
सरकार की 'अघोषित सेंसरशिप': कंटेंट हटाने के लिए 1 लाख से ज्यादा नोटिस
भारत सरकार के गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs - MHA) की ओर से पिछले एक वर्ष में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X को भेजे गए टेकडाउन नोटिस की संख्या और उसके मकसद को जानना चाहिए। द हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार मार्च 2024 से अब तक MHA के भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (Indian Cyber Crime Coordination Centre - I4C) द्वारा X को भेजे गए 66 टेकडाउन नोटिस में से लगभग 30% नोटिस केंद्रीय मंत्रियों, सरकारी एजेंसियों, और चुनाव से संबंधित पोस्ट को हटाने के लिए थे। यह जानकारी X और भारत सरकार के बीच चल रही कानूनी लड़ाई के दौरान SAHYOG पोर्टल के जरिए सामने आई है।
मार्च 2024 में, भारत सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (IT Act) के तहत गृह मंत्रालय को सोशल मीडिया मध्यस्थों को टेकडाउन नोटिस भेजने का अधिकार दिया। इसके बाद से X सहित विभिन्न प्लेटफॉर्मों को अवैध सामग्री हटाने के लिए नोटिस जारी किए गए। हालांकि, इन नोटिसों का विवरण लगभग दो साल तक सार्वजनिक नहीं किया गया, क्योंकि X ने अप्रैल 2023 से सरकारी टेकडाउन अनुरोधों का विवरण प्रकाशित करना बंद कर दिया था।
हाल ही में, X और केंद्र सरकार के बीच कर्नाटक हाईकोर्ट में चल रहे कानूनी विवाद के दौरान ये नोटिस SAHYOG पोर्टल के जरिए उजागर हुए। X ने इस पोर्टल को "सेंसरशिप पोर्टल" करार दिया है, जिसके माध्यम से देश भर की कानून प्रवर्तन एजेंसियां और सरकारी निकाय IT Act की धारा 79(3)(b) के तहत नोटिस भेज सकते हैं।
पिछले एक साल में, सरकार ने सोशल मीडिया और मैसेजिंग मध्यस्थों - जैसे X, फेसबुक, इंस्टाग्राम, और व्हाट्सएप - को 1.1 लाख से अधिक सामग्री को हटाने के लिए नोटिस भेजे हैं। इनमें से X को भेजे गए 66 नोटिस में लगभग एक तिहाई (यानी करीब 20 नोटिस) केंद्रीय मंत्रियों, केंद्रीय सरकारी एजेंसियों, और चुनाव से संबंधित सामग्री को टारगेट करते थे। इन नोटिसों में शामिल सामग्री विभिन्न श्रेणियों में वर्गीकृत की गई हैं।
डीपफेकः उदाहरण के लिए, दिसंबर में एक नोटिस में X को 54 पोस्ट हटाने के लिए कहा गया, जो गृह मंत्री अमित शाह के एक वीडियो से जुड़े थे, जिसमें उन्हें आरक्षण विरोधी रुख अपनाते हुए दिखाया गया था। चुनावी प्रक्रिया या व्यक्तियों से जुड़ी सामग्री को हटाने के लिए भी नोटिस जारी किए गए।
सरकारी नेतृत्व की आलोचना: गृह मंत्रालय के नेतृत्व की आलोचना करने वाली सामग्री को भी निशाना बनाया गया।
इसके अलावा, सरकार ने बच्चों के यौन शोषण सामग्री, वित्तीय धोखाधड़ी, और "भ्रामक और झूठी जानकारी" जैसी अन्य श्रेणियों के तहत भी सामग्री हटाने की मांग की। टेकडाउन के लिए टारगेट सामग्री में राजनीतिक दलों, समाचार आउटलेट्स, और भारत व विश्व भर के व्यक्तिगत यूजर्स की पोस्ट शामिल थीं।
ये टेकडाउन नोटिस IT Act की धारा 79(3)(b) के तहत जारी किए गए हैं, जो सोशल मीडिया मध्यस्थों को सरकारी अधिसूचना या अदालती आदेश के आधार पर अवैध सामग्री हटाने का निर्देश देता है। SAHYOG पोर्टल, जिसे गृह मंत्रालय ने विकसित किया है, इस प्रक्रिया को स्वचालित करने के लिए बनाया गया है। यह पोर्टल केंद्रीय मंत्रालयों से लेकर स्थानीय पुलिस स्टेशनों तक सभी सरकारी एजेंसियों को टेकडाउन नोटिस जारी करने की सुविधा देता है।
सरकार का सेंसरशिप हथियार
X ने इस पोर्टल को "सेंसरशिप का हथियार" बताते हुए इसकी वैधता पर सवाल उठाए हैं। कंपनी का तर्क है कि यह प्रणाली सूचना प्रौद्योगिकी और इलेक्ट्रॉनिक्स मंत्रालय (MeitY) द्वारा धारा 69A के तहत तय न्यायिक प्रक्रिया को दरकिनार करती है, जिसमें सामग्री की जांच और निर्णय की प्रक्रिया शामिल है।
X ने कर्नाटक हाईकोर्ट में एक मुकदमा दायर किया है, जिसमें दावा किया गया है कि भारत सरकार ऑनलाइन कंटेंट को गैरकानूनी रूप से सेंसर कर रही है। कंपनी का कहना है कि SAHYOG पोर्टल के जरिए सरकार ने सेंसरशिप की शक्तियों का अनुचित विस्तार किया है और "असंख्य" सरकारी अधिकारियों को ऐसे आदेश जारी करने का अधिकार दे दिया है। X का यह भी आरोप है कि MeitY अन्य विभागों के माध्यम से अप्रत्यक्ष रूप से वह कर रहा है, जो वह धारा 69A के तहत सीधे नहीं कर सकता। इस कानूनी लड़ाई ने भारत में डिजिटल स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बहस को तेज कर दिया है।
अभिव्यक्ति की आजादी पर असर: विशेषज्ञों का मानना है कि इन टेकडाउन नोटिसों से भारत में खुद की सेंसरशिप बढ़ रही है। यानी लोग कंटेंट लिखने से परहेज़ कर रहे हैं। इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन के सह-संस्थापक अपार गुप्ता ने कहा कि भारत में "डिजिटल खतरा" बढ़ रहा है, जहां लोग अपनी बात खुलकर कहने में डरते हैं।
राजनीतिक संदर्भ: यह घटनाक्रम ऐसे समय में हुआ है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और एलन मस्क के बीच AI, अंतरिक्ष अन्वेषण, और स्थायी विकास जैसे क्षेत्रों में सहयोग की बातचीत हुई थी। इसके बावजूद, X का सरकार के खिलाफ मुकदमा दायर करना दोनों पक्षों के बीच तनाव को बताता है।
ग्लोबल संदर्भ: भारत सरकार द्वारा OCI (Overseas Citizen of India) कार्ड रद्द करने और पत्रकारों व आलोचकों को निशाना बनाने के हालिया मामले भी इस संदर्भ में चर्चा में हैं, जिसे मानवाधिकार संगठनों ने "राजनीतिक दमन" का हिस्सा बताया है। कई विदेशी पत्रकारों के ओसीआई मोदी सरकार ने रद्द कर दिए हैं।
गृह मंत्रालय द्वारा X को भेजे गए टेकडाउन नोटिस, विशेष रूप से केंद्रीय मंत्रियों और सरकारी एजेंसियों से संबंधित सामग्री को टारगेट करने वाले, भारत में डिजिटल प्रशासन और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बीच बढ़ते तनाव को उजागर करते हैं। SAHYOG पोर्टल और IT Act की धारा 79(3)(b) के इस्तेमाल ने सरकार को सोशल मीडिया पर नियंत्रण बढ़ाने का एक नया तरीका प्रदान किया है। कर्नाटक उच्च न्यायालय में चल रहा मुकदमा इस मुद्दे पर भविष्य की दिशा तय कर सकता है, जो न केवल भारत बल्कि ग्लोबल डिजिटल नीतियों को प्रभावित करेगा। यह स्थिति तकनीकी कंपनियों, सरकार, और नागरिकों के बीच संतुलन की जरूरत को बताती है।
रिपोर्ट और संपादनः यूसुफ किरमानी