+
भागवत अब आरक्षण के पक्ष में; पर क्या पहले भी यही राय थी आरएसएस की?

भागवत अब आरक्षण के पक्ष में; पर क्या पहले भी यही राय थी आरएसएस की?

आरक्षण पर बीजेपी के मातृ संगठन आरएसएस की राय को लेकर अक्सर विवाद होता रहा है। अब फिर से इस पर बीजेपी और कांग्रेस में विवाद है तो मोहन भागवत ने आरक्षण का समर्थन किया है। आख़िर उन्हें बार-बार इस पर सफाई क्यों देनी पड़ती है, क्या संघ के पहले की राय में बदलाव आया है?

लगता है कि आरक्षण का विवाद संघ और बीजेपी का कभी पीछा नहीं छोड़ेगा। आरक्षण के मुद्दे पर भाजपा और कांग्रेस के बीच तीखी बहस के बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का भी इस पर बयान आया है। उन्होंने रविवार को कहा कि संघ हमेशा आरक्षण के लिए खड़ा रहा है, जिसकी संविधान के तहत गारंटी है। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर एक वीडियो चलाया जा रहा है कि संघ आरक्षण के ख़िलाफ़ है जो कि पूरी तरह ग़लत और आधारहीन है। इसको खारिज करते हुए उन्होंने कहा है कि संघ हमेशा से आरक्षण के पक्ष में खड़ा रहा है। तो सवाल है कि जब वह इसका पक्षधर रहा है तो बार-बार सफाई देने की ज़रूरत क्यों पड़ती है? और समय-समय पर इसने आरक्षण पर किस तरह की बातें कही हैं?

आरक्षण को लेकर पहले संघ की ओर से क्या-क्या विचार रखे जाते रहे हैं, यह जानने से पहले यह जान लें कि आख़िर मोहन भागवत के इस पर अब तक किस तरह के अलग-अलग बयान आते रहे हैं। जिस तरह भागवत ने रविवार को सीधे-सीधे कह दिया कि वह आरक्षण के पक्ष में हैं, कुछ उसी तरह का बयान उन्होंने पिछले साल सितंबर महीने में दिया था। लेकिन भागवत के ये बयान क़रीब 9 साल पहले दिए गए उनके बयान से बिल्कुल अलग थे। 

2015 में बिहार चुनाव से पहले भागवत का बयान

सितंबर 2015 में आरएसएस से जुड़े साप्ताहिक पत्रिका पांचजन्य और ऑर्गेनाइज़र को दिए एक साक्षात्कार में भागवत ने आरक्षण की समीक्षा की बात कह दी थी। उन्होंने कहा था कि गैर-पक्षपातपूर्ण पर्यवेक्षकों के एक पैनल द्वारा आरक्षण की समीक्षा की जानी चाहिए। 

सरसंघचालक ने कहा था, 'पूरे राष्ट्र के हित के बारे में वास्तव में चिंतित और सामाजिक समानता के लिए प्रतिबद्ध लोगों की एक समिति बनाएं। उन्हें यह तय करना चाहिए कि किन श्रेणियों को आरक्षण की आवश्यकता है और कितने समय के लिए।'  

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले भागवत के इस बयान ने तहलका मचा दिया। विपक्षी दलों ने बीजेपी और संघ पर आरक्षण ख़त्म करने की तैयारी करने का आरोप लगाया। जब तक भागवत को इसका अहसास हुआ, तब तक काफी देर हो गई। उन्होंने बाबा साहब आंबेडकर की तारीफ़ की, 'हिंदू हिंदू एक रहें, भेदभाव को नहीं सहें' जैसे नारे दिए। समझा जाता है कि इसके बावजूद बीजेपी को इसका नुक़सान हुआ और तब जेडीयू, आरजेडी और कांग्रेस के गठबंधन की बड़ी जीत हुई।

मोहन भागवत का 2015 का बयान पिछले तीन दशकों के आरएसएस के दृष्टिकोण जैसा ही था। 1981 में आरएसएस ने एक प्रस्ताव पारित किया था जिसमें आरक्षण की नीति की समीक्षा के लिए गैर-राजनीतिक लोगों की एक समिति बनाने का आह्वान किया गया था और बाद के दशकों में भी संघ का यही रुख आता रहा।

हालाँकि, आरएसएस से इतर जनसंघ और फिर भाजपा ने लगातार जाति-आधारित आरक्षण की ज़रूरत बताई। लेकिन इसके साथ ही ये दोनों आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आरक्षण की वकालत करते रहे। मोदी सरकार ने आख़िरकार गरीबों के लिए कोटा 2019 में लागू कर दिया।

1981 में जब गुजरात में आरक्षण विरोधी आंदोलन भड़का, तो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कहा था कि वंचित वर्गों के लिए न्याय सुनिश्चित करते समय योग्यता को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार उसी साल संघ की फैसला लेने वाली सर्वोच्च ईकाई अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा यानी एबीपीएस ने एक प्रस्ताव पारित किया जिसमें गैर-पक्षपातपूर्ण सामाजिक विचारकों की एक समिति के गठन की मांग की गई, जो आरक्षण से उत्पन्न होने वाली सभी समस्याओं का गहराई से अध्ययन करे और हरिजनों व आदिवासियों के उत्थान के लिए सकारात्मक कदम सुझाए...'। मोहन भागवत का 2015 का बयान भी इसी के जैसा था।

एबीपीएस का प्रस्ताव यह भी था कि अन्य आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को उनके त्वरित विकास को सुनिश्चित करने के लिए ज़रूरी रियायतें देने की सिफारिश करे। इसमें यह भी कहा गया था कि 'जितनी जल्दी हो सके इन बैसाखियों को ख़त्म करना होगा'।

रिपोर्ट के अनुसार चार साल बाद 1985 में आरएसएस के अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल यानी एबीकेएम ने अपनी पहले की मांग को दोहराया कि केंद्र सरकार को बिना किसी देरी के, जाँच और मूल्यांकन के लिए प्रतिष्ठित और निष्पक्ष व्यक्तियों की एक प्रतिनिधि समिति गठित करने के लिए आगे आना चाहिए। यह समिति इसके सभी पहलुओं और आरक्षण नीति पर एक राष्ट्रीय सहमति तैयार करे, ताकि समाज के सामाजिक रूप से उपेक्षित और जरूरतमंद वर्गों को भी ज़रूरी समर्थन मिल सके'।

उसी एबीकेएम में अपनाए गए एक अन्य प्रस्ताव में कहा गया है कि '...आरक्षण की नीति, जिसे हमारे पिछड़े और उपेक्षित भाइयों के विकास की गति को तेज करने और इस प्रकार सामाजिक सद्भाव को मजबूत करने के साधन के रूप में डिजाइन और स्वीकार किया गया था, को हास्यास्पद तरीके से लंबे समय तक खींचा जा रहा है, पक्षपातपूर्ण लाभ के लिए एक उपकरण बना दिया गया है'।

लेकिन अब मोहन भागवत का बयान बदला हुआ है। उन्होंने कहा, 'संघ शुरू से ही संविधान के तहत स्वीकृत और गारंटीकृत आरक्षण के लिए खड़ा रहा है। हमारा मानना है कि आरक्षण तब तक जारी रहना चाहिए जब तक यह उन लोगों के लिए ज़रूरी है जिन्हें इसकी आवश्यकता है, क्योंकि यह उनके जीवन यापन या सामाजिक प्रतिष्ठा के मामले में पिछड़ेपन और अभाव की वजह से दिया जाता है। आरक्षण तब तक बना रहना चाहिए जब तक भेदभाव खत्म नहीं हो जाता।'

सत्य हिंदी ऐप डाउनलोड करें