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ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम का वह पहला स्वर्ण

ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम का वह पहला स्वर्ण

भारतीय खेल इतिहास की स्वर्णिम तारीख़ है 26 मई, 1928 का दिन। इस दिन भारतीय हॉकी टीम ने अपने पहले ओलंपिक पदार्पण में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रचा था।

भारतीय खेल इतिहास की स्वर्णिम तारीख़ है 26 मई, 1928 का दिन। इस दिन भारतीय हॉकी टीम ने अपने पहले ओलंपिक पदार्पण में ही स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रचा था। यही वह तारीख़ है जब एम्स्टर्डम ओलंपिक हॉकी फाइनल मैच में  ध्यानचंद की स्टिक से निकले गोलों से भारत ने हॉकी में स्वर्ण पदक जीत कर गुलामी के उन दिनों में भारतीयों को गर्व से भर दिया था। 

इस जीत ने देश में खेलों का नया इतिहास रचा और जिसे याद करते हुए हम आज भी गर्व से भर जाते हैं। लेकिन जीत आसान नहीं रही थी। एम्स्टर्डम ओलंपिक में फाइनल से पहले भारतीय टीम कई तरह की परेशानी से घिर गई थी। 

मैच से पहले भारतीय हॉकी टीम के कप्तान की गैरमौजूदगी, फिर केहर सिंह गिल के घुटने में चोट, फिरोज खान की उल्टे हाथ की कॉलर बोन का टूटना, शौकत अली का तेज फ्लू से पीड़ित होना यानी पंद्रह  खिलाड़ियों की टीम घटकर मात्र 11 खिलाड़ियों की बच गई थी। फिर मेजर ध्यानचंद को भी तेज बुखार ने जकड़ लिया। भारतीय खेमे में इससे मायूसी छा गई थी। टीम प्रबंधन के हाथ-पांव भी फूल गए थे। फाइनल का दबाव और तनाव। 

तब भारतीय हॉकी टीम के मैनेजर रोसेर मेजर ध्यानचंद के पास गए और उनसे कहा- “ध्यानचंद तुम एक सिपाही हो और आज देश को तुम्हारी जरूरत है। करो या मरो।” ध्यानचंद ने सैल्यूट  करते हुए तब कहा था यस सर और मैदान में अपने साथियों के साथ उतरने के लिये तैयार हो गए थे। 

भारतीय समय के मुताबिक़, मैच दोपहर पौने चार बजे शुरू हुआ। हॉकी के मुकाबलों में पहले बहुत ज्यादा दर्शक नहीं आ रहे थे इसलिए मैच छोटे स्टेडियम में खेला जाता रहा था। लेकिन फाइनल में लोगों का जुनून देख कर ओलंपिक संचालन समिति ने इस मैच को मुख्य स्टेडियम में कराने का फैसला लिया। उस मैच को देखने के लिए स्टेडियम में 23394 दर्शक मौजूद थे। यानी स्टेडियम पूरी तरह से भरा था। 

लोग ध्यानचंद की कलाकारी को देखने तो आए ही थे, हॉकी के रोमांच का मजा लेने भी आए थे। घरेलू टीम फाइनल में थी तो मैच में हॉलैंड के दर्शकों की बड़ी तादाद थी और वे अपनी टीम को ओलंपिक विजेता मान कर ही स्टेडियम आए थे।

उनकी सोच थी कि भारतीय हॉकी टीम उनकी टीम के आगे ज्यादा देर टिक नही पाएगी और इसी उम्मीद में वे बड़ी तादाद में स्टेडियम पर मौजूद थे।  स्टेडियम के बाहर भी लोगों का हजूम था।

 - Satya Hindi

रोमांचक मैच 

कमजोर समझी जाने वाली भारतीय टीम जिसके कई खिलाड़ी चोटिल या बीमार थे और दूसरी तरफ मजबूत समझी जाने वाली हालैंड की टीम। मैच शुरू हुआ तो दोनों ही टीमों ने आक्रमण की शुरुआत की। लेकिन हालैंड की टीम भारत की कमजोरी को भांप चुकी थी। हॉलैंड की टीम ने भारतीय हॉकी टीम की कमजोरियों का फायदा उठा कर मैच पर अपनी पकड़ बनाने की कोशिश की और वह इसमें बहुत हद तक कामयाब भी हुई। 

शुरू में भारतीय टीम थोड़ा दबाव में दिखी। लेकिन फिर अपनी रंगत में लौटी। उसे लगा कि दबाव बनाने का समय है। हालैंड को मौका दिया तो फिर मैच में वापसी आसान नहीं होगी। भारतीय टीम लय में आई और एक बार लय पकड़ी तो हालैंड के खिलाड़ी परेशान दिखे। भारतीय टीम को दर्शकों का भी साथ मिला।

भारत के स्टार खिलाड़ी सेंटर फारवर्ड ध्यानचंद ने लय पाई तो फिर उन्हें रोकना आसान नहीं था। उन्होंने मध्य मैदान पर गेंद थामी और फिर अपनी जादूगरी और स्टिक का कमाल दिखाते हुए हालैंड की रक्षापंक्ति को भेदा और पच्चीस गज की रेखा को पार कर गेंद कप्तान परनिगेर को सरकाई। तब परनिगेर ने गेंद थामी और टॉप ऑफ डी पर पहुंचे ध्यानचंद को गेंद थमा दी। बाकी का काम ध्यानचंद ने किया। 

हॉलैंड के खिलाड़ियों को छका कर ध्यानचंद ने  बिजली की गति से डी में प्रवेश किया और बेहतरीन पुश से तख्ता खड़का दिया यानी गोलची को गच्चा देकर भारत के लिए गोल बनाया। हाफ टाइम तक भारतीय टीम इस गोल की बदौलत हालैंड से आगे थी। 

ध्यानचंद की कलाकारी 

हाफ टाइम के बाद ध्यानचंद ने फिर कलाकारी की। बुली ऑफ के बाद ध्यानचंद ने गेंद बड़ी  खूबसूरती से संभाली और सीमन के साथ मिल कर बढ़ाव बनाया। सीमन ने पच्चीस गज की रेखा के पास ध्यानचंद को गेंद थमाई और ध्यानचंद बेहतरीन तरीके से गेंद थाम कर डी में दाखिल हुए और अपनी फुर्ती व चुस्ती से हालैंड के डिफेंस को छका कर गोलची के दाहिने से गेंद को स्कूप किया और गेंद पहले जाल में अटकी और फिर गोल का तख्ता खड़का गई। 

ध्यानचंद ने भारत को 2-0 से आगे कर दिया था। हालैंड ने वापसी की कोशिश जरूर की लेकिन भारतीय टीम ने उसे कोई मौका नहीं दिया। 

ध्यानचंद ने अपनी जादूगरी से स्टेडियम पर मौजूद दर्शकों को एक तरह से सम्मोहित-सा कर डाला। मैच का तीसरा गोल मार्टिन ने बनाया। लेकिन इस गोल के सूत्रधार ध्यानचंद ही रहे। ध्यानचंद से गेंद पाकर मार्टिन ने डी में प्रवेश किया और गोलची को गच्चा देने में कोई गलती नहीं की। 

भारत ने हालैंड को उसी के मैदान पर हरा दिया था और हॉकी का पहला ओलंपिक स्वर्ण जीत कर इतिहास रच डाला था। भारत ने इस प्रतियोगिता में 29 गोल किए और उसके खिलाफ एक भी गोल नहीं हुआ था। इन 29 गोलों में से 14 गोल ध्यानचंद की स्टिक से निकले थे।

क्रिकेट विश्व कप की जीत से आत्मुग्ध हम भारतीय हॉकी की उस जीत को याद करने में क्यों कोताही बरतते हैं और हॉकी के उस महान खिलाड़ी को उस तरह का सम्मान नहीं देते जो क्रिकेट के एक अदने से खिलाड़ी को देने में किसी तरह की कंजूसी नहीं करते। 

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