ब्रिटेन के नये यात्रा नियमों पर भारत के साथ विवाद पर अब बयान आए हैं कि ब्रिटेन को आपत्ति कोविशील्ड वैक्सीन पर नहीं है, बल्कि टीके के लिए जारी किये जाने वाले सर्टिफ़िकेट और को-विन वेबसाइट पर है। अब दोनों देशों की तरफ़ से कहा जा रहा है कि को-विन और सर्टिफ़िकेट के मसले को सुलझाया जा रहा है। तो फिर इससे पहले ब्रिटेन के नये यात्रा नियमों को भेदभाव वाला, नस्लवादी और आपत्तिजनक क्यों कहा जा रहा था?
इस तरह की टिप्पणी सोशल मीडिया पर तो हुई ही, सरकार में शामिल लोगों ने भी ऐसे ही आरोप लगाए थे। भारत के विदेश सचिव हर्षवर्धन शृंगला ने मंगलवार को कहा था कि कोविशील्ड को मान्यता नहीं देना एक भेदभावपूर्ण नीति है और यूके की यात्रा करने वाले हमारे नागरिकों को प्रभावित करती है। इस बयान से पहले सूत्रों के हवाले से ख़बर आई थी कि चेतावनी दी गई थी कि भारतीय वैक्सीन को छूट नहीं मिलने पर ब्रिटेन की वैक्सीन लगाए उसके नागरिकों को भी भारत में ऐसे नियमों का सामना करना पड़ सकता है।
इस पर नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमिताभ कांत ने एक लंबा-चौड़ा लेख लिखकर ब्रिटेन सरकार की तीखी आलोचना भी की। उन्होंने उस लेख का शीर्षक ही दिया- स्मॉल माइंडेड ग्रेट ब्रिटेन' यानी 'संकुचित दिमाग़ का ब्रिटेन'।
वैसे, ब्रिटेन के इन निमयों के ख़िलाफ़ विपक्षी दल के नेताओं ने भी कड़ी प्रतिक्रिया दी थी। इनमें कांग्रेस के जयराम रमेश और आनंद शर्मा जैसे नेता शामिल थे। जयराम रमेश ने ट्वीट किया, 'कोविशील्ड को मूल रूप से यूके में विकसित किया गया था और सीरम इंस्टीट्यूट पुणे ने उस देश को भी आपूर्ति की है, यह देखते हुए बिल्कुल विचित्र है! इससे नस्लभेद की बू आती है।'
आनंद शर्मा ने तो ट्वीट किया, 'पूरी तरह से टीका लगाए गए भारतीयों को मान्यता नहीं देने का यूके सरकार का निर्णय भेदभावपूर्ण, नस्लभेदी है और इसकी कड़ी निंदा की जानी चाहिए। कोविशील्ड यूके में एस्ट्राजेनेका के समान है और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया द्वारा लाइसेंस के तहत निर्मित और यूके सहित यूरोपीय देशों को निर्यात किया जाता है।'
ऐसी प्रतिक्रियाएँ इसलिए आईं क्योंकि ब्रिटेन के नये यात्रा नियमों में कहा गया था कि भारतीय वैक्सीन लगाए लोगों को 'बिना टीका लगाए हुए' माना जाएगा। लेकिन भारत में तीखी प्रतिक्रियाओं के बाद ब्रिटेन की तरफ़ से साफ़ कहा गया कि उसकी आपत्ति कोविशील्ड वैक्सीन को लेकर नहीं है। उसने कहा है कि उसने भारत के टीके को स्वीकृति दी है, लेकिन टीके लगाए लोगों को जारी किए गए सर्टिफिकेट को नहीं दी है। भारत के लोगों को ब्रिटेन जाने पर अभी भी क्वारन्टीन से गुजरना होगा, यानी वहाँ पहुँचने के बाद खुद को क्वारन्टीन में रखने के बाद ही वे सामान्य कामकाज शुरू कर सकेंगे।
अब ख़बर है कि दोनों देशों के बीच को-विन वेबसाइट और सर्टिफ़िकेट में मसला है उसे सुलझाने के लिए बातचीत की जा रही है। हालाँकि, बातचीत के इस तरीक़े को सही रास्ता माना जा रहा है, लेकिन जिस तरह से पहले प्रतिक्रियाएँ दी गई थीं उनको सही नहीं माना गया। विदेश मामलों के जानकारों का कहना है कि उत्साह में दी गई विदेशी सरकार के ख़िलाफ़ ऐसी प्रतिक्रियाएँ और लगाए गए ऐसे आरोप देशों के आपसी रिश्तों को प्रभावित करते हैं।