एक रिपोर्ट के अनुसार गूगल ने हाल ही में चेतावनी दी थी कि अब 'सड़कों पर ख़ून बहने वाला है'। तो क्या अब गूगल में छंटनी शुरू होगी? गूगल के मामले में ये कयास लगाए ही जा रहे थे कि अब एप्पल से कर्मचारियों के निकाले जाने की ख़बर आ रही है।
तो सवाल है कि दुनिया की इतनी बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों से कर्मचारियों के निकालने या निकाले जाने का मतलब क्या है? क्या दुनिया की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है? क्या दुनिया भर में जिस आर्थिक मंदी के संकेत मिलने के इशारे किए जा रहे हैं उसके आने की आशंका है? दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका और चीन से जो संकेत मिल रहे हैं, वे ठीक नहीं जान पड़ते हैं।
बहरहाल, 'ब्लूमबर्ग' की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि एप्पल ने अब अपने कई कर्मचारियों को काम पर रखने और ख़र्च पर रोक लगाने के प्रयास में निकाल दिया है। रिपोर्ट के अनुसार, एप्पल ने भर्ती करने वाले अनुबंध-आधारित क़रीब 100 कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया है। ये सभी कंपनी के लिए नए कर्मचारियों को काम पर रखने के लिए ज़िम्मेदार थे।
जिन कर्मचारियों के अनुबंध समाप्त कर दिए गए हैं उन्हें बताया गया कि उन्हें दो सप्ताह के लिए भुगतान और चिकित्सा लाभ मिलेगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि जो भर्ती पूर्णकालिक कर्मचारी हैं, उन्हें बरकरार रखा गया है।
एप्पल ने बर्खास्त कर्मचारियों से कहा है कि कंपनी की मौजूदा वित्तीय ज़रूरतों के कारण कटौती की गई है। मुख्य कार्यकारी अधिकारी टिम कुक ने पिछले महीने कहा था कि एप्पल अपने खर्चों को तर्कसंगत करेगा।
ब्लूमबर्ग के हवाले से टिम कुक ने कहा, 'हम मंदी के दौरान निवेश करने में विश्वास करते हैं। और इसलिए हम लोगों को काम पर रखना और क्षेत्रों में निवेश करना जारी रखेंगे, लेकिन हालात की वास्तविकताओं की पहचान में हम ऐसा करने में अधिक तर्कसंगत फैसले ले रहे हैं।'
इससे पहले गूगल ने अपने कर्मचारियों को नोटिस पर रखा और परिणाम नहीं आने पर उन्हें छंटनी की चेतावनी दी। एक रिपोर्ट के अनुसार गूगल क्लाउड बिक्री विभाग में काम करने वाले कर्मचारियों ने कहा है कि उन्हें चेतावनी दी गई है कि अगर अगली तिमाही के परिणाम 'ऊपर नहीं दिखते हैं, तो सड़कों पर खून होगा।' गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई ने इस महीने की शुरुआत में कहा था कि वह कई कर्मचारियों के काम से संतुष्ट नहीं हैं।
दुनिया की इतनी बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों में कर्मचारियों की छँटनी के बड़े मायने निकलते हैं। इसका एक मतलब यह है कि इन कंपनियों के उत्पादन पर असर पड़ा है। इससे दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं का स्वास्थ्य अच्छे नहीं होने के संकेत भी मिलते हैं।
वैसे, दुनिया भर में आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने की रिपोर्टें आती रही हैं। चीन में आर्थिक मंदी की आशंका जताई जा रही है। चीन के रियल एस्टेट डेवलपर्स डीफॉल्ट कर रहे हैं। चीन के बैंकों की हालत दयनीय है। चीन का कुल कर्ज तेजी से बढ़ रहा है, जो उसके जीडीपी का कई गुना ज़्यादा है। ये वे संकेत हैं जिसे मंदी की आहट के तौर पर देखा जा रहा है। अमेरिका को लेकर भी ऐसी ही आशंकाएँ तब बढ़ीं जब मुद्रास्फीति को कम करने के लिए उसने ब्याज दरों में तीन चौथाई की बढ़ोतरी कर दी। इसी बीच हालाँकि अमेरिकी राष्ट्रपति से सवाल पूछे जाने पर उन्होंने इससे आर्थिक तंगी जैसी स्थिति से इनकार किया है। हालाँकि, अंतरराष्ट्रीय संस्थाएँ बार-बार चेता रही हैं कि कोरोना काल के बाद से दुनिया भर में आर्थिक हालात ठीक नहीं हैं।