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एमपीः एएसआई ने कमाल मौला मसजिद में मंदिर के संकेत दिए, मूर्तियां मिलने का दावा

एमपीः एएसआई ने कमाल मौला मसजिद में मंदिर के संकेत दिए, मूर्तियां मिलने का दावा

मध्य प्रदेश के धार में कमाल मौला मसजिद को लेकर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने अपनी रिपोर्ट में संकेत दिए हैं कि वहां मंदिर था। एएसआई का दावा है कि उसे वहां कई ऐतिहासिक कलाकृतियां खंडित मूर्तियों की शक्ल में मिली हैं।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने सोमवार 15 जुलाई को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में विवादित भोजशाला-कमाल मौला मसजिद पर अपनी वैज्ञानिक सर्वे रिपोर्ट पेश की। कई मीडिया रिपोर्ट में एएसआई की रिपोर्ट देखने का दावा किया गया। जिसमें खुद एएसआई ने दावा किया है कि वहां मिलीं ऐतिहासिक कलाकृतियां विवादित परिसर के मंदिर की स्थिति का संकेत देती हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि सर्वे के दौरान चांदी, तांबे, एल्यूमीनियम और स्टील से बने कुल 31 सिक्के मिले, जो विभिन्न कालखंडों के हैं। ये सिक्के इंडो-ससैनियन (10वीं-11वीं सदी), दिल्ली सल्तनत (13वीं-14वीं सदी), मालवा सल्तनत (15वीं-16वीं सदी), मुगल (16वीं-18वीं सदी), धार राज्य (19वीं सदी) और ब्रिटिश काल (19वीं-20वीं शताब्दी) के हैं।

94 खंडित मूर्तियां मिलीं

एएसआई रिपोर्ट के मुताबिक सर्वे में कुल 94 मूर्तियां, मूर्तियों के टुकड़े और वास्तुशिल्प तत्व भी सामने आए। ये मूर्तियां बेसाल्ट, संगमरमर, शिस्ट, नरम पत्थर, बलुआ पत्थर और चूना पत्थर से बनी हैं। वे गणेश, ब्रह्मा, नरसिम्हा, भैरव, अन्य देवी-देवताओं, मनुष्यों और जानवरों जैसे देवताओं की आकृतियाँ दर्शाते हैं।

जानवरों की आकृतियों में शेर, हाथी, घोड़े, कुत्ते, बंदर, साँप, कछुए, हंस और पक्षी शामिल हैं। पौराणिक आकृतियों में कीर्तिमुख (शानदार चेहरे) और व्याल (मिश्रित जीव) के विभिन्न रूप शामिल हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि इंसानों और जानवरों की कई छवियों को विरूपित या उकेरा गया है, खासकर उन इलाकों में जहां अब मसजिद खड़ी हैं।

वर्तमान संरचना में पाए गए कई टुकड़ों में संस्कृत और प्राकृत शिलालेख हैं, जो साहित्यिक और शैक्षिक गतिविधियों का संकेत देते हैं। एक शिलालेख में परमार वंश के राजा नरवर्मन (जिन्होंने 1094-1133 ईस्वी के बीच शासन किया) का उल्लेख है। अन्य शिलालेखों में खिलजी शासक महमूद शाह का उल्लेख है, जिसने एक मंदिर को मसजिद में बदल दिया था।

एएसआई की रिपोर्ट बताती है कि भोजशाला कभी एक महत्वपूर्ण शैक्षणिक केंद्र था, जिसे राजा भोज ने स्थापित किया था। बरामद कलाकृतियों से पता चलता है कि वर्तमान संरचना पहले के मंदिरों के हिस्सों का इस्तेमाल करके बनाई गई थी।

क्या है मंदिर भोजशाला विवाद

बहुत ही प्राचीन मसजिद परिसर में ही बनी 11वीं सदी के स्मारक भोजशाला को हिंदू समुदाय देवी सरस्वती का मंदिर मानता है, जबकि मुस्लिम पक्ष इसे कमाल मौला मसजिद कहता है। पिछले 21 वर्षों से, हिंदुओं को मंगलवार को भोजशाला में पूजा करने की अनुमति है, जबकि मुसलमानों को शुक्रवार को उस स्थान पर नमाज अदा करने की अनुमति है। लेकिन यहां पर विवाद सिर्फ 21 साल पुराना है।

अब बीस वर्षों बाद पूरी मसजिद को ही मंदिर घोषित करने की मांग की जा रही है। इसके लिए कोर्ट में याचिका दायर की गई। मामले में याचिकाकर्ता हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। 11 मार्च को, हाईकोर्ट ने 'हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस' के आवेदन पर एएसआई को परिसर का वैज्ञानिक सर्वेक्षण करने का आदेश दिया। यह ठीक उसी तरह हुआ, जिस तरह वाराणसी में ज्ञानवापी मसजिद के सर्वे का निर्देश कोर्ट ने दिया था। 

सर्वे पूरा करने के लिए एएसआई को डेढ़ महीने का समय दिया गया था। एएसआई ने 22 मार्च को मसजिद परिसर का सर्वे शुरू किया था जो हाल ही में समाप्त हुआ। 4 जुलाई को हाईकोर्ट ने एएसआई को विवादित स्मारक के परिसर में करीब तीन महीने तक चले सर्वे की पूरी रिपोर्ट 15 जुलाई तक पेश करने का आदेश दिया था। हाई कोर्ट इस मामले की सुनवाई 22 जुलाई को करेगा।

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