरिकों की जानकारियाँ साझा की जाएँ। हालाँकि पूरी तरह ऐसा नहीं हो सका है। लेकिन कुछ नियमों में ढील दी गई है। ऐसे मामलों में स्विट्ज़रलैंड और भारत के बीच 2018 से सूचनाओं का आदान-प्रदान होता है। 2018 से स्विस बैंकों के साथ खाते रखने वाले सभी भारतीय निवासियों की विस्तृत वित्तीय जानकारी पहली बार सितंबर 2019 में भारत के साथ साझा की गई थी। इसके अलावा स्विट्जरलैंड उन भारतीयों के खातों के बारे में भी ब्योरा साझा करता रहा है, जिन पर प्रथम दृष्टया ग़लत कामों में शामिल होने का संदेह हो।

रिपोर्ट में कहा गया है कि इससे पहले साल 2006 में भारतीयों के सबसे ज़्यादा रुपये स्विस बैंकों में जमा थे। तब वह रक़म क़रीब 52 हजार करोड़ रुपये के क़रीब थी। 2006 के बाद से स्विस बैंक में जमा भारतीय रुपयों में लगातार कमी होने लगी थी। लेकिन उसके बाद 2011, 2013, 2017, 2020 और 2021 में इसमें तेज़ बढ़ोतरी हुई।

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