
HAL ने रूस को दी संवेदनशील तकनीक? भारत बोला- NYT की रिपोर्ट ग़लत
भारत के विदेश मंत्रालय ने सोमवार को न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट को 'तथ्यात्मक रूप से गलत और भ्रामक' बताते हुए खारिज कर दिया। मंत्रालय ने कहा कि यह रिपोर्ट तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर एक खास राजनीतिक नैरेटिव को फिट करने की कोशिश करती है। यह विवाद सरकारी कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड यानी एचएएल से जुड़े आरोपों को लेकर शुरू हुआ। इस पर न्यूयॉर्क टाइम्स ने दावा किया था कि उसने संवेदनशील तकनीक को रूस तक पहुँचाया। रिपोर्ट में कहा गया है कि एक ब्रिटिश कंपनी से तकनीक को पाने के बाद एचएएल ने कथित रूप से रूसी कंपनी को खेपें भेजीं।
न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट में आरोप लगाया गया कि 2023 और 2024 के बीच, ब्रिटिश एयरोस्पेस कंपनी एचआर स्मिथ ग्रुप ने एचएएल को प्रतिबंधित तकनीक की आपूर्ति की। बाद में कई तकनीक रूस की सरकारी हथियार एजेंसी रोसोबोरोनएक्सपोर्ट तक पहुँची। रिपोर्ट के मुताबिक, एचएएल ने एचआर स्मिथ की सहायक कंपनी टेकटेस्ट से 118 शिपमेंट में क़रीब 20 लाख डॉलर की प्रतिबंधित तकनीक प्राप्त की। उसी दौरान, एचएएल ने रोसोबोरोनएक्सपोर्ट को कम से कम 13 शिपमेंट भेजे, जिनका मूल्य 1.4 करोड़ डॉलर से ज़्यादा था।
रिपोर्ट में कहा गया कि यह तकनीक 'ड्यूअल यूज' की थी, जिसे ब्रिटिश और अमेरिकी अधिकारियों ने रूस के यूक्रेन में सैन्य अभियानों के लिए महत्वपूर्ण माना है। न्यूयॉर्क टाइम्स ने कस्टम रिकॉर्ड्स का हवाला देते हुए दावा किया कि एचएएल से रूस को भेजे गए उपकरणों के प्रोडक्ट कोड एचआर स्मिथ से मिले कोड से मेल खाते थे। हालाँकि, रिपोर्ट में यह भी स्वीकार किया गया कि इस बात का कोई सीधा सबूत नहीं है कि एचआर स्मिथ के उत्पाद रूस तक पहुँचे। इसके अलावा, रिपोर्ट में यह भी ज़िक्र था कि एचआर स्मिथ ने ब्रिटिश राजनीतिक दल रिफॉर्म यूके को 100,000 पाउंड का चंदा दिया था, जिसके नेता हाल ही में नाइजेल फराज बने।
इस बीच अब भारत के विदेश मंत्रालय के सूत्रों ने समाचार एजेंसी एएनआई से कहा, 'हमने न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट देखी है। यह रिपोर्ट तथ्यात्मक रूप से ग़लत और भ्रामक है। इसमें तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर एक राजनीतिक नजरिया थोपने की कोशिश की गई है। भारतीय संस्था ने रणनीतिक व्यापार नियंत्रण और अंतिम उपयोगकर्ता प्रतिबद्धताओं से जुड़े अपने सभी अंतरराष्ट्रीय दायित्वों का पूरी तरह पालन किया है।' मंत्रालय ने यह भी जोड़ा कि भारत का रणनीतिक व्यापार को नियंत्रित करने वाला क़ानूनी और नियामक ढाँचा मज़बूत है, जो भारतीय कंपनियों के विदेशी कारोबार को मार्गदर्शन देता है।
न्यूज़ एजेंसी ने रिपोर्ट दी है कि सूत्रों ने न्यूयॉर्क टाइम्स पर निशाना साधते हुए कहा, 'हमें उम्मीद है कि प्रतिष्ठित मीडिया संस्थान ऐसी रिपोर्ट प्रकाशित करने से पहले बुनियादी जाँच-पड़ताल करेंगे, जो इस मामले में स्पष्ट रूप से नजरअंदाज की गई।'
रिपोर्ट के अनुसार विदेश मंत्रालय ने एचएएल का बचाव करते हुए कहा कि कंपनी ने सभी अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन किया है।
यह जवाब उस समय आया है जब भारत और रूस के बीच रक्षा संबंधों पर वैश्विक नज़रें टिकी हैं, खासकर यूक्रेन संकट के बाद। एचएएल भारत की रक्षा क्षेत्र की प्रमुख कंपनी है, जो स्वदेशी लड़ाकू विमान तेजस से लेकर हेलिकॉप्टर और अन्य उपकरण बनाती है। ऐसे में, न्यूयॉर्क टाइम्स का दावा भारत की साख और उसकी रक्षा नीति पर सवाल उठा सकता था।
मंत्रालय का यह रुख न केवल एचएएल की स्थिति को मज़बूत करता है, बल्कि भारत के रणनीतिक व्यापार नियमों की पारदर्शिता को भी रेखांकित करता है। यहाँ यह भी ध्यान देने योग्य है कि रूस के साथ भारत के पुराने रक्षा संबंध हैं, और रोसोबोरोनएक्सपोर्ट एचएएल का एक बड़ा व्यापारिक साझेदार रहा है। लेकिन भारत ने हमेशा कहा है कि वह अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों और नियमों का सम्मान करता है।
न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट कई सवाल खड़े करती है। क्या यह भारत-रूस संबंधों को निशाना बनाने की कोशिश है, खासकर तब जब पश्चिमी देश रूस पर दबाव बढ़ा रहे हैं? या फिर यह ब्रिटेन की आंतरिक राजनीति से जुड़ा है, जहाँ एचआर स्मिथ और रिफॉर्म यूके का ज़िक्र संदेह पैदा करता है? विदेश मंत्रालय ने इसे राजनीतिक नैरेटिव करार देकर इस संभावना को बल दिया कि रिपोर्ट के पीछे कोई छिपा एजेंडा हो सकता है।
दूसरी ओर, भारत ने पिछले कुछ सालों में रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता पर जोर दिया है। एचएएल हाल ही में 156 प्रचंड हेलिकॉप्टरों के लिए 62,700 करोड़ रुपये के सौदे में शामिल हुआ है। ऐसे में इस तरह के आरोप भारत की स्वदेशी रक्षा पहल को कमजोर करने की कोशिश के रूप में भी देखे जा सकते हैं।
विदेश मंत्रालय का यह त्वरित और सख्त जवाब दिखाता है कि भारत अपनी छवि और रक्षा संस्थानों की साख को लेकर कितना संवेदनशील है। यह घटना अंतरराष्ट्रीय मीडिया और भारत के बीच तनाव का एक और उदाहरण है।
फ़िलहाल, यह साफ़ है कि भारत अपने रणनीतिक हितों और नियमों का पालन करने में कोई कोताही नहीं बरत रहा। लेकिन यह विवाद ख़त्म नहीं हुआ है- क्या न्यूयॉर्क टाइम्स अपने दावों को और मज़बूत करेगा, या यह महज एक शिगूफा साबित होगा? यह देखना बाकी है।
(रिपोर्ट का संपादन: अमित कुमार सिंह)