कश्मीर और कश्मीरी पंडितों पर सिर्फ बैठकें हो रही हैं। पिछले दो महीने से कश्मीर कुछ ज्यादा ही अशांत हो चला है। हाल ही में एक महिला समेत चार हिन्दुओं की अलग-अलग दिन हत्या कर दी गई। यहीं से टारगेट किलिंग की शुरुआत हुई है। हर हत्या के बाद एक बैठक इस बीच घाटी में बचे खुचे कश्मीरी पंडित या हिन्दू पलायन कर रहे हैं। तमाम सरकारी कैंप खाली होते जा रहे हैं। सरकार ऐसी खबरों को झुठलाने में जुटी है लेकिन वो तमाम वीडियो और फोटो को सामने आने से नहीं रोक पा रही है, जिसमें पंडितों को लौटते दिखाया गया है। इनमें ज्यादा पीएम राहत पैकेज पर काम करने वाले हिन्दू परिवार हैं।
सरकार के खिलाफ लगातार प्रदर्शन कर रहे कश्मीरी पंडितो ने अब अपना आंदोलन वापस ले लिया है। घाटी में कार्यरत कश्मीरी पंडितों ने गुरुवार को आधिकारिक "निष्क्रियता" पर निराशा जताई।
इंडियन एक्सप्रेस ने बडगाम के शेखपुरा और पुलवामा के कैंप में रखे गए कश्मीरी पंडितों से बात की। उनके चेहरों पर निराशा और चिंता की भावनाएं छिप नहीं रही हैं। पंडितों और बाहरी लोगों को निशाना बनाने वाली हत्याओं की कड़ी के बाद, कैंप में कई लोगों ने कहा कि वे घाटी के बाहर शिद्दत से विकल्प तलाश रहे हैं।
शेखपुरा कैंप के निवासी 40 साल के अमित कौल ने कहा, हम सभी जम्मू वापस जा रहे हैं। मैं अपने पांच साथियों के साथ पहले ही कैंप छोड़ चुका हूं। कौल ने कहा कि राजस्व कर्मचारी राहुल भट की 12 मई को बडगाम के चदूरा में उनके दफ्तर के अंदर हत्या कर दी गई थी, उसके बाद से वो सरकार से आग्रह कर रहे थे कि उन्हें जम्मू में ट्रांसफर कर दिया जाए।
एक अन्य कश्मीरी पंडित कर्मचारी, जो पहले ही जम्मू के लिए रवाना हो चुका है, ने कहा कि कश्मीर में, अब अल्पसंख्यकों के लिए कोई जगह सुरक्षित नहीं है। कुछ पंडितों ने बताया कि हमें कैंपों से बाहर निकलने की आजादी नहीं थी। हम एक तरह से उनमें कैद होकर रह गए थे। यह सरकार की नाकामी है।
गुरुवार को, कैंप के निवासियों ने प्रदर्शन स्थल से तम्बू हटा दिया। उनमें से कुछ ने स्वीकार किया कि सरकार ढीली है। उनके मुताबिक कैंप से कुछ परिवार पहले ही जा चुके हैं।
साउथ कश्मीर में कैंप में, लगभग 45 परिवार अपने परिसरों तक ही सीमित हैं और उनमें से कई ने कहा कि वे ट्रांसफर होने के लिए तैयार हैं। अरविंद पंडिता ने कहा कि हम सभी एक दूसरे से सलाह कर रहे हैं कि हम कब जा सकते हैं। सभी कर्मचारियों के बीच आम सहमति है कि हमें जाना है। हम अपने जीवन को जोखिम में नहीं डाल सकते, ”हाल शिविर के निवासी अरविंद पंडिता ने कहा।
यह पूछे जाने पर कि क्या वे एक किसी और कदम पर विचार करेंगे, उन्होंने कहा: ऐसा नहीं लगता कि चीजें बेहतर हो रही हैं इसलिए हम अपने बच्चों और सभी सामानों के साथ जाएंगे।
मार्च 2021 में, संसद में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में, गृह मंत्रालय ने कहा था कि 6,000 स्वीकृत पदों में से, लगभग 3,800 प्रवासी उम्मीदवार पिछले कुछ वर्षों में पीएम पैकेज के तहत सरकारी नौकरी करने के लिए कश्मीर लौट आए हैं। अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद, 520 प्रवासी उम्मीदवार ऐसी नौकरी करने के लिए कश्मीर लौटे थे।
18 मई को, सरकार ने विभिन्न सरकारी विभागों के प्रमुखों को यह तय करने का निर्देश दिया कि कश्मीरी पंडित समुदाय के कर्मचारियों को “असुरक्षित क्षेत्रों” में तैनात नहीं किया जाए बल्कि जिला मुख्यालयों में पोस्टिंग दी जाए।
23 मई को, उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने शेखपुरा शिविर का दौरा किया, जहां राहुल भट का परिवार उस समय रह रहा था, और निवासियों को आश्वासन दिया कि उनकी चिंताओं का समाधान किया जाएगा। प्रशासन ने कुलगाम, बडगाम और अनंतनाग जिलों में "कर्मचारियों की शिकायतों - (पीएम पैकेज / प्रवासी / एससी / एसटी / राजपूत और अन्य) को सुनने के लिए नोडल अधिकारी भी नियुक्त किए हैं।
लेकिन कश्मीरी पंडितों के कर्मचारी इससे सहमत नहीं थे और उन्होंने काम पर लौटने से इनकार कर दिया था।