इनकम टैक्स स्लैब में कटौती के एक हफ्ते बाद भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने रेपो दर में कटौती की घोषणा की है। रेपो रेट में 25 बेसिस अंकों को घटाकर 6.25 फीसदी कर दिया गया। यानी बैंकों को अब आरबीआई सस्ती दर पर लोन या उधार देगा। जिसे बैंक आगे उपभोक्ता देते हैं। रेपो रेट उसे कहते हैं जिस दर पर आरबीआई अन्य बैंकों को ऋण देता है। इसे सरकार और आरबीआई की मौद्रिक नीति भी कहा जाता है।
रेपो रेट में कटौती पांच साल बाद की गई है। 2020 के बाद पहली रेट कटौती है। फिलहाल रेपो रेट 6.5 फीसदी है। इस मौद्रिक नीति (एमपीसी) को 6 सदस्यों ने अंतिम रूप दिया, जिसमें तीन आरबीआई सदस्य और तीन बाहरी सदस्य शामिल हैं।
रेपो रेट में कटौती का मुख्य कारण अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करना है। पिछले कुछ वर्षों में, भारतीय अर्थव्यवस्था रोविड-19 महामारी और ग्लोबल आर्थिक मंदी के कारण मुश्किल दौर से गुजरी है। हालांकि, हाल के महीनों में आर्थिक स्थिति में सुधार के संकेत मिले हैं, लेकिन विकास दर अभी भी उम्मीद से कम है। आरबीआई ने रेपो रेट में कटौती करके अर्थव्यवस्था में नकदी प्रवाह (लिक्विडिटी-तरलता) को बढ़ाने और निवेश को प्रोत्साहित करने की कोशिश की है।
यह फैसला भी मध्यम वर्ग और अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने से जुड़ा है। जब आरबीआई रेपो रेट कम करता है, तो वाणिज्यिक बैंक सस्ती दरों पर ऋण उठाते हैं। इससे बैंक अपने ग्राहकों को कम ब्याज दरों पर लोन देते हैं। इससे कारोबार और उद्योगों को निवेश के लिए अधिक पूंजी मिलती है, जिससे आर्थिक गतिविधियां बढ़ जाती हैं। इसके अलावा, यह कदम उपभोक्ता खर्च को भी बढ़ावा दे सकता है, क्योंकि लोगों को कम ब्याज दरों पर लोन मिलने से उनकी खरीदने की क्षमता बढ़ जाती है। उपभोक्ता सामान आदि खरीदने पर पैसा खर्च करने लगते हैं।
महंगाई पर कितना असर
रेपो रेट में कटौती का महंगाई पर भी असर पड़ता है। आमतौर पर, जब ब्याज दरें कम होती हैं, तो उपभोक्ता खर्च और निवेश में बढ़ोतरी होती है, जिससे बाजार में मांग बढ़ सकती है। अगर सप्लाई पक्ष इस मांग को पूरा करने में सक्षम नहीं है, तो महंगाई बढ़ सकती है। हालांकि, आरबीआई ने यह कदम इसलिए उठाया है क्योंकि वर्तमान में महंगाई नियंत्रण रहने का दावा है। अगर महंगाई बढ़ने के संकेत मिलते हैं, तो आरबीआई भविष्य में ब्याज दरों में वृद्धि कर सकता है।होम लोन, कार लोन, पर्सनल लोन हो सकता है सस्ता
रेपो रेट में कटौती का संबंध बैंकों के लोन से है। बैंकों को कम लागत पर उधार मिलता है। इससे बैंक अपने ग्राहकों को कम ब्याज दरों पर लोन दे सकते हैं। इसका मतलब है कि होम लोन, कार लोन, पर्सनल लोन और अन्य प्रकार के लोन पर ब्याज दरें कम हो सकती हैं।सवाल ये है कि बैंकों को आरबीआई से सस्ता लोन तो मिल जायेगा, लेकिन वो आगे उपभोक्ता को जब तक इसका लाभ नहीं देंगे तब तक इससे जुड़ी पूरी चेन को फायदा नहीं होगा। इस चेन में उत्पादन करने वाली फैक्ट्रियां, दुकानदार, सर्विस देने वाली कंपनियां और उपभोक्ता आते हैं। उपभोक्ता महंगाई को रिटेल पर मिलने वाली वस्तुओं के दाम से ही समझता है। यानी अगर उपभोक्ता वस्तु उसे सस्ती मिलेगी तो ही इसका फायदा माना जायेगा। कुल मिलाकर बाजार बहुत सारी बातों को नियंत्रित करता है। अगर आपको अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल सस्ता मिल रहा है और उपभोक्ता को उसका फायदा नहीं मिल रहा है तो सारा प्रयास बेकार हो जाता है। कई बार ऐसा भी हुआ है कि रेपो रेट घटने के बावजूद उपभोक्ता वस्तुएं सस्ती नहीं होती हैं।
(इस रिपोर्ट का संपादन यूसुफ किरमानी ने किया)