जमीयत उलेमा-ए-हिंद का प्रस्ताव- सोशल मीडिया, नृत्य, फोटोग्राफी से कमाई 'हराम'

05:00 pm Sep 18, 2023 | सत्य ब्यूरो

भारतीय इस्लामी विद्वानों के संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद यानी जेयूएच ने हाल ही में एक प्रस्ताव पारित कर सोशल मीडिया, नृत्य और अनावश्यक फोटोग्राफी से होने वाली कमाई को 'हराम' यानी अवैध घोषित कर दिया है।

प्रस्ताव ने खासकर टिकटॉक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर कंटेंट क्रिएशन को निशाना बनाया है। प्रस्ताव में कहा गया है कि चिल्लाना, नाचना और अनावश्यक तस्वीरें लेने जैसी शरिया द्वारा प्रतिबंधित गतिविधियाँ, आजीविका के स्वीकार्य साधन नहीं हैं और उनसे प्राप्त आय को 'हराम' माना जाता है। ऐसे सोशल मीडिया माध्यमों पर खासकर युवा नृत्य और फोटोग्राफी का इस्तेमाल अक्सर प्रसिद्धि पाने और कमाई करने के लिए कर रहे हैं। 

जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने यह निर्णय पश्चिम बंगाल के उत्तर दिनाजपुर में आयोजित 18वें न्यायिक इज्तेमा के दौरान लिया। इसमें देश भर से क़रीब 200 इस्लामी विद्वान समसामयिक मुद्दों पर चर्चा करने के लिए जुटे थे।

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार बैठक में गैरकानूनी धन, विशेष रूप से आधुनिक व्यावसायिक प्रथाओं और अवैध व्यवसायों से संबंधित मुद्दों पर भी चर्चा हुई। बैठक में यह भी कहा गया कि सूदखोरी, रिश्वतखोरी, चोरी, जुआ, धोखाधड़ी या झूठे एग्रीमेंट के माध्यम से अर्जित संपत्ति सख्त वर्जित बताई गई है। 

बैठक में माना गया है कि इन तरीक़ों से कमाया हुआ धन पाप और गलत काम की ओर ले जाता है। लोगों को आय के इन साधनों को अपनाने से बचना चाहिए। आजतक की रिपोर्ट के अनुसार प्रस्ताव में यह भी कहा गया है कि खरीदारों को सामान के भुगतान के लिए केवल हलाल फंड का उपयोग करना चाहिए और यदि किसी भी कारण से 'हराम' धन का उपयोग किया जाता है तो खरीदी गई वस्तु से होने वाला लाभ हराम माना जाएगा। यदि किसी व्यक्ति के पास हलाल और हराम दोनों तरह की संपत्ति अलग-अलग है और वह केवल हलाल संपत्ति से खर्च करने के लिए जाना जाता है, तो उससे दावतें और उपहार स्वीकार करना जायज़ है। अगर, वह हराम धन की पेशकश करते हैं, तो इसे स्वीकार नहीं करना चाहिए।

विद्वानों ने इस्लाम में  सामूहिक बलिदान के महत्व पर जोर देते हुए इससे संबंधित मुद्दों पर भी विचार-विमर्श किया।

जेयूएच के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने अपने शुरुआती भाषण में कहा कि इस्लामी न्यायशास्त्र हर युग के लिए अनुकूल है और यह व्यक्तिगत राय पर नहीं बल्कि कुरान, सुन्नत और सामूहिक निर्णयों पर आधारित है। उन्होंने भारतीय विद्वानों को वैश्विक मंच पर नेतृत्वकारी भूमिका निभाने की ज़रूरत पर बल दिया।