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प्रेस की आजादी खतरे मेंः मोदी सरकार के प्रस्तावित कानूनों से पत्रकार संगठन क्यों नाराज?

प्रेस की आजादी खतरे मेंः मोदी सरकार के प्रस्तावित कानूनों से पत्रकार संगठन क्यों नाराज?

मोदी सरकार ने हाल ही में प्रेस की आजादी को खतरे में डालने वाला कानून बनाया है। प्रेस क्लब ऑफ इंडिया सहित तमाम पत्रकार संगठन, डिजिटल मीडिया अधिकार संगठन आदि ने सरकार के इस कदम का विरोध शुरू कर दिया है। जानिए उस कानून में ऐसा क्या है जो मीडिया के साथ-साथ आम लोगों को भी प्रभावित करेगा।

मोदी सरकार अब प्रसारण (ब्राडकास्ट) और डिजिटल माध्यमों के पीछे पड़ गई है। जिससे प्रेस की आजादी खतरे में पड़ गई है। केंद्र सरकार प्रस्तावित प्रसारण सेवा (विनियमन) विधेयक, 2023, डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023, प्रेस पंजीकरण अधिनियम, 2023 और आईटी संशोधन अधिनियम जैसे कानूनों के तहत मीडिया पर शिकंजा कसने जा रही है। यह कानून मोदी सरकार को किसी भी ऑनलाइन सामग्री को हटाने का अधिकार देता है जिसे वह गलत या भ्रामक मानती है। इसका सबसे बड़ा नतीजा सोशल मीडिया पर सक्रिय लोगों को भुगतना होगा। हालांकि इस कानून के पास होने से पहले ही दिल्ली पुलिस ने एक्स (ट्विटर) से कहा कि वो पत्रकार और ऑल्ट न्यूज के सहसंस्थापक मोहम्मद जुबैर के कंटेंट को हटाए।

तमाम पत्रकार संघों और डिजिटल अधिकार संगठनों ने प्रस्तावित कानून को वापस लेने की मांग की है। इन संगठनों का कहना है कि उस प्रस्तावित कानून का मकसद "प्रेस की आजादी पर अंकुश लगाना" है।

प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, इंडियन जर्नलिस्ट यूनियन, दिल्ली यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स, डिजीपब न्यूज फाउंडेशन, इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन, वर्किंग न्यूज कैमरामेन एसोसिएशन, इंडियन वुमेन प्रेस कॉर्प्स, कोगिटो मीडिया फाउंडेशन और मुंबई, कोलकाता, तिरुवनंतपुरम और चंडीगढ़ के प्रेस क्लब ने 28 मई को इस संबंध में बैठक बुलाकर प्रस्तावित कानूनों के खिलाफ विरोध जताया था। लेकिन अब उस विरोध को तेज करने का फैसला किया गया है।

पत्रकार संगठनों का कहना है कि मोदी सरकार के चारों प्रस्तावित कानून जनता के जानने के अधिकार (Right to Know) पर सीधा हमला हैं। प्रस्ताव में कहा गया है कि ब्रॉडकास्ट सर्विसेज रेगुलेशन बिल ओटीटी प्लेटफॉर्म और डिजिटल सामग्री को शामिल करने के लिए रेगुलेशन की बात कहता है। यह मौजूदा केबल टीवी नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम, 1995 की जगह लेगा। इसके जरिए अनिवार्य पंजीकरण और तमाम तीन स्तरीय रेगुलेशन का प्रस्ताव है।

पत्रकार संगठनों ने कहा कि सरकार डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम के जरिए आरटीआई कानून को कुचलना चाहती है। आरटीआई के जरिए जनता के तमाम लोग और पत्रकार महत्वपूर्ण जानकारी हासिल करते हैं। पत्रकार सार्वजनिक हित में आरटीआई के जरिए तमाम सूचनाओं को सरकारी विभागों से निकलवाते हैं। लेकिन इस कानून के जरिए आरटीआई कानून को कमजोर किया जा रहा है। सवाल किया जा रहा है कि सरकार लोगों के व्यक्तिगत डेटा को लेकर क्यों इस कानून को पास करना चाहती है।

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने तो पिछले साल अगस्त में ही प्रेस पंजीकरण एक्ट में किए जा रहे बदलावों पर आपत्ति जता दी थी। सरकार समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के कामकाज में ज्यादा दखल देने और मनमानी जांच के लिए इस कानून को लाने जा रही है। इस कानून के पास होने पर प्रेस रजिस्ट्रार, साथ ही किसी भी अन्य "प्राधिकारी" को किसी पत्रिका के परिसर में प्रवेश करने, रिकॉर्ड या दस्तावेजों की प्रतियां लेने या निरीक्षण करने या प्रस्तुत की जाने वाली आवश्यक जानकारी प्राप्त करने के लिए आवश्यक सवाल पूछने का अधिकार मिल जाएगा। 

सूचना प्रौद्योगिकी संशोधन नियमों के तहत, केंद्र एक तथ्य-जांच निकाय स्थापित करेगा जिसके पास केंद्र सरकार और उसके कामकाज के बारे में किसी भी जानकारी को "फर्जी" चिह्नित करने की पावर होगी। बता दें कि मार्च में, सुप्रीम कोर्ट ने फैक्ट चेकिंग यूनिट बनाने को लेकर जारी केंद्र की अधिसूचना पर रोक लगा दी थी। यह मामला बहुत गंभीर है और पूरे सोशल मीडिया और ऑनलाइन कंटेंट को प्रभावित करेगा। मोटे तौर पर ऐसे समझिए कि कानून पास होने पर सरकार चाहेगी तो इस रिपोर्ट को फर्जी घोषित करके इसे हटाने को कह सकती है।

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