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भारतीय और चीनी सेनाओं की तलवारें म्यानों से बाहर

भारतीय और चीनी सेनाओं की तलवारें म्यानों से बाहर

भारत और चीन के रक्षा मंत्रियों की बातचीत का कोई ख़ास नतीजा नहीं निकला, चीन ने पीछे हटने से इनकार कर दिया। ऐसे में तनाव एक बार फिर बढ़ रहा है। आगे क्या होगा?

भारत और चीन के बीच सैन्य तनातनी जारी रहने के चार महीने पूरे होने के साथ ही भारत और चीन के रक्षा मंत्रियों की सीधी बातचीत के बाद दोनों ओर से साफ संकेत दिया गया है कि उनकी सेनाओं ने अपनी म्यानों से तलवारें निकाल ली हैं और अब वे इसे भांजने के लिये पूरी तरह तैयार हैं। इस बातचीत की पहल हालांकि चीन की ओर से की गई और भारतीय रक्षा मंत्री ने इस बातचीत को लेकर अपनी अरुचि दिखाई कि उनका मास्को में काफी व्यस्त कार्यक्रम है। चीनी पक्ष द्वारा बातचीत की पहल करना यह संकेत देता है कि पूर्वी लद्दाख के सीमांत इलाके में भारतीय सेना ने सैन्य दबाव काफी बढ़ा दिया है।

पासा पलटा

भारत  ने पैंगोंग झील के दक्षिणी छोर पर स्थित 15 हज़ार फीट से अधिक उंचाई वाली चोटियों काला टाप, मगर टाप, गुरुंग हिल और हेलमेट टाप पर  29-30 अगस्त की रात कब्जा कर लिया, जिससे चीनी सेना इसलिये तिलमिला गई है। उसे लगता है कि चीन के कब्जे वाले इलाके पर भारतीय सेना इस तरह निगरानी रख सकती है कि किसी संघर्ष की स्थिति में उस पर एकतरफा हमला कर उसे सिर उठाने का मौका नहीं देगी। इस इलाके में भारतीय सेना ने अपनी तोपों और मशीनगनों को तैनात कर दिया है और दूर तक चीनी सैन्य  ठिकानों को ध्वस्त करने की स्थिति में आ गई है।

यही वजह है कि चीनी सेना ने ही चुशुल इलाके में भारतीय सेना के ब्रिगेड कमांडर के साथ बातचीत का संदेश भेजा। चीन के विदेश मंत्रालय ने भारत पर वास्तविक नियंत्रण रेखा के उल्लंघन का आरोप लगाया। अब तक यह आरोप भारत लगाता रहा था और चीन का जवाब होता था कि उसके सैनिक अपने इलाके में ही हैं। इस तरह भारत ने खेल का पासा पलट दिया है।

राजनीतिक बातचीत

मास्को में दोनों रक्षा मंत्रियों की दो घंटे 20 मिनट तक लम्बी गहन बातचीत के बाद दोनों देशों के जारी बयान अपने अपने घोषित राष्ट्रीय संकल्पों के अनुरुप ही हैं, लेकिन इस बातचीत के बाद दोनों ओर से संचार सम्पर्क खुला रखने का इरादा जाहिर कर बातचीत और शांतिपूर्ण हल की खिड़की खुली रखी गई है। भारत और चीन के बीच अब तक राजनीतिक स्तर पर आमने सामने की यह पहली सीधी बातचीत थी।

रक्षा मंत्रियों की बातचीत के नतीजे चिंताजनक तो हैं, लेकिन आगामी दस सितम्बर को मास्को में ही दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की मुलाकात का दरवाजा खुला रख कर यह संकेत दिया गया है कि बातचीत से मसला सुलझ सकता है।

यदि इससे भी बात नहीं बनी तो सीमा मसले पर बातचीत के लिये नियुक्त दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधियों (भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीन के स्टेट काउंसेलर वांग यी) की बातचीत हो सकती है। यदि ये बातचीतें नाकाम रहती हैं तो फिर समर क्षेत्र में आमने सामने निबटना ही एकमात्र रास्ता बचता है।

युद्ध की ओर खिसकती स्थितियाँ

इन उच्चस्तरीय राजनीतिक बातचीत के पहले भारतीय सेना ने यह संकेत दिया है कि युद्ध के लिये उकसाए जाने पर वह जवाबी हमले के लिये पूरी तरह तैयार है। थलसेना प्रमुख जनरल मनोज नरवाणे ने गत गुरुवार को ही लद्दाख के सीमांत इलाकों का दौरा कर युद्ध की तैयारी की गहन समीक्षा की है और अपने जवानों का मनोबल बढ़ाया है।

वायुसेना प्रमुख एयर चीफ़ मार्शल आर. के. एस. भदौरिया ने इसी दिन पूर्वी वायुसैनिक कमांड के वायुसैनिक अड्डों का दौरा किया, जहाँ भारतीय वायुसेना के अत्यधिक संहारक सुखोई-30 एमकेआई , जगुआर, मिग-29 आदि लड़ाकू विमान पूरी तरह तैयार हैं।

चीफ़ आफ़ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत ने भी कहा है कि भारतीय  सेना दोनों मोर्चों पर एक साथ युद्ध लड़ने के लिये तैयार है। माना जा रहा है कि जब चीन के साथ युद्ध छिड़ जाएगा तो पाकिस्तान इस स्थिति का फायदा उठाने से नहीं चूकेगा। भारत के लिये यह स्थिति काफी भयावह, चुनौतीपूर्ण और मुश्किलों भरी होगी लेकिन इस सम्भावित हालात से निबटने के लिये भारतीय सेना अपनी रणनीति तैयार कर चुकी है और इसके अनुरूप अपने सैन्य संसाधन को आत्मरक्षा और आक्रमण के लिये तैयार कर दिया है। 

चीनी की तैयारी

चीन की ओर से भी उसके नवीनतम स्वदेशी पांचवीं पीढ़ी के जे-20 लडाकू विमान को शिनजियांग और तिब्बत के वायुसैनिक अड्डों पर तैनात कर दिया गया है और भारतीय सेना को धमकाने के लिये अक्सर उनकी उड़ाने भारतीय सीमांत इलाकों में होने लगी है। चीनी टैंक, तोपें  और भारी युद्धक वाहन भी अपनी मांसपेशियाँ दिखा रहे हैं। 

दोनों देशों की सेनाओं द्वारा इस तरह की तैयारी करने के बाद दोनों देशों के शीर्ष राजनेताओं ने भी जिस तरह से कड़े बयान दिये हैं उससे लग रहा है कि आने वाले दिनों में सीमांत इलाकों में तनाव और भड़क सकता है। लेकिन दोनों देशों की यह भी कोशिश है कि किसी भी तरह युद्ध भड़कने से रोका जाए।

कदम पीछे करेगा चीन

देखना होगा कि चीन का शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व अपने विस्तारवादी कदम को पीछे हटाने को कब तैयार होता है। चीन ने ही भारतीय इलाके में घुसपैठ की पहल की है इसलिये उसे ही पीछे जाने के कदम उठाने होंगे। गत 5 जुलाई को भारत औऱ चीन के विशेष प्रतिनिधियों की बातचीत में जो सहमति बनी थी कि सेनाएं वास्तविक नियंत्रण रेखा तक पीछे चली जाएंगी, वह अब तक अमल में नहीं लाया जा सका है।

इसके दो ही मायने निकलते हैं। या तो चीन भारत के साथ बातचीत करते रहने का नाटक कर अपनी सैन्य तैयारी और भारतीय इलाके में अपना कब्जा मजबूत करने की रणनीति पर चल रहा है या फिर चीनी राजनीतिक नेतृत्व और चीनी सैन्य नेतृत्व के बीच समुचित तालमेल नहीं है। लेकिन यह भी कहा जाता है कि चीनी सेना चीनी सैन्य आयोग के तहत ही काम करती है और चीन के राष्ट्रपति ही इस सैन्य आयोग के चेयरमैन हैं। इसलिये चीनी सेना अपने चेयरमैन के आदेशों और निर्देशों का उल्लंघन नहीं कर सकती। साफ है कि चीन की कथनी और करनी में फर्क है, जिसे यदि चीनी राजनीतिक नेतृत्व ने नहीं पाटा तो भारत और चीन के बीच खुला युद्ध छिड़ने से रोका नहीं जा सकता। 

वास्तव में चीनी राजनीतिक नेतृत्व भारतीय राजनीतिक नेतृत्व के धैर्य की परीक्षा ले रहा है। भारतीय राजनीतिक नेतृत्व अपनी घरेलू लोकप्रियता खोने की कीमत पर चीनी सेना की शांति की शर्तों को नहीं मान सकता। लेकिन चीन का भी अड़ियल रुख जारी रहने के मद्देनजर भारतीय सेना के लिये दुविधा की स्थिति और जटिल हो गई है। कोविड महामारी के फैलते जाने और इस वजह से भारी दलदल में फंसी अर्थव्यवस्था से संकट में उलझी भारत सरकार की दयनीय स्थिति को देखते हुए चीन को लग रहा है कि भारतीय नेतृत्व चीन से युद्ध छेड़ने की स्थिति में नहीं है।

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