केंद्र सरकार आर्थिक बदहाली से साफ़ इनकार करती आई है और इस पर सवाल उठाने वालों को ‘पेशेवर निराशावादी’ क़रार देती है, पर अब उसके अपने लोगों ने इस पर उंगली उठानी शुरू कर दी है। सरकार के पूर्व आर्थिक सलाहकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नज़दीक रहे अरविंद सुब्रमणियन ने कहा है कि भारत की अर्थव्यवस्था आईसीयू पहुँच चुकी है। उनका यह कहना महत्वपूर्ण है।
हार्वर्ड विश्वविद्यालय के अंतरराष्ट्रीय विकास केंद्र के लिए एक शोध पत्र तैयार करते हुए उन्होंने यह लिखा है। सुब्रमणियन ने कहा, ‘भारत की यह आर्थिक सुस्ती साधारण सुस्ती नहीं है, यह बहुत बड़ी सुस्ती है और भारतीय अर्थव्यवस्था आईसीयू में पहुँच चुकी है।’
क्या है वजह
उन्होंने इसका कारण बताते हुए कहा है कि यह टीबीएस यानी ट्विन बैलंस सिस्टम के कारण हुआ है। बोलचाल की भाषा में कहें तो भारत में बैंकों ने जो कर्ज़ दिए, उसका बहुत बड़ा हिस्सा एनपीए बन चुका है, यानी उस पर बैंकों को ब्याज नहीं मिल रहा है, पैसा फँस गया है।इसे हम इस तरह समझ सकते हैं। साल 2016 में नोटबंदी की वजह से बहुत सारा नकद पैसा बैंकों में जमा हो गया, बैंकों ने पैसे की अधिकता के कारण ग़ैर वित्तीय कंपनियों को बहुत सारा कर्ज़ दे दिया। इन ग़ैर वित्तीय कंपनियों ने रियल इस्टेट को कर्ज़ के रूप में बहुत बड़ी रकम दे दी।
इंडियन एक्सप्रेस ने ख़बर दी है कि साल 2017-18 के दौरान इन ग़ैर वित्तीय बैंकिंग कंपनियों ने 5 लाख करोड़ रुपए के कर्ज़ रियल इस्टेट को दिए। लेकिन इस कर्ज़ का बहुत बड़ा हिस्सा एनपीए बन गया, यानी जिन्होंने कर्ज लिए थे, उन्होंने कर्ज़ वापस तो नहीं ही किए, ब्याज तक देना बंद कर दिया।
सुब्रमणियन का कहना है कि बैंकों की ब्याज दरें अभी भी भारत में बहुत ऊंची हैं, कॉरपोरेट जगत को कर्ज़ नहीं मिल रहा है। नतीजतन कॉरपोरेट जगत और इस तरह पूरी अर्थव्यवस्था दबाव में है। भारत के इस पूर्व आर्थिक सलाहकार ने कहा :
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उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन लगभग थम सा गया है, निवेशक वस्तुओं का उत्पादन कम हो रहा है, आयात, निर्यात और सरकारी खर्च ऋणात्मक स्थिति में हैं यानी पहले से भी कम हो रहे हैं। दूसरे इंडीकेटर बता रहे हैं कि अर्थव्यवस्था फटेहाल है।
अरविंद सुब्रमणियन, पूर्व आर्थिक सलाहकार, मोदी सरकार
अरविंद सुब्रमणियन ने यह बात ऐसे समय कही है जब सकेल घरेलू उत्पाद, कोर सेक्टर, सरकारी खर्च, आयात, निर्यात, निवेश, उपभोक्ता वस्तु उत्पाद सबकुछ गिर रहा है। बढ़ी है सिर्फ़ बेरोज़गारी।
जीडीपी
- भारतीय रिज़र्व बैंक ने वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए जीडीपी विकास दर का अनुमान 6.1 प्रतिशत से कम कर 5 प्रतिशत कर दिया।
- सेंट्रल स्टैटिस्टिकल ऑफ़िस (सीएसओ) ने बीते दिनों इस साल की दूसरी छमाही के लिए जीडीपी वृद्धि दर 4.5 प्रतिशत कर दी थी।
- सरकारी कंपनी स्टेट बैंक ने अपनी ताज़ा रपट में कहा है कि चालू वित्तीय वर्ष की दूसरी छमाही में जीडीपी वृद्धि दर घट कर 4.2 प्रतिशत पर आ सकती है।
- आर्थिक ख़बरों की अंग्रेजी वेबसाइट ‘लाइवमिंट’ की बात मानें तो यह वृद्धि दर सरकारी खर्च बढ़ाने की वजह से है, निजी क्षेत्र में वृद्धि दर 3.05 प्रशित ही रही है।
कोर सेक्टर
- देश के 8 कोर सेक्टर यानी उद्योग जगत के सबसे अहम क्षेत्रों में सितंबर महीने का उत्पादन 5.2 प्रतिशत कम हुआ है।
औद्योगिक उत्पादन
- सितंबर महीने में औद्योगिक उत्पादन 4.3 प्रतिशत कम हो गया।
मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर
- मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में उत्पादन सितंबर महीने में 3.9 प्रतिशत कम हुआ।
जीएसटी
- सितंबर के जीएसटी संग्रह के आंकड़ों में गिरावट देखने को मिली थी। जीएसटी संग्रह घटकर 91,916 करोड़ रुपये रहा है।
राजस्व उगाही
- सरकार ने चालू वित्तीय वर्ष में प्रत्यक्ष कर के रूप में 13.35 लाख करोड़ रुपये की उगाही का लक्ष्य रखा था। लेकिन, 15 सितंबर तक सिर्फ़ 4.40 लाख करोड़ रुपये की कर उगाही हो सकी।
गाँवों में खरीद
- सितंबर को ख़त्म हुई तिमाही के दौरान गाँवों में सामानों की खरीद 7 साल में सबसे कम हुई है।
ग्रामीण खपत 40 साल के न्यूनतम स्तर पर
- गाँवों में जुलाई 2017 से जून 2018 के बीच खपत में 8.8 प्रतिशत की कमी आई है। यह 1972-73 से अब तक की अधिकतम गिरावट है। यानी ग्रामीण अर्थव्यवस्था में माँग बीते 40 के न्यूनतम स्तर पर है।
आयात
- सितंबर में आयात में लगभग 14 प्रतिशत की कमी आई है। भारत का आयात सितंबर में 13.9 प्रतिशत गिर कर 36.9 अरब डॉलर पर पहुँच गया।
निर्यात
- इस दौरान निर्यात भी 6.6 प्रतिशत गिर कर 26 अरब डॉलर पर पहुँच गया।