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भारत के मुस्लिम आर्थिक-सामाजिक रूप से कहां खड़े हैं, नई रिपोर्ट में क्या है

भारत के मुस्लिम आर्थिक-सामाजिक रूप से कहां खड़े हैं, नई रिपोर्ट में क्या है

भारत के मुसलमानों की स्थिति पर एक नई रिपोर्ट प्रकाशित की गई है। जिसका शीर्षक है ‘Rethinking Affirmative Action for Muslims in Contemporary India’ (समकालीन भारत में मुसलमानों के लिए पॉजिटिव एक्शन पर पुनर्विचार)। इस रिपोर्ट में मुसलमानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति और सरकार की नीतियों का मूल्यांकन किया गया है। जानियेः

मुसलमानों की आर्थिक-सामाजिक स्थिति पर देश में चर्चा गायब हो गई है। नई रिपोर्ट- समकालीन भारत में मुसलमानों के लिए पॉजिटिव एक्शन पर पुनर्विचार रिपोर्ट इस चर्चा को फिर से वापस ला सकती है। इस रिपोर्ट को इंडियन एक्सप्रेस ने प्रकाशित किया है। यह रिपोर्ट पिछले 10 वर्षों में इस तरह का पहला विस्तृत पॉलिसी दस्तावेज है, जो मुसलमानों के लिए सकारात्मक कार्रवाई (Affirmative Action) की स्थिति का जायजा लेता है। इसमें भविष्य के लिए सात सूत्री रोडमैप भी पेश किया गया है। यह रिपोर्ट चार मुख्य थीम्स पर आधारित है। जिसमें सरकारी नीतियों, शिक्षा, आर्थिक स्थिति और मुस्लिम समुदाय की धारणाओं को गहराई से विश्लेषित करती है।

भारत में मुस्लिम समुदाय के लिए सकारात्मक कार्रवाई की शुरुआत 2006 में हुई, जब यूपीए सरकार ने तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह का 15 सूत्री अल्पसंख्यक कार्यक्रम शुरू किया था। इससे पहले, 2004 और 2005 में रंगनाथ मिश्रा आयोग और सच्चर समिति बनाई गई थी, जिन्होंने मुसलमानों को हाशिए पर मौजूद समुदाय के रूप में पहचान की थी और उनके लिए तमाम कदम उठाने की सिफारिश की थी। सच्चर समिति ने 2006 में और मिश्रा आयोग ने 2007 में अपनी रिपोर्ट पेश की थी। जिसने साफ शब्दों में कहा था कि भारत के मुसलमान हाशिये पर हैं, जिन्हें इस रूप में मान्यता देते हुए तमाम कदम उठाए जाएं। इसमें मुस्लिम समुदाय के सामाजिक-आर्थिक उत्थान के लिए नीतिगत पहल की जरूरत पर बल दिया गया था। इसके बाद 2013 में सच्चर मूल्यांकन समिति ने इन सिफारिशों के कार्यान्वयन की समीक्षा भी की थी।

2014 में बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के सत्ता में आने के बाद पॉलिसी फ्रेम में बदलाव आया। सरकार ने सबका साथ, सबका विकास का नारा दिया और सभी समुदायों की तरक्की पर जोर दिया। नई सरकार ने मुस्लिम सशक्तिकरण को एक विशेष चिंता के रूप में नहीं देखा। सबका साथ-सबका विकास की ज़मीनी हकीकत पर बात करके हम वहां नहीं उलझना चाहते। क्योंकि हमारी बात तो नई रिपोर्ट पर हो रही है। लेकिन इन नुक्तों को जाने बिना भी नई रिपोर्ट को समझना मुश्किल होगा।

रिपोर्ट के मुख्य बिंदुः राज्य और कल्याण नीतियों में बदलाव: रिपोर्ट में वर्तमान सरकार की वेलफेयर नीतियों को ‘चैरिटेबल स्टेट’ (परोपकारी राज्य) के रूप में वर्णित किया गया है। इसका मतलब है कि नीतियां अब विशेष समुदायों पर केंद्रित होने के बजाय व्यापक सामाजिक समावेश पर ध्यान देती हैं। यह बदलाव नीति सरकार की प्राथमिकताओं को दर्शाती है। उसके लिए अल्पसंख्यक समुदाय के लिए कोई सॉफ्ट कॉर्नर नहीं है।

वर्तमान नीति ढांचा

रिपोर्ट ने नीति आयोग के दस्तावेजों का विश्लेषण करते हुए बताया कि मुस्लिम समुदाय के लिए विशेष योजनाओं में कमी आई है। इसके बजाय, सामान्य कल्याण योजनाओं के जरिए सभी समुदायों को लाभ पहुंचाने की कोशिश की जा रही है।

शिक्षा और आर्थिक स्थिति: रिपोर्ट के अनुसार, मुस्लिम बच्चों की हायर एजुकेशन और स्कूली शिक्षा में भागीदारी सबसे कम है, हालांकि हाल के वर्षों में इसमें सुधार भी हुआ है। ग्रैजुएट स्तर पर मुस्लिम युवाओं का अनुपात अन्य सामाजिक-धार्मिक समूहों (SRGs) की तुलना में सबसे कम है। निजी स्कूलों तक पहुंच में मुस्लिम छात्र अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) से थोड़ा बेहतर हैं, लेकिन हिंदू उच्च जातियों (HFCs) और अन्य पिछड़ा वर्ग (HOBCs) से काफी पीछे हैं।

  • आर्थिक रूप से भी मुस्लिम समुदाय अन्य समूहों की तुलना में पिछड़ा हुआ है, जिसका असर उनकी सामाजिक गतिशीलता पर पड़ता है।
  •  रिपोर्ट में बताया गया है कि मुसलमानों की औसत आय अन्य धार्मिक समूहों की तुलना में कम है। इसके अलावा, रोजगार के अवसरों में भी उन्हें कम प्राथमिकता दी जाती है। छोटे और मध्यम व्यवसायों में ही अधिकांश मुसलमान कार्यरत हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति सुधारती नहीं है।
  • रिपोर्ट में CSDS-लोकनीति के आंकड़ों का भी इस्तेमाल किया गया है। जिससे पता चलता है कि मुस्लिम समुदाय अपनी सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन और हाशिए पर होने को लेकर चिंतित है। उनकी आकांक्षाएं और अपेक्षाएं सरकार से समान अवसर और समावेशी नीतियों पर केंद्रित हैं।

सात सूत्री रोडमैप क्या हैः रिपोर्ट में भविष्य के लिए सात सुझाव दिए हैं, जो इस प्रकार हैं: शिक्षा में समान पहुंच सुनिश्चित करना। आर्थिक सशक्तिकरण के लिए विशेष कार्यक्रम शुरू करना। सरकारी नीतियों में भागीदारी बढ़ाना। सामाजिक जागरूकता और संवाद को प्रोत्साहन देना। डेटा संग्रह और निगरानी को मजबूत करना। रोजगार के अवसरों में सुधार। सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देना।

यह रिपोर्ट भारत में मुस्लिम समुदाय की वर्तमान स्थिति को समझने और नीति निर्माताओं के लिए एक दिशा-निर्देश -ेने में महत्वपूर्ण है। यह बताती है कि हालांकि पिछले कुछ वर्षों में शिक्षा और भागीदारी में सुधार हुआ है, फिर भी मुस्लिम समुदाय अन्य समूहों की तुलना में काफी पीछे है। सरकार की नीतियों में बदलाव और समावेशी दृष्टिकोण के बावजूद, समुदाय की चिंताओं को दूर करने के लिए और अधिक टारगेटेट प्रयासों की जरूरत है। यह रिपोर्ट नीति निर्माताओं को बताती है कि भारत में समानता और सामाजिक न्याय को कैसे मजबूत किया जाए। हालांकि मोदी सरकार इस रिपोर्ट को स्वीकार करने के लिए बाध्य नहीं है। 

इस रिपोर्ट को तैयार करने वाले हिलाल अहमद और मोहम्मद संजीर आलम दिल्ली स्थित सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। नाज़िमा परवीन नई दिल्ली स्थित पॉलिसी पर्सपेक्टिव्स फाउंडेशन (पीपीएफ) में एसोसिएट फेलो हैं। यह अध्ययन वाशिंगटन डीसी स्थित यूएस-इंडिया पॉलिसी इंस्टीट्यूट (यूएसआईपीआई) द्वारा कराया गया था और हैदराबाद स्थित सेंटर फॉर डेवलपमेंट पॉलिसी एंड प्रैक्टिस (सीडीपीपी) ने प्रकाशित किया है।

सच्चर समिति पर बात करना जरूरी है

मुस्लिमों की स्थिति पर चाहे जितनी रिपोर्ट आ जाए, सच्चर समिति की सिफारिशें आज भी मील का पत्थर हैं। यह एक सरकारी दस्तावेज है जो केंद्र सरकार के पास हर समय उपलब्ध रहती है। सच्चर समिति ने अपनी रिपोर्ट 30 नवंबर 2006 को संसद में पेश की थी। यह रिपोर्ट 403 पृष्ठों की थी और इसमें व्यापक डेटा, इंटरव्यू और विश्लेषण शामिल थे। यह भारत में मुस्लिम समुदाय की स्थिति पर पहला इतना विस्तृत और आधिकारिक दस्तावेज था। यूपीए सरकार इस पर कदम उठाती, उससे पहले वो चली गई और केंद्र में बीजेपी की सरकार आ गई। जिसकी नीतियां सभी के सामने हैं।

सच्चर कमेटी ने बताया था कि मुस्लिम बच्चों का स्कूल नामांकन दर अन्य समुदायों की तुलना में कम था। उच्च शिक्षा में उनकी भागीदारी बहुत सीमित है। रिपोर्ट में पाया गया कि केवल 4% मुस्लिम युवा ग्रैजुएट स्तर की पढ़ाई तक पहुंचते थे। साक्षरता दर भी राष्ट्रीय औसत से नीचे थी।

रिपोर्ट में मुसलमानों को "सामाजिक रूप से हाशिए पर" बताया गया। उनके खिलाफ भेदभाव और पूर्वाग्रह की बात सामने आई। शहरी क्षेत्रों में मुस्लिम बहुल इलाकों में बुनियादी सुविधाएं जैसे सड़क, पानी, बिजली और स्वच्छता सेवाएं अपर्याप्त थीं। स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच में कमी थी, जिसके कारण मुस्लिम महिलाओं और बच्चों में कुपोषण और मृत्यु दर अधिक थी। जन्म दर अन्य समुदायों की तुलना में अधिक थी, लेकिन यह शिक्षा और आर्थिक स्थिति से जुड़ा हुआ है।

सच्चर कमेटी की प्रमुख सिफारिशें

सच्चर समिति ने अपनी रिपोर्ट में कई सुझाव दिए, जिनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं:

  • शिक्षा पर जोर: मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में स्कूलों और कॉलेजों की स्थापना। छात्रवृत्ति और मुफ्त शिक्षा योजनाओं का विस्तार। मदरसों को आधुनिक शिक्षा से जोड़ने की पहल।
  • आर्थिक सशक्तिकरण: सूक्ष्म-वित्त (माइक्रोफाइनेंस) और कौशल विकास कार्यक्रमों के जरिए रोजगार के अवसर बढ़ाना।  सरकारी नौकरियों और योजनाओं में मुसलमानों की भागीदारी बढ़ाने के लिए लक्षित नीतियां।
  • संस्थागत सुधार:एक समान अवसर आयोग (Equal Opportunity Commission) की स्थापना, जो भेदभाव की शिकायतों को दूर करे। डेटा संग्रह में सुधार हो, ताकि मुस्लिम समुदाय की स्थिति की नियमित निगरानी हो सके।
  • सामाजिक समावेश: सामुदायिक विकास के लिए विशेष क्षेत्रीय योजनाएं शुरू करना। जिसमें पुलिस और प्रशासन में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व बढ़ाना ताकि विश्वास बहाल हो।

सच्चर समिति की रिपोर्ट ने भारत में नीति निर्माताओं और समाज के बीच व्यापक बहस छेड़ दी। इसके बाद कई कदम उठाए गए। जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह का 15 सूत्री कार्यक्रम: 2006 में शुरू किया गया यह कार्यक्रम मुस्लिम समुदाय सहित अल्पसंख्यकों के कल्याण पर केंद्रित था। मल्टी-सेक्टोरल डेवलपमेंट प्रोग्राम (MSDP) भी मुस्लिम बहुल जिलों में बुनियादी ढांचे और सेवाओं को बेहतर करने के लिए शुरू किया गया। छात्रवृत्ति योजनाएं प्री-मैट्रिक और पोस्ट-मैट्रिक स्तर पर मुस्लिम छात्रों के लिए छात्रवृत्ति शुरू की गई। लेकिन मौजूदा सरकार ने उसे बंद कर दिया।

बीच में सरकार बदल गई। मनमोहन सिंह की सरकार रिपोर्ट की सभी सिफारिशों को पूरी तरह लागू नहीं कर पाई। 2013 में गठित सच्चर मूल्यांकन समिति (कुंडू समिति) ने पाया कि कई सुझावों पर अमल धीमा रहा और प्रभाव सीमित था। इसके बाद 2014 में एनडीए सरकार के सत्ता में आने पर नीतियों में जबरदस्त बदलाव आया, और समुदाय-विशिष्ट योजनाओं के बजाय समग्र विकास पर ध्यान दिया जाने लगा।

अगर केंद्र सरकार की नीयत साफ हो तो सच्चर समिति की रिपोर्ट भारत में मुस्लिम समुदाय की स्थिति को समझने के लिए एक ऐतिहासिक दस्तावेज है। इसने न केवल उनकी चुनौतियों को उजागर किया, बल्कि नीति निर्माताओं को समावेशी विकास की दिशा में सोचने के लिए प्रेरित किया। हालांकि इसके कुछ सुझावों पर काम हुआ, लेकिन पूर्ण कार्यान्वयन अभी भी एक चुनौती बना हुआ है। यह रिपोर्ट आज भी शोधकर्ताओं, नीति निर्माताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए एक महत्वपूर्ण संदर्भ है।

रिपोर्ट और संपादनः यूसुफ किरमानी

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