सेबी प्रमुख माधबी पुरी बुच भले ही लोक लेखा समिति के सामने पेश नहीं हो पाईं, लेकिन अब उनके ख़िलाफ़ लोकपाल ने कार्रवाई शुरू कर दी है। भ्रष्टाचार विरोधी निगरानी संस्था लोकपाल ने बुच से उनके खिलाफ लगाए गए हितों के टकराव के आरोपों पर जवाब मांगा है। इसको लेकर उनके ख़िलाफ़ तीन अलग-अलग शिकायतें दर्ज की गई हैं। इनमें अमेरिका आधारित शॉर्टसेलर फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च की एक हालिया रिपोर्ट का हवाला दिया गया।
माधबी पुरी बुच अगस्त महीने में तब विवादों में आ गईं जब अमेरिका स्थित शॉर्ट-सेलर फर्म ने दावा किया कि व्हिसलब्लोअर दस्तावेजों से पता चलता है कि सेबी की अध्यक्ष माधबी पुरी बुच की अडानी मनी साइफनिंग स्कैंडल में इस्तेमाल की गई संदिग्ध ऑफशोर संस्थाओं में हिस्सेदारी थी। इसने आरोप लगाया है कि इसीलिए उन्होंने अडानी को लेकर पहले किए गए खुलासे के मामले में कार्रवाई नहीं की। हिंडनबर्ग रिसर्च ने बाजार नियामक सेबी से जुड़े हितों के टकराव का सवाल उठाया है।
हिंडनबर्ग रिसर्च के ताज़ा आरोपों को सेबी प्रमुख माधबी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच ने खारिज कर दिया है। तुरंत बयान जारी कर बुच ने कहा था कि फंड में उनका निवेश बुच के सेबी में शामिल होने से दो साल पहले किया गया था। इसके बारे में हिंडनबर्ग ने दावा किया था कि यह कथित 'अडानी स्टॉक हेरफेर' से जुड़ा है। उनकी सफ़ाई के बाद भी वह लगातार विवादों में रहीं और कांग्रेस ने एक के बाद एक कई आरोप लगाए हैं।
इस मामले में 13 अगस्त 2024 को लोकपाल के समक्ष एक शिकायत दर्ज की गई थी। इसमें बुच का नाम लिया गया था। उनके खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दंडनीय अपराध करने के आरोप में लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम के तहत कार्रवाई की मांग की गई। 11 सितंबर को इसी तरह के आरोपों के साथ एक और शिकायत दर्ज की गई, उसके बाद 14 अक्टूबर को तीसरी शिकायत दर्ज की गई।
द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार शिकायतों पर गौर करने के बाद लोकपाल ने शुक्रवार को एक आदेश जारी किया और कहा कि आरोपों को लेकर बिना कोई राय व्यक्त किए ही हम उस लोक सेवक को आरोपों के बारे में सफाई देने के लिए कहना उचित समझते हैं।
लोकपाल अध्यक्ष न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ द्वारा जारी आदेश में इस बात पर जोर दिया गया कि यह केवल एक प्रक्रियागत निर्देश है और इसमें बुच का नाम साफ़ तौर पर नहीं लिया गया है। हालाँकि, इसका मतलब यह है कि बुच को आदेश मिलने के चार हफ़्ते के भीतर हलफनामा दाखिल करना होगा और लोकपाल पीठ 19 दिसंबर को इस मामले पर आगे विचार करेगी।
बता दें कि हिंडनबर्ग रिसर्च ने इस साल अगस्त में एक रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसमें कहा गया कि सेबी ने अडानी समूह की जांच में कोई नतीजा नहीं निकाला है, क्योंकि वह 'उस ट्रेल का पीछा नहीं करना चाहता जो उसके अपने अध्यक्ष तक ले जा सकता था'। शोध फर्म की रिपोर्ट के बाद सेबी व इसके बुच और उनके पति धवल बुच ने उन आरोपों को खारिज कर दिया।
बुच पर उठे तूफान के बीच इस मामले का संसद की लेखा समिति यानी पीएसी ने भी संज्ञान लिया है। पीएसी ने बुच को 24 अक्टूबर समिति के सामने पेश होने के लिए कहा था। उन्होंने 'आवश्यक कारणों' का हवाला देते हुए भाग नहीं लिया था।
पीएसी ने नियामक संस्था के कामकाज की समीक्षा के लिए बैठक बुलाई थी। यह दूसरी बार है जब पीएसी ने उन्हें बुलाया है। भाजपा पैनल के अध्यक्ष केसी वेणुगोपाल से नाराज थी, उन्होंने उन पर एकतरफा फैसले लेने और सरकार को बदनाम करने के लिए अस्तित्वहीन मुद्दों को उठाने का आरोप लगाया।
माधबी पुरी बुच व अधिकारियों को 24 अक्टूबर को बुलाए जाने के बाद पैनल में शामिल भाजपा सदस्य लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से इसे रोकने के लिए हस्तक्षेप करने की मांग कर रहे थे। भाजपा सांसदों ने दावा किया था कि यह जाँच नियमों का उल्लंघन है।
बुच ने पीएसी से छूट मांगी थी, लेकिन उन्हें इससे इनकार कर दिया गया। उनसे कहा गया है कि उन्हें समिति के समक्ष उपस्थित होना चाहिए।