पिछले सप्ताह दक्षिण चीन सागर के इलाक़े में जिसे चीन अपना सागरीय क्षेत्र कहता है, अमेरिका के दो सबसे ब़डे विमान वाहक पोतों यूएसएस निमित्ज़ और यूएसएस रोनल्ड रेगन ने अपनी मांसपेशियां चमका कर चीन को चेताया था कि वह दक्षिण चीन सागर को अपनी बपौती नहीं समझे और वहाँ अपना दादागिरी न चलाए।
साझा युद्धाभ्यास का मतलब?
इसके बाद निमित्ज़ ने अपने साथी युद्धपोतों के साथ मलक्का जलडमरूमध्य (स्ट्रेट) पार करते हुए पिछले शनिवार को अंडमान सागर में प्रवेश किया और 20 जुलाई को भारतीय नौसेना के बड़े विध्वंसक पोतों, फ्रिगेटों, पनडुब्बियों और समुद्र टोही विमानों के साथ साझा अभ्यास किया। हालांकि इस अभ्यास को 'पैसेक्स' की संज्ञा दी गई है, जो पूर्ण स्तर का अभ्यास नहीं कहा जाता।
जिस तरह दोनों नौसेनाओं के बड़े युद्धपोतों ने पूरे सोमवार को साझा नौसैनिक आयोजन किया, उससे साफ़ है कि दोनों देश बीजिंग को यह संदेश देना चाहते हैं कि चीन को मलक्का के समुद्री इलाक़े में घेर कर उसकी ऊर्जा सप्लाई काटी जा सकती है।
मलक्का का महत्व
चीन अपनी 80 प्रतिशत ऊर्जा ज़रूरतों और अहम आयात-निर्यात ज़रूरतों को इसी समुद्री रास्ते पूरा करता है। इसलिये यदि मलक्का जलडमरूमध्य के समुद्री गलियारा की नाकेबंदी कर दी जाए तो चीन के सभी तेल टैंकरों और व्यापारिक पोतों को चीन तक पहुँचने से रोका जा सकता है।भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख के सीमांत इलाक़ों में चल रही मौजूदा सैन्य तनातनी के बीच भारत और अमेरिका के बीच बड़े स्तर पर इस तरह के साझा युद्धाभ्यास का होना काफी अहम इसलिये है कि चीन भारत के ख़िलाफ़ कोई सैन्य कार्रवाई करने से पहले अपने मलक्का जलडमरूमध्य के व्यापार सप्लाई मार्ग की सुरक्षा के बारे में सोचे।
विकल्प की तलाश
मलक्का जलडमरूमध्य का समुद्री व्यापार मार्ग चीन की जीवन रेखा बन चुका है और इस व्यापार मार्ग को कभी अवरुद्ध किया जा सकता है, यह सोचकर चीन की रूह काँपने लगती होगी। इस स्थिति से बचने के लिये ही चीन ने अरब सागर में बलोचिस्तान के ग्वादर बंदरगाह तक 60 अरब डॉलर का निवेश कर 2,200 किलोमीटर लम्बा राजमार्ग चीन पाक आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) का निर्माण किया है, लेकिन यह अभी चालू नहीं हुआ है।इसके बावजूद चीन के ज़रूरी आयात-निर्यात को भारतीय नौसेना चाहे तो बाधित कर सकती है। मलक्का जलडमरूमध्य पर चीन की निर्भरता ‘मलक्का डाइलेमा’ यानी मलक्का दुविधा के नाम से जानी जाती है, जिसकी सप्लाई लाइन को काट कर चीन की बांहें मरोड़ी जा सकती है।
चीन ने इस समुद्री मार्ग के कई विकल्प बनाने की कोशिश की है, लेकिन इन सबके बावजूद मलक्का आज भी चीन के लिये सबसे बेहतर सप्लाई मार्ग बना हुआ है।
मलक्का का मतलब
मलक्का जलडमरूमध्य इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप और मलेशियाई प्रायद्वीप से होकर गुजरने वाला तंग समुद्री गलियारा है। इसके निकट ही अमेरिका के सामरिक साझेदार सिंगापुर मलक्का जलडमरूमध्य के पूर्वी मुहाने पर स्थित है, इसलिये भारत और चीन के बीच किसी टकराव की स्थिति में मलक्का जलडमरूमध्य का संकरा समुद्री गलियारा चीन को होने वाले व्यापारिक आवागमन में रुकावट पैदा करने वाला एक अहम इलाक़ा बन सकता है।मलक्का जलडमरूमध्य पर निर्भरता कम करने के लिये ही चीन ने मध्य एशियाई देश कज़ाख़स्तान से होकर पाइपलाइन बिछाई है। इसके अलावा चीन ने भारत के पड़ोसी म्यांमार से भी अपने युननान प्रांत तक भी पाइपलाइन बिछाई है।
इसके अलावा ग्वादार–शिनजियांग आर्थिक गलियारा भी एक वैकल्पिक सप्लाई मार्ग बनाने की कोशिश की गई है, लेकिन इन सबके बावजूद मलक्का जलडमरुमध्य का इलाक़ा सबसे सस्ता और प्रभावी समुद्री व्यापारिक मार्ग बना रहेगा।
चीन को चुनौती
दक्षिण चीन सागर को अपना बताए जाने को अमेरिका सहित विश्व समुदाय ने चुनौती दी है। यह पहली बार है कि अमेरिका के दो विमानवाहक पोतों ने एक साथ अपने कई साथी युद्धपोतों के साथ मिलकर साझा युद्धाभ्यास कर चीन के इलाक़े में अपनी ताक़त का इज़हार किया है।ये विमानवाहक पोत परमाणु बिजली से संचालित हैं और इन पर 80 से 90 लड़ाकू विमान एक साथ तैनात रहते हैं। इसके अलावा इन पोतों पर कई तरह की लम्बी दूरी तक मार करने वाली क्रूज मिसाइलों का भी बड़ा भंडार रहता है।
इन पोतों को पहले दक्षिण चीन सागर औऱ फिर हिंद महासागर भेजने की सामरिक अहमियत है औऱ चीन को आगाह करता है कि उसकी समुद्री इलाके से घेराबंदी कर जीवन रेखा को काटा जा सकता है।
इन पोतों को पहले दक्षिण चीन सागर औऱ फिर इन्हें हिंद महासागर भेजने की विशेष सामरिक अहमियत है औऱ चीन को आगाह करता है कि समुद्री इलाके में घेराबंदी कर जीवन रेखा को काटा जा सकता है।
क्वैड
दक्षिण चीन सागर के इलाक़े में चीन की दादागिरी को रोकने के लिये ही चार ताक़तवर देशों ने एक चर्तुभुजीय गठजोड़ की स्थापना की थी, जिसे क्वाड्रिलैटरल स्ट्रैटेजिक डायलॉग यानी क्वैड कहा जाता है। इस गठजोड में अमेरिका के अलावा भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान शामिल हैं जिनके गठन पर चीन के सामरिक हलक़ों में काफी नाक भौं सिकोंड़ी गई थी।अब इस गठजोड़ को मज़बूती प्रदान करने वाले एक अहम फैसले में भारत ने त्रिपक्षीय नौसैनिक अभ्यास ‘मालाबार’ का आयोजन गत तीन सालों से किया है।
मालाबार
भारत, जापान और अमेरिकी नौसेनाओं का यह साझा अभ्यास मालाबार के नाम से जाना जाता है, जो पहले केवल भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय स्तर पर 1992 से ही आयोजित होता रहा है। लेकिन अब इसमें क्वैड के चौथे साझेदार ऑस्ट्रेलिया को भी शामिल करने का संकेत दे कर भारत ने चीन को आगाह किया है कि चीन की सैन्य दादागिरी के ख़िलाफ़ दुनिया की बड़ी ताक़तें एकजुट हो रही हैं।
जैसे जैसे भारत-चीन रिश्तों में तनाव बढ़ता गया और चीन का विस्तारवादी सामरिक रवैया साफ़ होता गया, भारत ने मालाबार का दायरा बढा जापान को साथ लेकर त्रिपक्षीय अभ्यास का रूप दिया। इसमें ऑस्ट्रेलिया को भी शामिल कर इसे सही मायनों में चर्तुपक्षीय सैन्य गठजोड़ बनाने का रास्ता साफ़ कर दिया है।
चीन को आपत्ति
साल 2007 में भारत ने बंगाल की खाड़ी के इलाक़े में ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, जापान औऱ सिंगापुर के साथ 5 देशों का साझा नौसैनिक अभ्यास किया था। तब चीन ने इस पर एतराज़ किया था। भारत ने चीन से सौहार्द्रपूर्ण रिश्तों और उसकी सामरिक संवेदनशीलता का सम्मान करते हुए मालाबार अभ्यास को केवल अमेरिका के साथ यानी दि्वपक्षीय तक ही सीमित कर दिया था।अब भारत द्वारा मालाबार का दायरा बढाकर चार देशों का साझा नौसैनिक अभ्यास करना चीन के लिये यह संदेश है कि उसकी दादागिरी के ख़िलाफ़ बड़े देश एकजुट हो रहे हैं। अंडमान सागर में 20 जुलाई को अमेरिकी विमानवाहक और अन्य युदधपोतों के साथ वृहद नौसैनिक अभ्यास कर इसी की एक बानगी पेश की गई है।