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वेबिनार पर पूर्व अनुमति के प्रावधान के ख़िलाफ़ वैज्ञानिक संस्थाएं

वेबिनार पर पूर्व अनुमति के प्रावधान के ख़िलाफ़ वैज्ञानिक संस्थाएं

किसी भी वेबिनार यानी ऑनलाइन सेमिनार से पहले सरकार की अनुमति लेने के आदेश का सरकारी संस्थाएं ही विरोध कर रही हैं। देश की चोटी की दो वैज्ञानिक शोध संस्थाओं ने इसका विरोध करते हुए केंद्र सरकार को चिट्ठी लिखी है। 

क्या केंद्र सरकार सोच पर भी पाबंदी लगाना चाहती है? ये सवाल इसलिये उठ रहा है कि अब सरकारी संस्थानों को वेबिनार यानी ऑनलाइन सेमिनार से पहले सरकार की अनुमति लेनी होगी। सरकार के इस आदेश का सरकारी संस्थाओं ने विरोध करना शुरू कर दिया है। 

देश की चोटी की दो वैज्ञानिक शोध संस्थाओं ने इसका विरोध करते हुए केंद्र सरकार को चिट्ठी लिखी है। इन्होंने कहा है कि इससे वैज्ञानिक विमर्श रुक जाएगा और युवाओं के बीच वैज्ञानिक सोच विकसित करने की कोशिशों में अड़चनें आएंगी। 

‘इंडियन एक्सप्रेस’ के अनुसार, इंडियन अकेडेमी ऑफ़ साइसेंज और  नेशनल अकेडेमी ऑफ़ साइंसेज़ ने केंद्र सरकार को अलग-अलग ख़त लिख कर इस पर चिंता जताई है। इंडियन नेशनल अकेडेमी ऑफ साइसेंज़ ने चिट्ठी लिखने पर गंभीरता से विचार कर रही है। 

पर्यवेक्षकों का कहना है कि यह अधिक महत्वपूर्ण इसलिए है कि इन तीनों संस्थाओं से लगभग 2,500 वैज्ञानिक जुड़े हुए हैं। 

क्या है मामला?

बता दें कि विदेश मंत्रालय ने 15 फ़रवरी को जारी एक नोटिस में सभी सरकारी संस्थाओं से कहा था कि वे किसी ऑनलाइन या वर्चुअल कॉन्फ्रेंस, सेमिनार या ट्रेनिंग करने के पहले प्रशासनिक सचिव से अनुमति लें। इनमें सरकारी खर्च से चलने वाली शिक्षण संस्थाएं और विश्वविद्यालय भी शामिल हैं। 

नोटिस में यह भी कहा गया है कि संबंधित मंत्रालय ऐसे मामलों पर वेबिनार आयोजित करने की अनुमति नहीं दे सकता जो राज्य की सुरक्षा, सीमा, पूर्वोत्तर राज्य, जम्मू-कश्मीर और आंतरिक मामलों से जुड़े हुए हों।

क्या कहना है वैज्ञानिकों का?

मानव संसाधन मंत्री रमेश चंद्र पोखरियाल को लिखी चिट्ठी में इंडियन अकेडेमी ऑफ़ साइंसेज़ के अध्यक्ष पार्थ मज़ुमदार ने कहा, “अकेडेमी इससे पूरी तरह सहमत है कि देश की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए, लेकिन आंतरिक मामला क्या है, यह स्पष्ट किए बग़ैर किसी भी वेबिनार से पहले अनुमति लेने की बाध्यता से भारत में विज्ञान के प्रसार में दिक्क़तें आएंगी।” 

पार्थ मजुमदार पश्चिम बंगाल के कल्याणी स्थिति नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ बायोमेडिकल जीनोम के संस्थापक हैं और देश के चोटी के वैज्ञानिकों में एक माने जाते हैं।

मजुमदार ने यह सवाल भी उठाया है कि किसी भी वेबिनार में विदेशों से कई विशेषज्ञ और वैज्ञानिक भाग ले सकते हैं, ऐसे में यह स्पष्ट नहीं है कि उस वेबिनार को अंतरराष्ट्रीय माना जाएगा या घरेलू।

वेबिनार पर रोक?

उन्होंने कहा कि यदि इस तरह के सभी वेबिनारों के लिए इजाज़त लेनी पड़ गई तो उसका मतलब यह होगा कि उस तरह के वेबिनार पर एक तरह से रोक लग जाएगी। 

मजुमदार ने यह भी कहा कि कई बार अंत समय में वेबिनार का फ़ैसला करना पड़ सकता है और उसका कार्यक्रम देर से बन सकता है, ऐसे में सवाल यह है कि कैसे उसकी अनुमति ली जाए।

पर्यवेक्षकों का कहना है कि ऐसे में लोग जानबूझ कर वेबिनार से बचेंगे और उसकी संख्या कम होती चली जाएगी। इसकी वजह यह है कि आयोजक सोच सकते हैं कि इस झमेले में क्यों पड़ा जाए, इससे अच्छा वेबिनार किया ही नहीं जाए। 

पार्थ मजुमदार ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा,

“वेबिनार से लोगों, ख़ास कर युवाओं के बीच वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने का एक अनूठा माध्यम मिला है। किसी नोबेल पुरस्कार से सम्मानित वैज्ञानिक को बुलाना बेहद मुश्किल काम होता था, वेबिनार के ज़रिए छोटी से छोटी संस्था भी यह काम कर सकती है।”


पार्थ मजुमदार, अध्यक्ष, इंडियन अकेडेमी ऑफ़ साइंसेज़

दिल्ली स्थित नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ़ इम्यूनोलॉजी की चंद्रिमा साहा ने ‘इंडियन एक्सप्रेस’ से कहा कि इंडियन नेशनल साइंस अकेडेमी की ओर से उन्होंने भी एक पत्र मानव संसाधन मंत्र को लिखा है। 

पर्यवेक्षकों ने आशंका जताई है कि इस फ़ैसले के पीछे सरकार का मक़सद उसकी नीतियों की आलोचना करने वाले लोगों का मुँह बंद करना हो सकता है, पर इसकी चपेट में वैज्ञानिक संस्थाएं भी आ रही हैं, यह ज़्यादा चिंता की बात है। 

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