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रूस युद्ध में भारतीय की मौत से उठे सवाल, इसराइल के मामले में दोहरी नीति क्यों?

रूस युद्ध में भारतीय की मौत से उठे सवाल, इसराइल के मामले में दोहरी नीति क्यों?

रूस की सेना की ओर से लड़ रहे केरल के एक युवक की यूक्रेन वॉर जोन में मौत हो गई। इस घटना के बाद भारतीय विदेश मंत्रालय (एमईए) ने अग्रिम मोर्चे पर तैनात शेष भारतीयों की शीघ्र भारत वापसी की 'जोरदार' मांग की है। हालांकि भारतीय युवकों को इसराइल में भी भेजा गया है और उनमें से गजा जैसे संवेदनशील क्षेत्र में इसराइल ने तैनात किया है लेकिन वहां भेजे गये भारतीय नागरिकों की चिन्ता नहीं की जा रही है।

केरल के एक युवक की मौत रूस के युद्ध क्षेत्र में मौत हो गई। भारतीय विदेश मंत्रालय ने इसकी पुष्टि की। इस युवक को यूक्रेन के खिलाफ युद्ध में रूसी सैन्य सहायता सेवा ने नियुक्त किया था। इस मौत के बाद भारत ने रूस की सेना से शेष भारतीय नागरिकों के लिए शीघ्र वापसी की अपनी मांग दोहराई। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जयसवाल ने कहा, "मामले को मॉस्को में रूसी अधिकारियों के साथ-साथ नई दिल्ली में रूसी दूतावास के साथ उठाया गया है।" एक तरफ तो रूस पर इस तरह का दबाव बनाया गया लेकिन इसराइल में भी तमाम युवक रोजगार के लिए गए। उनमें से कुछ गजा में भी भेजे गये। लेकिन कई युवक वहां गायब हैं और उनका पता नहीं चल रहा। इसराइल को लेकर भारत मौन है।

त्रिशूर के एक इलेक्ट्रीशियन बिनिल टीबी की कथित तौर पर रूसी नियंत्रण वाले यूक्रेनी क्षेत्र में कहीं फंसे होने के बाद युद्ध क्षेत्र में मृत्यु हो गई। बिनिल के चचेरे भाई जैन टीके, जो उनके साथ रूस गए थे और उन्हें फ्रंट-लाइन सेवा के लिए नियुक्त किया गया था, भी घायल हो गए। बिनिल (32) और जैन (27) आईटीआई मैकेनिकल डिप्लोमा धारक हैं और इलेक्ट्रीशियन और प्लंबर के रूप में काम करने की उम्मीद से 4 अप्रैल को रूस गए थे।

कथित तौर पर अब तक रूसी सेना में सेवा करते हुए आठ से अधिक भारतीय नागरिकों की मौत हो चुकी है। अगस्त 2024 में, विदेश मंत्रालय (एमईए) ने इन मौतों की पुष्टि की थी और खुलासा किया कि रूसी सशस्त्र बलों में भर्ती 63 अतिरिक्त भारतीय नागरिक अब शीघ्र छुट्टी की मांग कर रहे हैं। लेकिन भारत इनकी वापसी करा नहीं पाया। कहां तो यह खबर फैलाई गई कि पीएम मोदी ने रूस-यूक्रेन युद्ध रुकवाने की पहल की थी और कहां रूस युद्ध में फंसे भारतीयों की मौत नहीं हो पाई।

यूक्रेन में चल रहे संघर्ष ने न केवल प्रमुख विश्व शक्तियों के बीच भू-राजनीतिक (जियो पॉलिटिक्स) मतभेदों को उजागर किया है, बल्कि विशेष रूप से दक्षिण एशिया से आर्थिक प्रवासियों के सामने आने वाली कमजोरियों को भी उजागर किया है। भारतीय नागरिकों को रूसी सेना में शामिल किए जाने की परेशान करने वाली प्रवृत्ति एक काले पक्ष को दर्शाती है, जहां भू-राजनीतिक रणनीतियां तमाम देशों में गरीबी और आर्थिक हताशा का फायदा उठाती हैं।

रूस की भर्ती रणनीति, जिसने आकर्षक रोजगार के अवसरों की आड़ में भारतीय युवकों को फंसाया है। यह अनैतिक है। लेकिन भारत इसे शुरुआत में ही नहीं रोक पाया। शुरुआत में इन युवकों को गैर-लड़ाकू भूमिका में "सेना सहायक" के रूप में भर्ती किया गया, लेकिन बाद में भारतीयों से रूसी में अनुबंध पर हस्ताक्षर करने को कहा गया। उन्होंने उस भाषा को समझा नहीं। और बाद में उन्हें सक्रिय सैना में धकेल दिया गया। सैन्य उद्देश्यों के लिए श्रम का यह हेरफेर न केवल नैतिक भर्ती प्रथाओं का उल्लंघन है, बल्कि भारत के मानव संसाधनों का दुरुपयोग भी है जिसे रूस एक रणनीतिक भागीदार मानता है।

बढ़ते घरेलू दबाव और अंतरराष्ट्रीय जांच के बीच भारत सरकार ने बयान जारी कर अपने नागरिकों के बचाव और सुरक्षित वापसी की सुविधा देने का वादा किया। लेकिन इन आश्वासनों के बावजूद, ठोस कार्रवाइयों से नतीजे नहीं आये। प्रभावित लोगों के परिवार भारत सरकार की ओर से निर्णायक कार्रवाई की कमी के कारण निराशा की स्थिति में हैं।

रूसी सरकार की ओर से किसी ठोस प्रतिक्रिया का अभाव इस मुद्दे को और मुश्किल बना रहा है। भारत की अपीलों और इस मुद्दे के कारण भारत-रूस संबंधों पर स्पष्ट तनाव के बावजूद, मॉस्को काफी हद तक गैरजिम्मेदार बना हुआ है। यह चुप्पी और निष्क्रियता हालात को अधिक जटिल बना रही है, जिससे प्रभावित व्यक्ति और उनके परिवार की जिन्दगी दूभर हो रही है। ऐसा पैसा किस काम का, जिसके लिए मौत पल-पल मंडरा रही है।

भारत सरकार को रूस युद्ध में फंसे भारतीयों की अच्छी तरह से जानकारी है लेकिन इसके बावजूद इसराइल में भारतीय युवकों को जाने की अनुमति दी गई।


इसराइल के लिए भी दरवाजे खोले

6,000 भारतीय युवकों को इसराइल भेजने के फैसले को सही किस तरह ठहराया जा सकता है। इसराइल-हमास संघर्ष के बीच फिलिस्तीनी मजदूरों की जगह भारतीयों को रखने के लिए यह फैसला इसराइल ने किया था। लेकिन अब भारतीय युवकों की इसराइल में सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंताएं हैं। 

एक तरफ तो भारत सरकार इसराइल के लिए यात्रा सलाह (ट्रैफिक एडवाइजरी) जारी करती है कि वहां न जायें। लेकिन दूसरी तरफ अपने युवकों की इसराइल में भर्ती और बाद में गजा में तैनाती पर चुप रहती है। यह क्या है।आखिर इसराइल को भारत में आकर युवकों की भर्ती का रास्ता किसने बनाया। क्या भारत सरकार की मर्जी के बिना रूस और इसराइल भारत आकर बेरोजगार युवकों की भर्ती कर सकते हैं। भारत ने अपने बदतर बेरोजगारी के आंकड़ों को छिपाने या युवकों को चुप कराने के लिए यह मंजूरी दी। मोदी सरकार इसे स्वीकार करे।


रूस और इसराइल में भारतीय श्रमिकों के दोहरे मापदंड कुछ सोचने को मजबूर करते हैं कैसे अक्सर जियो पॉलिटिक्स में लाभ के लिए आर्थिक हताशा और किसी देश की गरीबी का फायदा उठाया जाता है। दोनों ही मामलों में, बेहतर जीवन की तलाश करने वाले श्रमिक बड़ी भू-राजनीतिक संस्थाओं द्वारा हेरफेर किए जाने पर खुद को अनिश्चित परिस्थितियों में पाते हैं। यह शोषण लोगों को अंतरराष्ट्रीय संघर्षों में शामिल होने से बचाने में मेजबान और घरेलू देशों दोनों की नैतिक जिम्मेदारियों के बारे में महत्वपूर्ण सवाल उठाता है।

रूस और इसराइल में भारतीय श्रमिकों के मामले सभी श्रमिकों की गरिमा और अधिकारों की रक्षा के लिए व्यापक उपायों की तत्काल जरूरत को बताते हैं। भारत सरकार यह सुनिश्चित करे कि आर्थिक अवसरों की उनकी खोज उन्हें खतरनाक या शोषणकारी स्थितियों में न ले जाए। यह संकट केवल राष्ट्रीय चिंता का विषय नहीं है, बल्कि एक ग्लोबल मानवीय मुद्दा है। इसमें शामिल सभी सरकारों से लेकर संयुक्त राष्ट्र जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्था से ठोस प्रयासों और उपायों की दरकार है।

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