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2600 कॉर्पोरेट विलफुल डिफॉल्टर, इनके प्रमोटर मेहुल की तरह देश छोड़ भागे तो?

2600 कॉर्पोरेट विलफुल डिफॉल्टर, इनके प्रमोटर मेहुल की तरह देश छोड़ भागे तो?

आरबीआई के अनुसार 2600 से ज़्यादा कंपनियाँ विलफुल डिफ़ॉल्टर घोषित की गई हैं। इनको दिए गए हज़ारों करोड़ रुपये के कर्ज से बैंकों और कॉर्पोरेट सेक्टर पर कितना बड़ा जोखिम है?

मेहुल चौकसी याद हैं? या विजय माल्या? ये वे हैं जिन्होंने बैंकों से हज़ारों करोड़ रुपये कर्ज लिए। बाद में डिफाल्टर घोषित हुए और एक दिन पता चला कि वे देश छोड़कर ही भाग गए। यानी बैंकों के हज़ारों करोड़ रुपये गए!

क्या आपको पता है कि कितने ऐसे कॉर्पोरेट हैं जिनको आरबीआई ने विलफुल डिफॉल्टर घोषित कर रखा है? 10, 20, 50 नहीं, ऐसी संख्या हज़ारों में है। 2600 से भी ज़्यादा। एक-एक कॉर्पोरेट हज़ारों करोड़ रुपये बैंकों से कर्ज के रूप में ले गए और न तो पैसे का भुगतान समय पर किया और न ही जिस काम के लिए कर्ज के रूप में पैसे लिए उनको उस काम में इस्तेमाल किया। यानी उन रुपयों को लेकर कॉर्पोरेटों ने अपनी मनमर्जी चलाई। मार्च तक ही ऐसे डिफॉल्टरों पर 1 लाख 96 हज़ार करोड़ रुपये से ज़्यादा बकाया था।

ऐसे डिफॉल्टरों की एक लंबी सूची आई है। द इंडियन एक्सप्रेस ने आरटीआई के माध्यम से आरबीआई द्वारा दी गई जानकारी को लेकर एक रिपोर्ट छापी है। इस रिपोर्ट में विलफुल डिफॉल्टरों के बारे में काफ़ी विस्तृत जानकारी है। आरबीआई द्वारा दी गई जानकारी को जानने से पहले यह जानिए कि आख़िर विलफुल डिफॉल्टर का अर्थ क्या है। विलफुल डिफॉल्टर का मतलब ऐसे कर्जदार या गारंटर से होता है, जो जानबूझकर कर्ज नहीं चुकाता और कर्ज के उस रुपये का उपयोग उन उद्देश्यों के लिए नहीं करे जिनके लिए फंड लिया गया हो। अन्य उद्देश्यों के लिए इन रुपयों को डायवर्ट कर दिया है। यानी वह कॉर्पोरेट डिफॉल्ट कर जाता है। हालाँकि, इस स्थिति में विलफुल डिफॉल्टर उन्हीं को माना जाता है, जिनके ऊपर 25 लाख रुपये या इससे अधिक कर्ज होता है।

आरबीआई के अनुसार 2664 कॉर्पोरेट कंपनियों को विलफुल डिफॉल्टर के रूप में माना गया है। ये ऐसे कॉर्पोरेट हैं जिनके पास कर्ज चुकाने के साधन होने के बावजूद वे बैंक ऋण चुकाने में विफल रहे हैं। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार मार्च 2024 तक इन डिफॉल्टरों पर बैंकिंग सिस्टम का 1,96,441 करोड़ रुपये बकाया था।

अंग्रेजी अख़बार द्वारा दायर आरटीआई के सवालों का उत्तर देते हुए आरबीआई ने शीर्ष 100 कॉर्पोरेट डिफॉल्टरों के नाम बताए हैं। इनमें व्यक्ति और विदेशी उधारकर्ता शामिल नहीं हैं। इसमें गीतांजलि जेम्स लिमिटेड जून 2024 तक 8,516 करोड़ रुपये के विलफुल डिफॉल्ट के साथ सूची में सबसे ऊपर है। 

आरबीआई के आँकड़ों के अनुसार विलफुल डिफॉल्टरों की संख्या मार्च 2020 में 2,154 थी। अब चार साल में यानी मार्च 2024 तक बढ़कर यह संख्या 2,664 हो गई है। यानी ऐसे डिफॉल्टरों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।

सिर्फ़ डिफॉल्टरों की संख्या ही नहीं बढ़ती जा रही है, पिछले चार वर्षों में उन पर बकाया राशि 1,52,860 करोड़ रुपये से बढ़कर 1,96,441 करोड़ रुपये हो गई।

विलफुल डिफॉल्टरों की सूची में शीर्ष पर रही गीतांजलि जेम्स के प्रमोटर मेहुल चोकसी और उनके भतीजे नीरव मोदी भारत छोड़कर भाग गए हैं। कंपनी द्वारा किए गए ऋण धोखाधड़ी की रिपोर्ट और एफआईआर दर्ज होने के बाद वे भारत से भागे। गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय ने हाल ही में गीतांजलि जेम्स धोखाधड़ी मामले में 60 व्यक्तियों और संस्थाओं के खिलाफ आरोप वापस ले लिए हैं। ऑडिट के दौरान यह आरोप लगाया गया कि कंपनी का शीर्ष प्रबंधन फंड के डायवर्जन में शामिल था। बैंक के धन का उपयोग व्यक्तिगत लाभ के लिए संभवतः टैक्स हैवन में किया गया। 

रिपोर्ट के अनुसार प्रमोटर ऋषि अग्रवाल और जहाज निर्माण क्षेत्र की एक प्रमुख कंपनी एबीजी शिपयार्ड पर 4,684 करोड़ रुपये बकाया थे। एसबीआई द्वारा अधिकृत ईएंडवाई द्वारा किए गए ऑडिट के दौरान यह कथित तौर पर पाया गया कि कंपनी का शीर्ष प्रबंधन व्यक्तिगत लाभ के लिए धन के डायवर्जन में शामिल था। अग्रवाल को सितंबर 2022 में केंद्रीय जांच ब्यूरो ने गिरफ्तार किया था। आरबीआई के अनुसार, डिफॉल्टरों की सूची में तीसरे स्थान पर, कॉनकास्ट स्टील एंड पावर पर बैंकों का 4,305 करोड़ रुपये बकाया है। ईडी ने इस सप्ताह की शुरुआत में बैंक-धोखाधड़ी मामले में उद्योगपति और कॉनकास्ट स्टील एंड पावर के मालिक संजय सुरेका को गिरफ्तार किया। उनसे जुड़ी संपत्तियों पर छापेमारी के दौरान 4.5 करोड़ रुपये के आभूषण और कई विदेशी निर्मित लग्जरी कारें जब्त की गईं। 

प्रमोटर एचएस भराना की एरा इंफ्रा इंजीनियरिंग पर 3,637 करोड़ रुपये का विलफुल डिफॉल्ट है और यह आरबीआई की सूची में चौथे स्थान पर है। एनसीएलटी ने इस साल जून में एसए इंफ्रास्ट्रक्चर कंसल्टेंट्स प्राइवेट लिमिटेड द्वारा कंपनी के अधिग्रहण को मंजूरी दी थी। आरईआई एग्रो पर 3,350 करोड़ रुपये का विलफुल डिफॉल्ट है। ईडी ने 2018 में बैंकों को कथित रूप से धोखा देने के लिए आरईआई एग्रो लिमिटेड के प्रबंध निदेशक संदीप झुनझुनवाला को उनके खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग जांच के सिलसिले में गिरफ्तार किया था। यह कंपनी 2013 में दुनिया की सबसे बड़ी बासमती चावल प्रसंस्करण और विपणन फर्म थी।

भगोड़े प्रमोटर जतिन मेहता की विनसम डायमंड्स ने 2,927 करोड़ रुपये का विलफुल डिफॉल्ट किया है। धोखाधड़ी का पता चलने के तुरंत बाद मेहता देश छोड़कर भाग गये। विनसम डायमंड समूह की ही फॉरएवर प्रेशियस ज्वैलरी ने भी 1,692 करोड़ रुपये का और डिफॉल्ट किया। लंदन की एक अदालत ने 2022 में दुनिया भर में फ्रीजिंग ऑर्डर जारी किया था। मेहता ने कथित तौर पर 1 बिलियन डॉलर से अधिक की धोखाधड़ी की, जिसमें दो कंपनियों को दिए गए बुलियन की आय को दुनिया भर की शेल कंपनियों का उपयोग करके डायवर्ट किया गया। 

ऐसी ही 2600 से ज़्यादा कंपनियाँ विलफुल डिफ़ॉल्टर घोषित की गई हैं। यानी इनको दिए गए हज़ारों करोड़ रुपये के कर्ज से बैंकों और कॉर्पोरेट सेक्टर पर बड़ा जोखिम है। इससे भारत के कॉर्पोरेट क्षेत्र की वित्तीय सेहत और बैंकिंग सिस्टम के लिए संभावित जोखिमों को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं। 

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