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भारत ने तो 1994 में ही की थी 'पीओके' को वापस लेने की बात

भारत ने तो 1994 में ही की थी 'पीओके' को वापस लेने की बात

भारतीय संसद ने 1994 में ही एक प्रस्ताव पारित कर पाक-अधिकृत कश्मीर वापस लेने का संकल्प लिया था। फिर क्या हुआ कि लोग इसे लगभग भूल ही गए?

भारतीय संविधान में जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद-370 के प्रावधानों को निरस्त किये जाने के सदमे से पाकिस्तान अभी उबरा भी नहीं था कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने पाकिस्तान को चिढ़ाने वाला एक औऱ बयान दे दिया। इस पर यह चर्चा छिड़ी है कि पाकिस्तान को लेकर भारत अपना रुख क्यों सख़्त होता जा रहा है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इसके पहले भारत की परमाणु नीति में भारी बदलाव लाने का संकेत दे कर भी पाकिस्तान के सामरिक और राजनीतिक हलकों में चिंता पैदा कर दी थी।  

रक्षा मंत्री ने एक चुनावी सभा को सम्बोधित करते हुए जम्मू-कश्मीर को लेकर पाकिस्तान को चिढाने वाला बयान दिया, जिसे लेकर भारत औऱ पाकिस्तान के राजनीतिक और सामरिक हलकों में फिर गर्म बहस छिड़ गई है।

पीओके पर हो द्विपक्षीय बात

राजनाथ सिंह ने कहा है कि जम्मू-कश्मीर मसले पर पाकिस्तान से यदि कोई बात होनी है तो वह पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर को लेकर ही होगी। 

राजनाथ सिंह के कहे का मतलब यह है कि पाकिस्तान यदि जम्मू-कश्मीर को लेकर भारत के साथ द्विपक्षीय बातचीत करना चाहता है, तो बातचीत इस नज़रिये से होगी कि पाकिस्तान अपने कब्जे वाले कश्मीर का इलाक़ा भारत को कैसे सौंपेगा।

राजनाथ सिंह ने बिना किसी उकसावे के पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर के इलाक़े पर ही बात करने का जो बयान दिया है, वह नरेन्द्र मोदी सरकार का नया चुनावी शिगूफा मान कर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में बीते शुक्रवार को मुँह की खाने के बाद भी पाकिस्तान अपनी जनता को यह बरगलाने की कोशिश कर रहा था कि उसे जम्मू-कश्मीर मसले का  अंतरराष्ट्रीयकरण करने में एक बार फिर कामयाबी मिली है।

संसद का प्रस्ताव

इसके मद्देनज़र पाकिस्तान को यह याद दिलाने के लिये ज़रूरी था कि पूरा जम्मू-कश्मीर हमारा है और भारत कभी भी पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर को भूला नहीं और भूलेगा नहीं। वास्तव में राजनाथ सिंह ने जम्मू-कश्मीर को लेकर जो ताजा बयान दिया है वह 22 फरवरी, 1994 को भारतीय संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित प्रस्ताव को ही याद दिलाने की कोशिश है

बीजेपी भले ही इसका क्रेडिट लेने की कोशिश करे, पर कांग्रेसी प्रधानमंत्री नरसिंह राव के जमाने में ही संसद ने सर्वदलीय प्रस्ताव कर राष्ट्र का यह संकल्प जाहिर किया था कि पूरा जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और उसे वापस लेने का हर मुमकिन प्रयास किया जाएगा।

प्रस्ताव में कहा गया कि भारतीय संसद यह माँग करती है कि पाकिस्तान जल्द से जल्द अपने कब्जे वाले इलाक़े को खाली कर दे। प्रस्ताव के मुताबिक़, पाकिस्तान ने वह इलाक़ा आक्रमण के ज़रिये अपने अधीन कर रखा है। प्रस्ताव में कहा गया कि भारत की  सम्प्रभुता और अखंडता को चोट पहुंचाने वाली किसी भी कोशिश का निरस्त करने का संकल्प हम लेते हैं।

भले ही तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के नेता जुल्फ़िकार अली भुट्टो के बीच जम्मू-कश्मीर मसले का हल द्वपिक्षीय बातचीत से करने वाला समझौता 1972 में शिमला में हुआ हो, 1994 के इस संकल्प को तभी तोड़ा जा सकता है जब भारतीय संसद दोबारा से अपने प्रस्ताव में संशोधन करे।

इसलिये राजनाथ सिंह ने इस संकल्प प्रस्ताव के अनुरूप ही हरियाणा में 18 अगस्त को अपना बयान दिया है कि पाकिस्तान के साथ यदि कोई बात होगी तो वह पाकिस्तान वाले कश्मीर को अपने में विलय करने के बारे में ही हो सकती है।

जीतेंद्र सिंह ने क्या कहा

इस बयान के एक दिन बाद ही नरेन्द्र मोदी के एक और मंत्री जितेन्द्र सिंह ने भी 1994 के संसदीय संकल्प की याद भारतवासियों के साथ-साथ पाकिस्तान को भी दिला दी कि जम्मू-कश्मीर के एक तिहाई हिस्से पर पाकिस्तान ने कब्जा कर रखा है, जिसे खाली करवा कर अपने में  विलय करना ही भारतीयों की चाहत  है, पाकिस्तान से बात इसी पर हो सकती है। अनुच्छेद -370 के प्रावधानों को निरस्त करने के बाद पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय समुदाय के समक्ष खूब रोया औऱ यह डर पैदा करने की कोशिश की इस मसले पर दोनों देशों के बीच परमाणु युद्ध भी छिड़ सकता है।

यह कहना ग़लत नहीं होगा कि अब तक की सरकारें अंतरराष्ट्रीय मंच पर जम्मू-कश्मीर मसले को भारत के नज़रिये से ठीक से पेश नहीं कर सकीं। भारत ने जम्मू-कश्मीर को केवल सीमापार से आतंकवाद के संदर्भ में पेश किया है तो पाकिस्तान ने मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोपों को उठाया।

अब वक्त आ गया है कि जम्मू कश्मीर मसले पर भारत भी अपना तेवर आक्रामक बनाए और दुनिय़ा को जम्मू-कश्मीर  में पाकिस्तान की करतूतों की असलियत बताए।  इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर के भीतर भी भारत को आम लोगों के साथ मेलजोल का मौहाल ऐसा बनाना होगा कि वहाँ के लोग पाकिस्तान के साथ अपने  धार्मिक भावनात्मक जुड़ाव को ख़त्म करें। जहाँ तक पाकिस्तान के साथ बातचीत का सवाल है, पाकिस्तान के साथ जब भी गम्भीरता से भारत बातचीत के लिये आगे बढ़ा पाकिस्तान  ने ऐसी आतंकवादी  हरकतें कर दी  कि बातचीत पटरी से उतर गई।  पाकिस्तान के साथ आगे भी बातचीत का सिलसिला यदि बहाल को तो क्या गारंटी है कि वह फिर सदमे का शिकार न  हो। इसलिये अब तक के अनुभव यही बताते है कि भारत को पाकिस्तान के साथ बातचीत का अपना एजेंडा साफ़ कर ही आगे बढना चाहिये।

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