दूसरी तिमाही में आर्थिक विकास दर पहले से कम क्यों?
मौजूदा वित्तीय वर्ष की पिछली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में वृद्धि की दर 8.4 प्रतिशत दर्ज की गई, जो पिछली यानी अप्रैल-जून की तिमाही की वृद्धि दर से काफी कम है। लेकिन यह संतोष की बात ज़रूर है कि लगातार चार तिमाहियों से जीडीपी विकास दर सकारात्मक है, यानी शून्य से ऊपर है।
वित्तीय वर्ष 2021-22 में सितंबर-नवंबर के दौरान जीडीपी में 8.4 प्रतिशत की वृद्धि दर देखी गई। लेकिन पिछली तिमाही यानी जुलाई-अगस्त की जीडीपी वृद्धि दर 20.1 प्रतिशत थी। इस हिसाब से जीडीपी दर बढ़ने के बजाय गिरी है।
पिछले साल की दूसरी तिमाही में जीडीपी विकास दर शून्य से नीचे रही थी। इसकी वजह यह थी कि सभी सेक्टरों में विकास दर शून्य से नीचे थी।
लगातार चार तिमाहियों में जीडीपी दर शून्य से ऊपर रही है। पिछले वित्तीय वर्ष की तीसरी तिमाही में 0.5 प्रतिशत, अंतिम तिमाही में 1.6 प्रतिशत, इस वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में 20.1 प्रतिशत और अब दूसरी तिमाही में 8.4 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है।
इसे भारतीय अर्थव्यवस्था में मामूली और सुस्त ही सही, लेकिन सुधार के रूप में देखा जा सकता है।
सुस्त रफ़्तार!
इस वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में विकास दर अधिक तेज़ी से बढ़ी क्योंकि कृषि, खनन, उत्पादन, बिजली, दूरसंचार, परिवहन, जल आपूर्ति व निर्माण के क्षेत्रों में बेहतर काम हुआ। अब दूसरी तिमाही में पहली की तुलना में सुस्त रफ़्तार से विकास हुआ।
पिछले साल कोरोना लॉकडाउन की वजह से इस दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था का बुरा हाल था और आर्थिक विकास दर शून्य से नीचे थी। कोरोना संकट के कम होने के साथ ही आर्थिक लॉकडाउन हटा और आर्थिक गतिविधियाँ बढ़ीं। इससे स्थिति सुधरने लगी।
इस आधार पर कहा जा सकता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर अभी बहुत ही कम है, लेकिन वह निगेटव नहीं है, यानी, कम से कम यह तो है कि वह शून्य के ऊपर है।