मोदी की गारंटी’ पर महिलाओं को भरोसा नहीं करना चाहिए!
शुक्रवार को भारत के प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी महाराष्ट्र के सोलापुर में एक जनसभा को संबोधित कर रहे थे। हजारों करोड़ रुपये की ‘अमृत’ परियोजनाओं की आधारशिला रखने के बाद प्रधानमंत्री एक बार फिर अतिरेक से भर जाते हैं। लोकसभा चुनावों के मद्देनजर आजकल उनका ‘मोदी की गारंटी’ वाला स्लोगन अपने चरम पर है। हर जगह जाकर ‘मोदी की गारंटी’ ऐसे बाँट रहे हैं जैसे इस गारंटी और इसमें लगने वाली लागत में कोई साम्य ही न हो। सामाजिक-राजनैतिक जीवन को तो छोड़िए कोई व्यक्ति जब अपने पारिवारिक जीवन में भी कोई वादे या गारंटी को अपने पत्नी, बच्चों या मां-बाप के सामने बार-बार रखता है तो उसकी पूर्ति के लिए परिवार समय समय पर जवाब तलब करता है। वादा/गारंटी पूरा न करने पर परिवार नाराज हो सकता है, परिवार की नजर में उस व्यक्ति की छवि गिर सकती है और यह भी हो सकता है कि आने वाले समय में उसके ही परिवार का कोई व्यक्ति उस पर कभी भरोसा ही न करे।
एक परिवार में गारंटी/वादा पूरा न करने पर सिर्फ एक परिवार का नुकसान होता है। सिर्फ एक परिवार का ही भरोसा टूटता है। लेकिन यही काम जब कोई प्रधानमंत्री अपनी 140 करोड़ आबादी से हर रोज करता हो लेकिन उसकी गारंटी धरातल में कहीं दिख न रही हो तब क्या किया जाना चाहिए?मुझे लगता है जब करोड़ों भारतीयों को छद्म वादों के आधार पर छला जा रहा हो तब उन्हे सतर्क हो जाना चाहिए।
कुछ बातें अब बिल्कुल स्पष्ट हो जानी चाहिए। पहला यह कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वर्तमान भारतीय जनता पार्टी के सर्वोच्च नेता हैं। दूसरा, पार्टी में बिना उनकी सलाह के किसी भी चुनावी रणनीति पर मुहर नहीं लगती। तीसरा, भाजपा शासित राज्यों में कब, कौन व्यक्ति मुख्यमंत्री बनेगा यह भी नरेंद्र मोदी की सहमति के बिना तय नहीं किया जा सकता है। कब और किस मुद्दे पर सरकार या पार्टी को बोलना है किस पर पीएम समेत सभी को चुप रहना है यह रणनीति भी नरेंद्र मोदी की सहमति के बिना तय नहीं की जा सकती। वर्तमान भारतीय जनता पार्टी का पूरा ‘इकोसिस्टम’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इर्द-गिर्द ही बुना गया है। मतलब साफ है कि यदि कोई ‘वीभत्स’ और ‘अमानवीय’ निर्णय किसी भाजपा शासित राज्य सरकार द्वारा लिया जाता है और राष्ट्रीय स्तर पर प्रकाश में आने के बावजूद उसे बदला नहीं जाता है तो इसका अर्थ साफ है कि इस निर्णय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सहमति पूरी तरह शामिल है।
बिलकिस बानो का मामला लीजिए: 27 फरवरी 2002 को गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन के डिब्बे में आग लग जाने की वजह से 59 लोगों की मौत हो गई। ये मरने वाले लोग अयोध्या से कारसेवा करके वापस लौट रहे थे। अगले दिन से पूरे गुजरात में मुस्लिम विरोधी घटनाओं की बाढ़ आ गई। बिलकिस बानो को डर लगने लगा कि कहीं उसका परिवार भी इस मुस्लिम विरोधी आग में न जल जाए। अपने डर से बचने के लिए बिलकिस ने अपनी साढ़े तीन साल की बच्ची और 15 अन्य परिवार के सदस्यों के साथ 28 फरवरी को अपने गाँव, राधिकापुर, जिला दाहोद, को छोड़ दिया। सुरक्षित जगह की तलाश में भटकती बिलकिस और उनका परिवार 3 मार्च 2002 को छप्परबाड़ गाँव पहुंचे। यहाँ 20-30 लोगों के एक हथियारबंद झुंड ने उन्हे घेर लिया। उस भीड़ ने बिलकिस का बलात्कार किया, बिल्किस की माँ का भी बलात्कार किया, परिवार की तीन अन्य महिलाओं का भी बलात्कार किया और बिलकिस की साढ़े तीन साल की बच्ची को जमीन में पटककर मार दिया। उस समय 21 साल की बिलकिस 5 महीने से गर्भवती थी। उसको जो डर सता रहा था वो सच हो चुका था।
बिल्किस के साथ जब यह घटना घटी तब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। तमाम महिला सामाजिक कार्यकर्ताओं(न कि सरकार) की मदद से बिल्किस बानो को न्याय मिलना सुनिश्चित हुआ। अदालत ने इस झुंड के 11 लोगों को हत्या और बलात्कार का दोषी ठहराते हुए उम्र कैद की सजा दी।लेकिन गुजरात की भारतीय जनता पार्टी सरकार ने भारत की आजादी की 75वीं वर्षगांठ, 15 अगस्त 2022 को उन 11 बलात्कारियों को जेल से रिहा कर दिया। इतने वीभत्स अपराध के दोषियों की रिहाई के बाद इन्हे फूल-माला पहनाया गया, मिठाई खिलाई गई, और इन्हे भाजपा विधायक द्वारा ‘संस्कारी’ तक कह डाला गया। क्या किसी गर्भवती महिला का बलात्कार करने वाला ‘संस्कारी’ होता है? साढ़े तीन साल की बच्ची को पटककर मार देने वाला ‘संस्कारी’ होता है? पीएम मोदी चाहते तो कम से कम अपनी ही राज्य सरकार के इस शर्मसार करने वाले निर्णय पर ‘अफसोस’ या ‘कभी न माफ’ करने की बात तो कर ही सकते थे, लेकिन उन्होंने इस नृशंस अपराध पर चुप रहकर इतिहास में अपना नाम दर्ज कर लिया।
विशेष बात तो यह है कि जब इन धूर्त अपराधियों को रिहा किया जा रहा था तब पीएम मोदी लाल किले से महिला सम्मान की ‘गारंटी’ बाँट रहे थे। क्या किसी को ऐसी गारंटी पर भरोसा करना चाहिए? क्या किसी महिला को नरेंद्र मोदी की इस गारंटी पर भरोसा करना चाहिए? क्या किसी भी लड़की के माता-पिता को नरेंद्र मोदी की गारंटी पर भरोसा करना चाहिए? ‘मोदी की गारंटी’ पर भरोसे का निर्णय लेते समय न्यायमूर्ति मृदुला भाटकर को सुनना चाहिए। न्यायमूर्ति मृदुला भाटकर, जिन्होंने बिल्किस बानो सामूहिक बलात्कार मामले में 11 दोषियों की सजा को बरकरार रखा था, ने बलात्कारियों की रिहाई के लिए न्यायपालिका को दोष नहीं देने का आग्रह करते हुए एक इंटरव्यू के दौरान कहा है कि यह सरकार का निर्णय था न्यायपालिका का नहीं ! जब यह सरकार का फैसला था तो यह फैसला बहुत भयानक था। यह महिलाओं के सम्मान के खिलाफ़ और बलात्कारियों के प्रोत्साहन को बढ़ाने वाला फैसला था। ऐसे में, अब यह महिलाओं को खुद तय करना चाहिए कि गारंटी पर भरोसा करना है या नहीं!
केंद्र सरकार महिला केंद्रित बहुत सी योजनाएं चला रही है।जैसे ‘वन स्टॉप सेंटर’ हेल्पलाइन: ताकि किसी भी परेशानी और शोषण के विरुद्ध तुरंत राहत मिल सके; ‘उज्जवला योजना’: ताकि महिलाओं के यौन शोषण और ट्रैफिकिंग को रोका जा सके; ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना: ताकि भ्रूण में लड़कियों को मारे जाने से रोका जा सके; ‘स्वधार गृह’ योजना: ताकि महिलायें गरिमापूर्ण जीवन जी सकें और ‘मिशन शक्ति’ जैसी योजनाएं भी हैं जोकि महिलाओं के लिए सबसे ज्यादा असुरक्षित उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में चलाई जा रही हैं। एक तरफ ये योजनाएं हैं जो यह बताने की कोशिश है कि भारत सरकार महिलाओं को लेकर बहुत चिंतित है। तो दूसरी तरफ दो-दो महिलाओं के बलात्कार के आरोपी को कानून की आड़ में बार-बार पैरोल पर छोड़े जाने का उदाहरण है।
यह उदाहरण राम रहीम का है: डेरा सच्चा सौदा के मालिक गुरमीत राम रहीम को दो महिलाओं के बलात्कार के लिए, 20 सालों तक केस चलने के बाद 2017 में 20 साल की सजा हुई। इसके बाद फिर 2019 में सिरसा के पत्रकार राम चंदर छत्रपति की हत्या(2002) के मामले में सजा हुई। वर्ष 2021 में राम रहीम को चार अन्य लोगों के साथ, डेरा प्रबंधक रणजीत सिंह की हत्या की साजिश रचने का भी दोषी ठहराया गया था और इतने के बाद भी हरियाणा की बीजेपी सरकार गुरमीत राम रहीम को ‘हार्डकोर’ अपराधी नहीं मानती। पैरोल दी जानी है या नहीं इसका ‘अंतिम निर्णय’ सरकार ही करती है जेल प्रशासन नहीं।
दो-दो महिलाओं के साथ बलात्कार करना शायद भाजपा सरकार के लिए कोई बड़ा अपराध नहीं है इसलिए इस अपराधी राम रहीम को हरियाणा भाजपा सरकार ने एक बार फिर से 50 दिन की पैरोल पर छोड़ दिया है। पिछले 2 साल की कैद के दौरान इस बलात्कारी राम रहीम को अब तक लगभग 7 महीनों(232 दिन) की पैरोल मिल चुकी है। भारत में 85 साल के एक बुजुर्ग स्टैन स्वामी बीमारी के बाद भी जेल से बाहर नहीं आ सके थे और जेल में ही उनकी मौत हो गई, जबकि उनके खिलाफ कोई अपराध साबित नहीं हुआ था लेकिन इस महिलाओं के साथ बलात्कार के घोषित अपराधी को जेल से जब चाहे तब आने की छूट मिली हुई है। राम रहीम के डेरा सच्चा सौदा के ‘भक्तों’ की बड़ी संख्या प्रमुख रूप से पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और कुछ सीमा तक यूपी में भी है।
टाइम्स ऑफ इंडिया ने इस बलात्कारी को मिलने वाली पैरोल का समय और उस दौरान होने वाले चुनावों का विश्लेषण किया है। 7 फरवरी 2022 जब राम रहीम को 21 दिन की पैरोल दी गई तब ‘पंजाब विधानसभा’ चुनाव होने वाले थे; फिर 17 जून 2022 को मिली 30 दिन की पैरोल के दौरान हरियाणा में पंचायत चुनाव होने वाले थे; 15 अक्टूबर 2022 को 40 दिन की पैरोल के समय आदमपुर उप-चुनाव होने वाले थे; 20 जुलाई 2023 को जब 30 दिन की पैरोल मिली तब हरियाणा में पंचायत चुनाव होने वाले थे; एक बार फिर 21 नवंबर 2023 को 21 दिन की पैरोल तब मिली जब राजस्थान विधान सभा चुनाव होने थे; और अब जब 50 दिन की पैरोल मिली है तब 2024 के लोकसभा चुनाव सामने हैं। काँग्रेस ने 22 जनवरी के दिन होने वाली रामलला प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम में न जाने का फैसला ही इसलिए किया क्योंकि भाजपा, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में इस धार्मिक कार्यक्रम को राजनैतिक रूप देने में लगी है। राम रहीम भी इसी कड़ी का हिस्सा जान पड़ता है। पूरी संभावना है कि राम रहीम ने इस बार मिली पैरोल में बागपत में रहने का फैसला ही इसलिए किया हो ताकि अयोध्या के धार्मिक कार्यक्रम में वह राजनैतिक रंग घोल सके। उसने आश्रम पहुंचते ही अपने ‘भक्तों’ से कहा कि- 22 जनवरी को पूरे देश में राम जी का पर्व मनाया जा रहा है, सभी लोगों ने इस पर्व में भाग लेना है। इस पर्व को दीपावली की तरह मनाना है।
नरेंद्र मोदी को और न ही पूरी भारतीय जनता पार्टी को इस बात की चिंता है कि वो लगातार ऐसे लोगों के साथ खड़े होते दिख रहे हैं जो महिलाओं के खिलाफ, उनकी गरिमा के विरुद्ध सबसे नृशंस अपराधों में शामिल हैं। जबकि उन्हे चिंता होनी चाहिए थी क्योंकि आखिर महिलायें लगभग 50% वोट बैंक का निर्माण जो करती हैं। यह वोट जिसके साथ ज्यादा जाएगा उसका सत्ता में बना रहना उतना ही निश्चित होता रहेगा। लेकिन एक सच जिससे सत्ता दल संभवतया परिचित है कि महिलाओं तक इंटरनेट, मोबाईल और सोशल मीडिया की पहुँच पुरुषों के मुकाबले बहुत कम होती है। यूट्यूब एनालिटिक्स को ही देख लें तो किसी वीडियो को महिलाओं द्वारा देखें जाने की दर पुरुषों की अपेक्षा बहुत कम है। ऐसे में टीवी मीडिया ही एक मुख्य साधन बचता है जिससे ‘सूचनाएं’ मिल सकती हैं। यह टीवी मीडिया आजकल ‘गोदी-मीडिया’ के नाम से विख्यात है। कारण बिल्कुल साफ है कि यह किसी भी ऐसे मामले पर बहस या रिपोर्ट नहीं पेश करते जो वर्तमान केंद्र सरकार या भाजपा शासित अन्य राज्यों की छवि को धक्का पहुंचाता हो। जिस दिन देश की 50% आबादी यह तथ्य जान लेगी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सहमति के बिना बलात्कारियों को छोड़े जाना असंभव था वह दिन वर्तमान सरकार के पतन की ठोस शुरुआत कर देगा।
मर्यादा पुरुषोत्तम राम के कार्यक्रम के पहले एम्स बंद हो सकता है, राम मनोहर लोहिया और तमाम अन्य अस्पताल बंद हो सकते हैं, शिक्षण संस्थान और तमाम अन्य सरकारी कार्यालय बंद हो सकते हैं लेकिन बलात्कारी राम रहीम को पैरोल पर ‘खुला’ रखना क्यों जरूरी था? बिल्किस और राम रहीम का मामला मात्र कोई कानूनी मामला भर नहीं है बल्कि यह वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके दल भाजपा के चरित्र के साथ एक खुला ‘साक्षात्कार’ है। धर्म के नाम पर अपने नेतृत्व पर प्रश्न उठाना बंद करने की भारतीय जनता की, आपकी, सबकी आदतों ने उन्हे इतना आततायी बना दिया है कि बलात्कारियों को छोड़ने, उनका समर्थन करने, उन्हे संस्कारी कहते रहने के साथ वो महिलाओं की सुरक्षा के साथ साथ तमाम अन्य झूठी गारंटियाँ भी बांटते घूम रहे हैं।
महिलाओं को 2024(लोकसभा चुनावों) में कुछ ‘तय’ कर लेना चाहिए जिससे सत्ता में चाहे जो भी हो वो बलात्कारियों को ‘संस्कारी’ कहने और उन्हे अपना ‘इलेक्शन ब्वॉय’ बनाने में थर-थर कांपें। और 50% वोट की हैसियत से महिलायें यह बहुत आसानी से कर सकती हैं! क्या वो करेंगी?