काश, वित्त मंत्री कुछ साहस दिखाकर मिडल क्लास को खुश कर पातीं
लोक सभा चुनाव के ठीक पहले पूर्ण बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से काफी कुछ उम्मीदें थीं। कहा तो यहां तक जा रहा था कि वह अपनी तिजोरी खोलेंगी जिसमें कई वर्षों के बाद अतिरिक्त धन आया है और वोट देने वाले सेगमेंट पर धन की वर्षा करेंगी। मसलन वह किसानों के लिए कई कदम उठाएंगी। मिडल क्लास जो इस सरकार का सबसे बड़ा समर्थक रहा है उस पर काफी कुछ खर्च करेंगी। वह कुछ टैक्सों में कटौती भी करेंगी। लेकिन ऐसा कुछ होता नहीं दिखा और बस बात वहीं तक रह गई। उन्होंने इनकम टैक्स की दरों में कमी भी की, नये स्लैब की घोषणा भी की लेकिन नई व्यवस्था के करदाताओं के लिए।
ध्यान रहे कि इस समय दो तरह की टैक्स व्यवस्थाएं हैं। एक तो वह है जो वर्षों से चली आ रही हैं और दूसरी है कि जिसे न्यू टैक्स रिजीम कहते हैं। यह व्यवस्था पिछले साल ही लागू की गई थी और वित्त मंत्री को उम्मीद थी कि करदाता उसकी ओर जाएंगे। हैरानी की बात यह रही कि चार करोड़ स भी ज्यादा रिटर्न दाखिल हुए लेकिन सिर्फ पांच लाख करदाताओं ने उस विकल्प को चुना और उसके जरिये रिटर्न फाइल किया। यह सरकार के लिए निराशाजनक बात थी। इसलिए नहीं कि लोग इस नई स्कीम में नहीं आये बल्कि वे उस जाल में फंसने को तैयार नहीं थे जिसे डायरेक्ट टैक्स कोड कहा जा रहा है। दरअसल सरकार की मंशा है कि करदाता इस तरह की व्यवस्था में आयें। डायरेक्ट टैक्स कोड के तहत सरकार का लक्ष्य देश में मौजूद सभी प्रत्यक्ष कर कानूनों को एक कानून बनाकर कर प्रणाली को आसान बनाना है। इसके तहत आयकर अधिनियम 1961 और अन्य डायरेक्ट टैक्स कानूनों को हटाकर एक नई कर व्यवस्था को लागू की जाएगी है।
अगस्त 2009 को कांग्रेस सरकार के द्वारा पहली बार डायरेक्ट टैक्स कोड संहिता का ड्राफ्ट तैयार किया गया था। जिसके बाद 2010 में ड्राफ्ट को संसोधित करके संसद में लाया गया था। फिर सरकार ने विभिन्न हितधारकों के साथ इस पर चर्चा करने के लिए एक स्थायी समिति का गठन किया था। लेकिन यह अभी तक लागू नहीं हो पाया है और बीजेपी सरकार धीरे-धीरे इसे लाना चाह रही है। इसके लिए ही यह नई टैक्स व्यवस्था लागू की गई थी जिसका दायरा बढ़ाने के लिए इस बार बड़ा चारा फेंका गया है। बहरहाल इस बार बात बनती दिख रही है क्योंकि 15 लाख रुपये से ज्यादा आय वालों के लिए यह व्यवस्था यानी न्यू टैक्स रिजीम उपयुक्त है। हालांकि कुछ विशेषज्ञ कह रहे हैं कि यह 7.5 लाख रुपए सालाना इनकम वालों के लिए भी उपयुक्त है। अपर मिडल क्लास के लिए यह राहत का विषय हो सकता है और वह खुश भी हो।
वित्तीय अनुशासनः इस बात के लिए वित्त मंत्री की तारीफ करनी ही पड़ेगी कि उन्होंने वित्तीय अनुशासन बनाये रखा और फिस्कल डेफिसिट यानी राजकोषीय घाटे को 6.4 फीसदी से घटाकरजीडीपी के 5.9 फीसदी पर पहुंचा दिया है। इतना ही नहीं उन्होंने दावा भी किया है कि इसे घटाकर वह 5 फीसदी से भी नीचे ले आयेंगी। यह एक बहुत बड़ा काम होगा क्योंकि कोई भीघाटा बढ़ना देश के आर्थिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। यह इसलिए संभव हो पाया कि वित्त मंत्री या यूं कहें कि पीएम मोदी ने इस बात का पूरा ध्यान रखा कि किसी तरह की रेवड़ियां न बांटी जायें। वह इस बात के धुर विरोधी हैं और अगर चाहते तो इस बजट में भी रेवड़ियां बांट देते।
यह बहुत ही आसान था क्योंकि सरकार को उम्मीद से ज्यादा टैक्स वसूली हुई है। शायद इसलिए ही सरकार ने छूट का दायरा नहीं बढ़ाया। थोडी सी छूट दी गई यानी इतनी ही जिससे सरकार पर बोझ न बढ़े और उसे उसने सिगरेट पर 16 फीसदी टैक्स लगाकर लगभग पूरा कर लिया। यह अच्छी बात है कि वह टैक्सों के और दरवाजे ढूंढ़ने नहीं गईं और सीधा सा एक रास्ता पकड़ लिया। इस बात के लिए उनकी और उनके चीफ इकनॉमिक ऐडवाइजर की तारीफ करनी पड़ेगी।
लेकिन जहां तक साहस की बात है तो वह कॉर्पोरेट टैक्स में बदलाव कर सकती थीं। सैकड़ों कंपनियों ने बहुत लाभ कमाया है और कइयों ने तो प्रॉफिट का रिकॉर्ड बनाया है। फॉर्चून इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक वित्त वर्ष2022 की आखिरी तिमाही में सूचीबद्ध कंपनियों ने जमकर मुनाफा काटा। इन कंपनियों का कुल लाभ रिकॉर्ड 2.66 लाख रुपये था जो पिछली तिनाही की तुलना में 12.6 फीसदी अधिक था। कोविड-19 महामारी और उसके बाद हुए लॉक डाउन से इन कंपनियों को फायदा ही हुआ। उनका औसत लाभ दुगना हो गया था। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियना इकोनॉमी (सीएमआईई) मे भी इस बात की पुष्टि की है। उसका कहना है कि इसके पहले की आठ तिमाही में यह इस राशि का लगभग आधा था। मुनाफे में यह बढ़ोतरी उच्च मुद्रास्फीति के बावजूद हुई।
ऐसे में अगर श्रीमती निर्मला सीतारमण और उनकी टीम के अर्थशास्त्रीयह साहस नहीं जुटा पाये कि कॉर्पोरेट टैक्स बढ़ाया जाये या फिर उन पर सुपर रिचटैक्स लगाया जाये तो हैरानी होती है। इस समय ऐसा करके सरकार न केवल दूसरे वर्गोंके करदाताओं को छूट दे देती बल्कि वाहवाही भी लूट लेती। यहां भी देखने वाली बात हैकि इन कंपनियों ने किसी भी तरह का रोजगार सृजित नहीं किया बल्कि कोविड महामारी केनाम पर बड़े पैमाने पर छंटनी की। उसने न तो बाद में पर्याप्त रोजगार दिया और न हीअभी। ऐसे में अगर वह कुछ इस तरह के प्रावधान लगाकर सुपर रिच टैक्स लगातीं तो कोईविरोध नहीं कर पाता। लेकिन उन्होंने यह मौका गंवा दिया। अगर वह झिझक रही थीं तो वनटाइम टैक्स भी लगा सकती थीं। इससे भी बात बन सकती थी।
इसी तरह वह सोने पर कस्टम्स ड्यूटी वगैरह अगर घटा देतीं तो इसकी तस्करी कम हो जाती। इस समय भारत में सोने के दाम आसमान छू रहे हैं जबकि विदेशों खासकर दुबई में यह सस्ता है। इस कारण से सोने की तस्करी बड़े पैमाने पर हो रही है और यह बढ़ती ही जा रही है। सरकारी एजेंसियां इस पर अंकुश नहीं लगा पा रही हैं। इसलिए टैक्स में कटौती एक अच्छा विकल्प हो सकता था। तस्करी देश के लिए नुकसानदेह है और यह अर्थव्यवस्था पर चोट पहुंचाती है।
बहरहाल वित्त मंत्री ने एक कोशिश तो की लेकिन इसमें मिडल क्लास के लिए कुछ भी खास नहीं कर पाईँ जिसकी खपत करने या खरीदारी की ताकत से ही इस इकोनॉमी को तेजी मिली। इस बात को इकोनॉमिक सर्वे में भी स्वीकार किया गया था। लेकिन टैक्स कटौती की यह आस टूट गई। अब उसे अगले कई वर्षों तक इनकम टैक्स में कोई राहत नहीं मिल पायेगी।