चीन से रैपिड टेस्ट किट खरीद सरकार को दूनी कीमत पर बेची भारतीय कंपनियों ने
भारत सरकार ने चीन में बना रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट किट दुगुने से भी ज़्यादा क़ीमत पर खरीदा है। लेकिन यह बढ़ी हुई क़ीमत उसने चीनी कंपनी को नहीं, एक भारतीय कंपनी को ही चुकाई है। दिल्ली हाई कोर्ट ने इसके बाद एक आदेश में इस किट की अधिकतम कीमत तय कर दी है।
क्या है मामला
सरकार ने जिस कंपनी से ये टेस्ट किट बढ़ी हुई कीमत पर ली हैं, उसका नाम है रीयल मेटाबॉलिक्स। वह डिस्ट्रीब्यूटर है।भारत सरकार ने इंडियन कौंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च के ज़रिए 6.50 लाख टेस्ट किट का आदेश दिया, जिसमें रैपिड टेस्ट किट भी शामिल थे।बीजिंग में भारत के राजदूत विक्रम मिसरी ने ट्वीट कर यह जानकारी दी कि 6.50 लाख टेस्ट किट गुआंगज़ू हवाई अड्डे से भारत को भेज दिया गया है।
#IndiaFightsCoronavirus A total of 650,000 kits, including Rapid Antibody Tests and RNA Extraction Kits have been despatched early today from Guangzhou Airport to #India | #2019nCoV #StayHomeSaveLives @MEAIndia @HarshShringla @DrSJaishankar
— Vikram Misri (@VikramMisri) April 16, 2020
इसमें रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट किट और आरएनए एक्सट्रैक्शन किट भी शामिल है। आईसीएमआर ने यह ऑर्डर चीनी कंपनी वोन्डफ़ू को दिया था।
दूना मुनाफ़ा!
एनडीटीवी ने एक ख़बर में कहा है कि भारतीय कंपनी मैट्रिक्स ने 245 रुपए प्रति किट की दर पर ये किट्स चीनी कंपनी से आयात किए। लेकिन डिस्ट्रीब्यूटर रीयल मेटाबॉलिक्स और आर्क फ़ार्मास्यूटिकल्स ने यही किट 600 रुपए की दर पर केंद्र सरकार को दीं। यानी, उसने दूने से अभी अधिक कीमत वसूली।दूसरी ओर तमिलनाडु सरकार ने भी ये किट्स उसी चीनी कंपनी से लीं। मैट्रिक्स ने ये किट आयात कीं और शान बायोटेक इसका डिस्ट्रीब्यूटर था।
सारे विवाद की जड़ यहीं है। रीयल मेटाबॉलिक्स ने दिल्ली हाई कोर्ट में एक याचिका दायर कर दी। उसने इस याचिका में शिकायत की कि मैट्रिक्स ने तमिलनाडु के लिए दूसरे डिस्ट्रीब्यूटर को लगाया। यह उसके साथ हुए क़रार का उल्लंघन है क्योंकि पूरे देश में इस उत्पाद का एकमात्र डिस्ट्रीब्यूटर वही है।
अदालत में चली सुनवाई के दौरान पूरे मामले का खुलासा हुआ। उस सुनवाई के दौरान ही पता चला कि 245 रुपए का किट इन दोनों कंपनियों ने 600 रुपए में दिया है।
क्या कहा अदालत ने
अदालत ने अपने ऑर्डर में रैपिड टेस्ट किट की कीमत 400 रुपए तय कर दी और कहा कि इससे अधिक कीमत पर यह नहीं बेचा जाना चाहिए, इस कीमत में जीएसटी भी शामिल है।एनडीटीवी के मुताबिक़, अदालत ने इस आदेश में यह भी कहा है, ‘देश की अर्थव्यवस्था बुरी स्थिति में है, इस महामारी को रोकने के लिए यह ज़रूरी है कि इस तरह के किट उपलब्ध कराए जाएं। इस विवाद के बाद जनता की भलाई के लिए यह ऑर्डर दिया जाता है कि यह रैपिड टेस्ट किट 400 रुपए से ऊँची कीमत पर नहीं बेचा जाना चाहिए।’
आइसीएमआर की सफ़ाई
बढ़ी हुई कीमत पर आइसीएमआर ने सफ़ाई दी है। उसने कहा है कि किट की कीमत 528 रुपए से 795 रुपए तय की गई थी। यह कीमत किट की क्वालिटी, स्पेशीफिकेशन और सप्लायर की क्षमता पर निर्भर करती है।
कई राज्यों से शिकायत मिलने के बाद आइसीएमआर ने इस किट की ख़रीद वोन्डफ़ू से बंद कर दी। शिकायत में कहा गया था कि किट खराब है और इसके नतीजे पर भरोसा नहीं किया जा सकता है।
राजस्थान सरकार ने शिकायत करते हुए कहा था कि सिर्फ 5.4 प्रतिशत किट ही ठीक पाए गए थे, बाकी सब खराब थे। इसके बाद आइसीएमआर ने किट का इस्तेमाल रोक देने को कहा था। आइसीएमआर शुरू में इस किट के ख़िलाफ़ था और उसका मानना था कि इसका इस्तेमाल सिर्फ स्क्रीनिंग के लिए किया जा सकता है, पूरी जाँच के लिए नहीं। उसका यह भी कहना था कि हॉटस्पॉट पर जाँच के लिए यह ठीक नहीं है।
दूसरी ओर, चीन सरकार ने इससे इनकार किया है कि ये खराब क्वालिटी के किट थे।